हाईकोर्ट की युगल पीठ ने शहर में कचरे की समस्या को लेकर नगर निगम और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि नगर निगम की सुस्ती और लापरवाही का खामियाजा आम लोग भुगत रहे हैं। अधिकारी समय पर कदम नहीं उठा रहे हैं, जिससे हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।
हाईकोर्ट की युगल पीठ ने शहर में कचरे की समस्या को लेकर नगर निगम और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि नगर निगम की सुस्ती और लापरवाही का खामियाजा आम लोग भुगत रहे हैं। अधिकारी समय पर कदम नहीं उठा रहे हैं, जिससे हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। अदालत ने निगम को सख्त चेतावनी दी कि यदि कर्मचारी लापरवाही बरतते हैं या फर्जी रीडिंग दिखाकर भ्रष्टाचार करते हैं तो उनके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। केवल योजनाएं बनाने और कागजों पर काम दिखाने से हालात नहीं सुधरेंगे। जरूरी है कि अधिकारी तेज़ी से काम करें और टालमटोल की प्रवृत्ति बंद करें। जनता रोज गंदगी और प्रदूषण झेल रही है, जबकि जिम्मेदार विभाग कागजी कार्यवाही में उलझे हुए हैं।
कोर्ट ने कहा कि नगर निगम के कर्मचारियों की सुस्ती और लापरवाही से आम लोग कचरे, बदबू और बीमारियों से परेशान हैं। अब निगम को ‘राइज टू द ओकेज़न’ (अवसर के अनुरूप उठो) होकर जिम्मेदारी निभानी होगी, वरना योजनाएं कभी जमीन पर उतर नहीं पाएंगी।
दरअसल सरताज सिंह तोमर ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से बताया कि शहर के अलग-अलग इलाकों में गीला-सूखा कचरा के ढेर पड़े हैं। केदारपुर लैंडफिल साइट पर गंदगी का पहाड़ खड़ा हो गया है। इससे न केवल बदबू और प्रदूषण फैल रहा है बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।
-वेस्ट टू एनर्जी प्लांट: – जिसकी डीपीआर राज्य सरकार को भेजी जा चुकी है।
-कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट– इसके लिए निविदा प्रक्रिया 27 अगस्त तक पूरी होगी।
सैनिटरी लैंडफिल साइट- जिसका प्रस्ताव 14 अगस्त को राज्य सरकार को भेजा गया है।
- निगम ने दावा किया कि इन योजनाओं से शहर की गंदगी की समस्या स्थायी रूप से हल हो जाएगी।
न्यायमित्र सुनील जैन और एसके श्रीवास्तव ने भी अदालत को बताया कि कई बार कचरा नियमित रूप से नहीं उठाया जाता और कुछ कर्मचारी वाहनों की फर्जी रीडिंग दिखाकर पैसा वसूलते हैं, जबकि काम नहीं करते। अदालत ने इसे गंभीर समस्या मानते हुए निगम आयुक्त को निर्देश दिया कि ऐसे कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
कोर्ट ने निगम को सुझाव दिया कि यदि आवश्यक हो तो इंदौर सिटी मॉडल का अध्ययन किया जाए और ग्वालियर में लागू किया जाए। यदि कर्मचारी कचरा उठाने में लापरवाही करें या फर्जी आंकड़े दिखाएं तो निगम आयुक्त के पास उन्हें सख्ती से निपटने की पूरी ताकत है।