Glaucoma Prevention : ग्लूकोमा, जिसे 'दृष्टि का मूक चोर' कहा जाता है, एक ऐसी गंभीर बीमारी है जो आंखों की रोशनी को धीरे-धीरे खत्म कर सकती है और अंधापन का कारण बन सकती है।
Glaucoma Prevention : आंखों की देखभाल हमारे जीवन का अहम हिस्सा है, लेकिन समय के साथ कई बीमारियाँ हमारी दृष्टि पर असर डाल सकती हैं। इन बीमारियों में से एक है ग्लूकोमा, जिसे काला मोतिया भी कहा जाता है। यह बीमारी आंखों की ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाती है, जिससे दृष्टिहीनता हो सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. तनुज दादा के अनुसार, 40 साल की उम्र के बाद ग्लूकोमा के खतरे को पहचानने के लिए नियमित आंखों की जांच कराना बहुत जरूरी है।
ग्लूकोमा को "दृष्टि का मूक चोर" कहा जाता है क्योंकि यह बीमारी अक्सर बिना किसी लक्षण के बढ़ती है। इसकी वजह से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है, और अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो यह स्थायी अंधेपन का कारण बन सकता है। ग्लूकोमा दुनिया में स्थायी अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है, और इसके लिए किसी विशेष प्रकार के लक्षणों का दिखाई न देना इसे और भी खतरनाक बना देता है।
ग्लूकोमा का खतरा खासकर उन लोगों को अधिक है जिनकी उम्र 40 साल या उससे अधिक है। डॉक्टरों का कहना है कि इस उम्र के बाद आंखों की जांच हर दो साल में एक बार करानी चाहिए, खासकर अगर व्यक्ति को किसी प्रकार के लक्षण न महसूस हों। यह बीमारी शुरू में बिना किसी लक्षण के बढ़ती रहती है, जिससे उसका पता देर से चलता है।
ग्लूकोमा का खतरा कुछ खास लोगों को ज्यादा हो सकता है। इनमें वे लोग शामिल हैं जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप या जिनके परिवार में कोई सदस्य पहले से ही ग्लूकोमा से पीड़ित हो। इसके अतिरिक्त, वे लोग जो स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं, जैसे कि क्रीम, आई ड्रॉप, टैबलेट या इन्हेलर, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। जिनकी आंखों में चोट लगी हो, उन लोगों में भी ग्लूकोमा विकसित होने का जोखिम बढ़ सकता है।
भारत में ग्लूकोमा के कारण अंधेपन की समस्या बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 90 प्रतिशत मामलों में बीमारी का पता नहीं चलता, जिससे समय पर इलाज नहीं हो पाता और अंधेपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जागरूकता की कमी और समय पर पहचान न होने के कारण यह समस्या और गंभीर होती जा रही है।
ग्लूकोमा से बचाव के लिए सबसे प्रभावी तरीका है नियमित आंखों की जांच। जो लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप या अन्य जोखिम वाले कारकों से प्रभावित हैं, उन्हें हर साल आंखों की जांच करानी चाहिए। अगर व्यक्ति की उम्र 60 साल या उससे अधिक है, तो आंखों की जांच एक जरूरी कदम है ताकि बीमारी का समय रहते पता चल सके और उसका इलाज शुरू किया जा सके।
ग्लूकोमा से अंधेपन से बचने के लिए समय पर इलाज और नियमित जांच जरूरी है। इसे "मूक चोर" कहा जाता है क्योंकि यह बिना लक्षण के धीरे-धीरे आंखों की रोशनी को प्रभावित करता है। सही समय पर पहचान और इलाज से इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है और आंखों की दृष्टि को बचाया जा सकता है।