बच्चों में ब्लड कैंसर यानी ल्यूकीमिया कई कारणों से होता है, जिसमें सबसे मुख्य कारण है जेनेटिक। जेनेटिक बदलाव के साथ ही टॉक्सिक सब्सटेंस भी डीएनए की संरचना में बदलाव करते हैं। एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) भी ल्यूकीमिया का कारण है। ल्यूकीमिया खून का कैंसर है, जिसमें ब्लड सेल्स की अतिरिक्त वृद्धि या विकास में बदलाव हो जाता है। असल में खून से संबंधित समस्याएं आती हैं।
बच्चों में ब्लड कैंसर यानी ल्यूकीमिया कई कारणों से होता है, जिसमें सबसे मुख्य कारण है जेनेटिक। जेनेटिक बदलाव के साथ ही टॉक्सिक सब्सटेंस भी डीएनए की संरचना में बदलाव करते हैं। एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) भी ल्यूकीमिया का कारण है। ल्यूकीमिया खून का कैंसर है, जिसमें ब्लड सेल्स की अतिरिक्त वृद्धि या विकास में बदलाव हो जाता है। असल में खून से संबंधित समस्याएं आती हंै।
ये होती हैं जांचें
जांच करने के लिए सीबीसी (कंप्लीट ब्लड काउंट) की जांच और पीबीएफ की जांच करवाते हैं। कई बार एडवांस टेस्ट जेनेटिक मार्कर टेस्ट होते हैं। इससे बोन मेरो की जांच की जाती है।
होते हैं ये बदलाव
शुरुआती स्टेज में तो बच्चे में कोई भी लक्षण नहीं दिखाई देते हंै, लेकिन कई बार यह कैंसर बढ़ता है तो बच्चे के शरीर में हड्डियां बढऩे लग जाती हंै। हड्डियों में दर्द होने लग जाता है। बार-बार बुखार एवं संक्रमण होता है। कई बार सीबीसी जांच से यह क्लू मिलता है कि बच्चे को प्रॉब्लम हो सकती है। बच्चे में लिवर या तिल्ली बढऩा या फिर लिंफ्स नोड बढऩा, खून की कमी से इसका पता चलता है।
सही देखभाल जरूरी
देखभाल इस बात पर निर्भर करती है कि ल्यूकीमिया किस तरह का है। इसमें बच्चों के शरीर में खून की कमी हो जाती है। इससे इंफेक्शन होने का खतरा रहता है तो इसमें साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। बच्चे में रक्तस्राव दिखे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। कई बार प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होने से ब्लीडिंग की आंशका हो जाती है। खून चढ़ाने या प्लेटलेट्स भी चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।
खानपान रखें सही: इस बीमारी में बच्चों की डाइट सही रखनी चाहिए। उन्हें संतुलित आहार देना चाहिए। कुछ खाद्य पदार्थों जैसे कि मौसमी फल, सब्जियां और साबुत अनाज से युक्त आहार से लाभ हो सकता है।
इलाज है संभव
ल्यूकीमिया का इलाज संभव है। इसमें दवाइयां चलती हैं जिससे कैंसर सही हो जाता है। कुछ-कुछ ल्यूकीमिया हैं, जो क्योर नहीं हो पाते। उनमें आगे जाकर समस्या हो सकती है। अगर समय से जांच एवं इलाज हो तो यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।
-डॉ. वी.के. गर्ग, शिशु रोग विशेषज्ञ