86 वर्ष के नारायण देवासी, जो आज भी निभा रहे हैं अपनी परंपराएं, सिर पर पगड़ी, गले में अंगोछा और जीवन में अनुशासन
मजबूती से खड़े हैं संस्कृति की जमीन पर
आज की तेज रफ्तार और बदलते दौर में जहां लोग अपनी परंपराओं और पहनावे को पीछे छोड़ते जा रहे हैं, वहीं नारायण देवासी जैसे लोग संस्कृति की जमीन पर मजबूती से खड़े हैं। मूल रूप से राजस्थान के पाली जिले के धोलेरिया गांव से ताल्लुक रखने वाले 86 वर्षीय नारायण देवासी पिछले 10 वर्षों से कर्नाटक के हावेरी जिले के राणेबेन्नूर में रह रहे हैं। नारायण देवासी की यह जीवनशैली और विचार आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो सिखाते हैं कि आधुनिकता के साथ भी अपनी जड़ों से जुड़ा रहना संभव है।
सादगी भरा जीवन
हाल ही में वे राजपुरोहित विकास संघ राणेबेन्नूर की ओर से आयोजित गुरु पूर्णिमा महोत्सव में अपने पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में शामिल हुए। सिर पर पगड़ी, धोती-कुर्ता और गले में पारंपरिक अंगोछा उनकी यह सादगी और संस्कृति से जुड़ाव हर किसी को आकर्षित कर गया।
जीवन में अनुशासन
देवासी समाज पारंपरिक रूप से पशुपालन से जुड़ा रहा है और नारायण देवासी भी वर्षों तक राजस्थान के कोटा-बूंदी क्षेत्र में भेड़ पालन करते रहे। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन जीवन के अनुशासन में वे शिक्षितों को भी पीछे छोड़ते हैं। सुबह 5 बजे उठकर भगवान का स्मरण करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। उम्र के इस पड़ाव में भी वे प्रतिदिन 3-4 किलोमीटर पैदल चलते हैं और सादा जीवनशैली अपनाए हुए हैं। बाजरे का सोगरा उनका प्रिय भोजन है।
नहीं भूलें परम्परा व पहनावा
उनके दो बेटे शिवमोग्गा और राणेबेन्नूर में व्यवसाय कर रहे हैं। नारायण देवासी कहते हैं, प्रदेश कोई भी हो, पहचान हमारी अपनी संस्कृति से ही बनती है। हमें अपने पहनावे और परंपराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए।