हुबली

यही तो हैं सोच एक कलाकार की, सोच एक कलाकार की …

तृप्ति किशोर, बाल कवयित्री, हुब्बल्ली

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Tripti Kishor

एक चित्र होता है जब तैयार
जब डालता है उसमें जान कलाकार
सुन्दर कलाकृति बनाने में
कर देता हैं दिन-रात एक
मेहनत उसकी नहीं जाती है बेकार
फिर भी उसके दिल में रहती हैं हलचल
बारी जब आती हैं हस्ताक्षर की
तब कांपने लगते हैं उसके हाथ
शायद मन में यही उधेड़बुन
कि कलाकृति तो होनी है पराई
हर किसी के मन में शायद यह सोच नहीं
लेकिन मैं हूं एक कलाकार
मेरे मन में यह सोच आई
यही तो हैं सोच एक कलाकार की
सोच एक कलाकार की।।

Updated on:
04 Jul 2024 05:22 pm
Published on:
04 Jul 2024 05:16 pm
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