MP News: पांच दशक पहले इंदौर की पहचान कॉटन मिल से होती थी। वहां पर काम करने को सरकारी नौकरी से अच्छा माना जाता था। बात यहीं तक सीमित नहीं थी।
MP News: पांच दशक पहले इंदौर की पहचान कॉटन मिल से होती थी। वहां पर काम करने को सरकारी नौकरी से अच्छा माना जाता था। बात यहीं तक सीमित नहीं थी। देश-दुनिया में कॉटन का रेट इंदौर के सेठ हुकमचंद खोलते थे। हुकमचंद मिल इंदौर की उस जमाने की सबसे आधुनिक और सबसे बड़ी टैक्सटाइल मिल थी। इसकी स्थापना 21 करोड़ रुपए की पूंजी के साथ 1915 में सर सेठ हुकमचंद ने की थी।
बता दें कि, सेठ हुकमचंद(Seth Hukamchand textile mill) की कर्मभूमि इंदौक आज से कई दशक पहले कपास व्यापार के लिए देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हुआ करता था। लोगों का ऐसा मानना था कि, विश्व बाजार में कपास के रेट इंदौर ही तय करता था। सेठ हुकमचंद के भारी मात्रा में कपास खरीदते ही विदेशी बाजारों में कपास के भाव में भारी उछाल आ जाया करता था। यहां के कपड़े पूरी दुनिया में मशहूर थें।
जानकारी के मुताबिक, लगभग 30 साल पहले 100 एकड़ में फैले हुकमचंद मिल बंद हुई थी। 80 के दशक में मिल की हालत बिगड़ी और धीरे-धीरे बंद हो गई। इसके हाजारों श्रमिक को सालों तक पेंशन-भत्ते की राशि के लिए भटकना पड़ा। मिलों के बंद होने से यह वैभव खत्म हो गया, लेकिन सरकार एक बार फिर इंदौर में कपड़ा कारोबार को आगे बढ़ा रही है।
कपड़ा कारोबार में इंदौर एक बार फिर अपनी पुरानी पहचान बनाने का प्रयास कर रहा है। कॉटन की मिल तो शुरू नहीं हो सकती है, लेकिन रेडीमेड गारमेंट पर फोकस हो रहा है। इसके चलते इंदौर बायपास पर अहिल्या गारमेंट सिटी तैयार हो रही है। इसमें अरविंद मिल और नॉइज जैसी बड़ी कंपनी की एंट्री हो गई है जिन्हें 30-30 एकड़ जमीन आवंटित कर दी गई।