Bastar News Update: आजादी के 77 साल बाद भी उफनती इंद्रावती पार करने को मजबूर हैं कोरली-पुशपाल के ग्रामीण कनेक्शन है लेकिन बिजली कभी-कभी आती है, नल कनेक्शन है लेकिन पानी नहीं आता....
Bastar News Today: बस्तर जिले के दक्षिण पश्चिम में बसा आखिरी गांव कोरली। यहां आज भी लोग साल भर 500 मीटर दूर पुशपाल गांव जाने के लिए जान हथेली पर रखकर गांव की एक डोंगी के जरिए इंद्रावती नदी पार करके जाते हैं। गर्मी में तो यहां स्थिति कुछ ठीक भी रहती है लेकिन बारिश और ठंड के मौसम में यहां उफनती नदी को पार करना मौत को दावत देने जैसा है।
लेकिन दोनों गांव के बीच रोटी बेटी का नाता होने के चलते यहां के लोग उफनती नदी को डोंगी से पार करने को मजबूर रहते हैं। गांव के लोगों की मजबूरी है कि वे नदी पार करके जाएं नहीं तो दो पहाड़ी पार कर 50 किमी का सफर तय करके यहां पहुंचना पड़ता है। दोनो ही ओर रहने वाले करीब दो सौ परिवार इसी तरह की परेशानियों का रोजाना सामना करते हैं।
गांव के ही जुगधर पुशपाल के एक व्यक्ति को नदी पार कराकर लौटे थे। पत्रिका को उन्होंने बताया कि अब तक वे हजारों लोगों को डोंगे के जरिए नदी पार करवा चुके हैं। पहले यह काम उनके पिता करते थे। इसके बाद से उन्होंने जिमेदारी संभाल रखी है। उनके पास दो डोंगे हैं।
इसी में बिठाकर ही वे नदी पार करवाते हैं। अच्छी बात यह है कि अब तक किसी तरह की दुर्घटना नहीं हुई है। लेकिन बारिश में डर बना रहता है। 50 से 100 रुपए में वे डोंगे में नदी पार करवाते हैं। हर दिन यहां 10 से अधिक लोग कोरली से पुशपाल जाते व आते हैं। वे कहते हैं कि यहां पुलिया बन जाता तो सारी समस्या भी दूर हो जाती। शासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
गांव की कांती नदी पर अपने घर का बर्तन लेकर पहुंचती है। पूछने पर बताती हैं कि वह हर दिन कपड़े व बर्तन धोने पहुंचती हैं। यहां गांव की सभी महिलाओं का यही हाल है। शासन की योजनाएं न के बराबर यहां पहुंचती है। अच्छी बात यह है कि यहां तक पहुंचने के लिए सडक़ जरूर बना दी गई है। गांध के स्कूल तक सडक़ की सौगात मिल गई है इसके आगे का काम होना बाकी है। लेकिन अन्य योजनाओं को लेकर भी सरकार को सोचने की बात कांति ने कही है।
दरअसल इस गांव वालों का कहना है कि नदी पर पुल बनाने के लिए सालों से मांग की जा रही है। नेता आते हैं, उनसे मांग की जाती है लेकिन पुल अब तक नहीं बना है। आजादी के 77 साल बाद भी यहां के लोगों की किस्मत नहीं बदली और आज भी वे 500 मीटर दूरी के लिए अपनी जान खतरे में डालकर डोंगी के सहारे पुल पार करकेे जाते हैं या फिर 50 किमी की दो पहाडी पार कर जाने को मजबूर हैं।
गां व की ही ललिता ने बताया कि गांव में बिजली है लेकिन वह महीने में कभी-कभार ही आती है। एक बार तेज हवा चली तो कम से कम एक हता फुरसत है। ऐसी बिजली का क्या फायदा। वहीं गांव में हर घर में नल का कनेक्शन तो लग गया है लेकिन आज भी यहां के लोगों को पीने के पानी के लिए नदी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। बारिश में पानी गंदा हो जाता है झिरिया का सहारा लेना पड़ता है। वहीं कुछ दूरी पर एक हैंडपंप भी है यहां से भी गांव की प्यास बुझती है।