जगदलपुर

Year Ender 2025: कौन था नक्सली हिड़मा? बहू को देखकर भड़क गई थी मां, जानें Love Story से लेकर एनकाउंटर तक की दास्तान

Year Ender 2025: नक्सल आंदोलन को सबसे करारा आघात तब लगा, जब कुख्यात नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा मारा गया। गृह मंत्री अमित शाह ने उसे ढेर करने के लिए सुरक्षा बलों को 30 नवंबर तक की समय-सीमा दी थी।

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Dec 17, 2025
कौन था नक्सली हिड़मा? बहू को देखकर भड़क गई थी मां (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Year Ender 2025: साल 2025 नक्सली संगठनों के लिए निर्णायक और विनाशकारी साबित हो रहा है। जिस दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर में नक्सलवाद के पूर्ण उन्मूलन की स्पष्ट समय-सीमा तय की थी, उसी दिन यह संकेत मिल गया था कि आने वाले समय में नक्सली नेटवर्क पर बड़ा और अंतिम प्रहार होगा। नक्सली शीर्ष नेतृत्व ने इसे राजनीतिक बयान मानकर अनदेखा किया, लेकिन बाद की घटनाओं ने साबित कर दिया कि यह न तो चुनावी नारा था और न ही कोई खोखला दावा।

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हिड़मा का खात्मा: नक्सलियों को सबसे बड़ा झटका

नक्सल आंदोलन को सबसे करारा आघात तब लगा, जब कुख्यात नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा मारा गया। गृह मंत्री अमित शाह ने उसे ढेर करने के लिए सुरक्षा बलों को 30 नवंबर तक की समय-सीमा दी थी। इसी क्रम में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में व्यापक सर्च ऑपरेशन चलाया गया। तय डेडलाइन से 12 दिन पहले ही हिड़मा के मारे जाने से नक्सली संगठन को बड़ा झटका लगा।

एक निर्णायक मोड़

मंगलवार, 18 नवंबर को देश के सबसे खतरनाक और एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा को सुरक्षा बलों ने संयुक्त अभियान में मार गिराया। मारेदुमिल्ली के जंगलों में हुई इस मुठभेड़ में उसकी पत्नी राजे उर्फ राजक्का समेत छह अन्य नक्सली भी मारे गए। हिड़मा का अंत नक्सलवाद के खिलाफ अभियान में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।

कौन था माड़वी हिड़मा?

बस्तर में नक्सली हिंसा का पर्याय बन चुका माड़वी हिड़मा कई नामों- संतोष, इंदमुल और पोडियाम भीमा से भी जाना जाता था। सुकमा उसका मुख्य गढ़ था। वह माओवादी संगठन की केंद्रीय कमेटी का सदस्य था और बस्तर क्षेत्र में होने वाली अधिकांश नक्सली गतिविधियों का संचालन उसी के निर्देश पर होता था।

हिड़मा वर्ष 1990 में नक्सली संगठन से जुड़ा था। वह सुकमा जिले के दुर्गम पूवर्ती गांव का निवासी था, जो घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। वर्षों तक सुरक्षा एजेंसियां उसकी तलाश में जुटी रहीं, लेकिन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण वह लंबे समय तक पकड़ से बाहर रहा। अंततः सुरक्षा बल उसके गढ़ तक पहुंचने में सफल रहे।

कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड

कद में छोटा, लेकिन खौफ में बड़ा हिड़मा नक्सली संगठन का एक अहम चेहरा था। उसकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए कम उम्र में ही उसे शीर्ष कमेटी में शामिल कर लिया गया था। उसने दसवीं तक पढ़ाई की थी और हमेशा अपने साथ एक नोटबुक रखता था, जिसमें वह रणनीतिक नोट्स लिखा करता था।

2010 के ताड़मेटला हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की शहादत, 2013 के झीरम घाटी हमले में कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं सहित 31 लोगों की मौत और 2017 के बुरकापाल हमले में 25 जवानों की शहादत, इन सभी बड़े नक्सली हमलों के पीछे हिड़मा की अहम भूमिका मानी जाती है। बताया जाता है कि उसने फिलीपींस में गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग भी ली थी।

महिला नक्सली सुजाता से मिली ट्रेनिंग

हिड़मा को हथियारों और युद्ध कौशल की ट्रेनिंग देने वालों में कुख्यात महिला नक्सली सुजाता का नाम भी शामिल था। उस पर भी एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। वर्ष 2024 में सुरक्षा बलों ने उसे तेलंगाना से गिरफ्तार किया था।

बटालियन नंबर वन और हिड़मा का अंत

हिड़मा और बसवराजू को नक्सली संगठन की सैन्य और वैचारिक ताकत माना जाता था। हिड़मा के मारे जाने से बटालियन नंबर वन का नेतृत्व पूरी तरह कमजोर पड़ गया है। यह बटालियन माओवादियों की सबसे घातक अटैक यूनिट मानी जाती थी।

2004-05 में सलवा जुडुम अभियान के दौरान गठित बटालियन नंबर वन के लड़ाके जंगलों में लड़ाई के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित थे। लूटे गए हथियार और गोला-बारूद इसी यूनिट के पास रहता था और नक्सलियों के लगभग हर बड़े हमले में इसकी भूमिका रही। हिड़मा इसका मुख्य कमांडर था और उसके साथ हर समय 200 से अधिक हथियारबंद लड़ाके मौजूद रहते थे।

हिड़मा और राजे की प्रेम कहानी

साल 2008 में, जब नक्सलवाद अपने चरम पर था, हिड़मा और राजे की मुलाकात एक नक्सली बैठक के दौरान हुई। दोनों ने लगभग एक ही समय संगठन में कदम रखा था। हिड़मा ने पत्र लिखकर राजे से प्रेम का इज़हार किया और शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे राजे ने पहले ठुकरा दिया। लगातार प्रयासों के बाद दो साल में राजे ने प्रस्ताव स्वीकार किया और वर्ष 2010 में संगठन की अनुमति से दोनों ने शादी कर ली।

बहू को देखकर भड़क गई थी मां

ग्रामीणों के अनुसार, वर्ष 2018 में हिड़मा अपनी पत्नी के साथ पूवर्ती गांव आया था। उस समय राजे ने पारंपरिक लाल जोड़े के बजाय नक्सली काली वर्दी पहन रखी थी, जिसे देखकर हिड़मा की मां नाराज हो गई थीं। बाद में परिवार ने शादी को स्वीकार कर लिया। इसके बाद हिड़मा कभी गांव नहीं लौटा। कुछ वर्ष पहले जंगल में उसकी परिजनों से संक्षिप्त मुलाकात हुई थी, जो आखिरी साबित हुई।

समर्पण की कोशिश और अंत

शादी के बाद राजे ने कई बार हिड़मा को आत्मसमर्पण के लिए समझाने की कोशिश की, लेकिन वह हथियार छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। वह लंबे समय तक सुरक्षा बलों को चकमा देता रहा। अंततः संयुक्त अभियान में सुरक्षा बलों ने दोनों को खोज निकाला और मुठभेड़ में मार गिराया। हिड़मा का अंत नक्सलवाद के खिलाफ चल रही कार्रवाई में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है और इसे सुरक्षा एजेंसियां इस अभियान की बड़ी सफलता के रूप में देख रही हैं।

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Published on:
17 Dec 2025 08:00 am
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