27वें लोकरंग महोत्सव के समापन समारोह में सोमवार को विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति की अद्भुत और अद्वितीय छवि साकार हुई। पारंपरिक वेश में तैयार कलाकारों ने वाद्य यंत्रों की धुनों पर नृत्य करते हुए दीपमाला बनाकर मध्यवर्ती के मंच को रोशन किया।
जयपुर। 'एक सुर और एक ताल, एक ही आलाप हो, मिलकर गाएं हम सभी…मन से मन का मिलाप हो, आओ-आओ रे मिलकर गाएं रे…लोक कला की, संस्कृति की हम ज्योति जगाएं रे…।' 11 दिन से लगातार भारत के सांस्कृतिक वैभव को अपने में समेटे 27वें लोकरंग महोत्सव के समापन समारोह में सोमवार को विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति की अद्भुत और अद्वितीय छवि साकार हुई। पारंपरिक वेश में तैयार कलाकारों ने वाद्य यंत्रों की धुनों पर नृत्य करते हुए दीपमाला बनाकर मध्यवर्ती के मंच को रोशन किया।
म्यूजिक सिम्फनी में मोरचंग, ढोल, ढोलक, खड़ताल, अलगोजा, रबाब, बांसुरी समेत अन्य वाद्य यंत्रों से निकली विशेष धुन ने सभी को मोहित कर दिया। भारत मिलन की प्रस्तुति में विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने एक साथ नृत्य करते हुए अविस्मरणीय दृश्य साकार किया। इसके बाद निकली लोकयात्रा में कलाकार गायन, वादन और नृत्य करते हुए शिल्पग्राम पहुंचे, जहां लोकरंग की ध्वजा उतारने के साथ ही लोकरंग महोत्सव का समापन हुआ।
18 अक्टूबर से शुरू हुए 11 दिवसीय महोत्सव में राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में 24 राज्यों की लोक कला प्रस्तुतियां और राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी देखने को मिली। मध्यवर्ती के मंच पर प्रतिदिन अलग-अलग राज्यों के लोक कलाकारों ने अपने राज्यों की संस्कृति के सौंदर्य को दर्शाया। वहीं शिल्पग्राम में लगे राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में दस्तकारों का हुनर देखने को मिला। शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर भी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुई। लोकरंग में पहली बार रंग चौपाल में लोक नाटक और गायन सभा भी आयोजित की गई।
समापन को लेकर उत्सुकता
लोकरंग महोत्सव के समापन समारोह को लेकर कला प्रेमियों में भारी उत्सुकता देखी गई। राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में हिस्सा लेने के लिए एकत्रित होने लगे। मांगणियार कलाकारों की गायन प्रस्तुति के साथ मध्यवर्ती में महफिल सजी। जम्मू के कलाकारों ने डोगरी बोली में गीतडू की प्रस्तुति दी। कर्नाटक के कलाकारों की कमसाले नृत्य की प्रस्तुति के बाद राजस्थान के कलाकारों की गोवर्धन लीला प्रस्तुति ने सभी को श्री कृष्ण के रंग में रंग दिया। पुंग चोलम के बाद गुजरात के कलाकारों ने हुड़ो रास की प्रस्तुति दी। इसके बाद कश्मीर से रउफ, मणिपुर से लाई हरोबा, गुजरात का वसावा होली नृत्य, पंजाब का भांगड़ा और गुजरात के सिद्धी गोमा की प्रस्तुति हुई।
सिम्फनी के साथ सांस्कृतिक समागम
सिम्फनी के तहत मोरचंग, ढोल, ढोलक, खड़ताल, अलगोजा, रबाब, बांसुरी, नगाड़ा समेत 11 राज्यों के 35 से अधिक वाद्य यत्रों की लयबद्ध मधुर प्रस्तुति दी ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। इसके बाद मध्यवर्ती के चारों प्रवेश द्वारों से अलग—अलग राज्यों के कलाकार प्रस्तुति देते हुए मंच पर पहुंचे। यह दृश्य था सांस्कृतिक समागम का जिसने जेकेके के कैनवास पर भारत की रंग-बिरंगी संस्कृति के रंग उकेरे। दीपमाला लेकर कलाकारों ने मध्यवर्ती को रोशन किया। इसके बाद कलाकारों की लोक यात्रा शिल्पग्राम में पहुंची और लोकरंग का समापन हुआ। कार्यक्रम के अंत में कलाकारों के साथ कलाप्रेमी भी नृत्य करते और झूमते नजर आए।