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राजस्थान में क्यों उठी भील प्रदेश की मांग? सांसद रोत की ‘X’ पोस्ट से मचा बवाल, BJP नेता ने बताया ‘प्रदेशद्रोह’

Rajasthan: राजस्थान में एक बार फिर ‘भील प्रदेश’ की मांग ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है। सांसद राजकुमार रोत ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर जोर-शोर से उठाया है।

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Jul 16, 2025
(राजस्थान पत्रिका फोटो)

Demand for 'Bhil Pradesh' in Rajasthan: राजस्थान में एक बार फिर ‘भील प्रदेश’ की मांग ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर जोर-शोर से उठाया है। उन्होंने एक नक्शा साझा करते हुए राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 43 जिलों को मिलाकर एक अलग आदिवासी राज्य ‘भील प्रदेश’ बनाने की मांग की है।

इस मांग के चलते आदिवासी समुदाय में उत्साह है, वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने इसे ‘प्रदेशद्रोह’ करार देते हुए निशाना साधा है।

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आदिवासियों के साथ हुआ अन्याय- रोत

सांसद राजकुमार रोत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सिलसिलेवार लिखा कि भील प्रदेश की मांग कोई नई नहीं है। उन्होंने कहा कि 1913 में गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़ नरसंहार में 1500 से अधिक आदिवासी शहीद हुए थे। आजादी के बाद भील समुदाय के क्षेत्र को चार राज्यों में बांटकर उनके साथ अन्याय किया गया।

राजकुमार रोत ने तर्क दिया कि आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, बोली और रीति-रिवाज अन्य राज्यों से अलग हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण के लिए ‘भील प्रदेश’ का गठन जरूरी है। रोत ने यह भी कहा कि अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों की हितैषी है, तो उनकी यह बरसों पुरानी मांग पूरी की जानी चाहिए।

उन्होंने दावा किया कि भील प्रदेश न केवल आदिवासियों की पहचान को मजबूत करेगा, बल्कि उनके विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और जल-जंगल-जमीन के अधिकारों को भी सुनिश्चित करेगा।

BJP नेता राजेंद्र राठौड़ का पलटवार

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने सांसद रोत की इस मांग को ‘प्रदेशद्रोह’ करार देते हुए हमला बोला। राठौड़ ने एक्स पर लिखा kf राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद राजकुमार रोत द्वारा जारी किया गया तथाकथित "भील प्रदेश" का नक्शा एक शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट है।

उन्होंने कहा कि यह न केवल गौरवशाली राजस्थान की एकता पर चोट है बल्कि आदिवासी समाज के नाम पर भ्रम फैलाने और सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश भी है।

राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि आज अगर कोई भील प्रदेश की बात करेगा, कल कोई मरू प्रदेश की मांग करेगा तो क्या हम अपने शानदार इतिहास, विरासत और गौरव को ऐसे ही टुकड़ों में बाँट देंगे? सांसद राजकुमार रोत द्वारा जारी नक्शा आदिवासी समाज में जहर बोने की साजिश है जो प्रदेशद्रोह की श्रेणी में आता है और इसे जनमानस कभी स्वीकार नहीं करेगा।

108 साल पुरानी है मांग

दरअसल, भील प्रदेश की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है। 1913 में मानगढ़ नरसंहार के बाद भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने इसकी शुरुआत की थी। 17 नवंबर 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना ने सैकड़ों भील आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इस घटना को ‘आदिवासी जलियांवाला’ के रूप में भी जाना जाता है। तब से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति के विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य की मांग करता रहा है।

भील प्रदेश में 4 राज्य शामिल

प्रस्तावित भील प्रदेश में चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 43 जिलों को शामिल करने की बात कही गई है। इसमें राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली जिले शामिल हैं।

गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरुच, मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर और महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर और नंदुरबार जिले शामिल हैं।

क्यों उठ रही है भील प्रदेश की मांग?

सांसद रोत और उनके समर्थकों का कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सिंचाई जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है और उनके जल-जंगल-जमीन के अधिकारों का हनन हो रहा है। रोत का तर्क है कि भील प्रदेश का गठन इन समस्याओं का समाधान करेगा और पांचवीं-छठी अनुसूची के प्रावधान लागू करने में मदद करेगा।

बताते चलें कि सांसद रोत की इस मांग को आदिवासी समुदाय का समर्थन मिल रहा है, खासकर सोशल मीडिया पर। हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस जैसे प्रमुख दलों ने इस मुद्दे पर सावधानी बरती है।

कब-कब उठी मांग?

1913: गोविंद गुरु ने मानगढ़ नरसंहार के बाद इस मांग को उठाया।

2024 (लोकसभा चुनाव): राजकुमार रोत ने चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को प्रमुखता दी और जीत के बाद संसद में इसे उठाने का वादा किया।

जून 2024: BAP विधायकों उमेश मीणा और थावरचंद डामोर ने राजस्थान विधानसभा में टी-शर्ट पहनकर इस मांग का समर्थन किया।

दिसंबर 2024: रोत ने लोकसभा में नियम 377 के तहत चर्चा की मांग की और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।

जनवरी 2025: बांसवाड़ा में आदिवासी रैली में रोत ने क्षेत्रीय आरक्षण और भील प्रदेश की मांग को दोहराया।

कौन है भील समुदाय?

गौरतलब है कि भील भारत की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक हैं, जो गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, त्रिपुरा और पाकिस्तान के थारपरकर जिले में बसे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में भीलों की आबादी करीब 1.7 करोड़ है, जिसमें मध्य प्रदेश में 60 लाख, गुजरात में 42 लाख, राजस्थान में 41 लाख और महाराष्ट्र में 26 लाख शामिल हैं। यह समुदाय भगवान शिव, दुर्गा और वन देवताओं की पूजा करता है।

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Published on:
16 Jul 2025 04:50 pm
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