राजस्थान के वन अभयारण्यों में सालाना 40 लाख से ज्यादा आ रहे सैलानियों में अधिकतर युवा-बच्चे वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट को सिखना चाहते हैं लेकिन स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है।
Wildlife Conservation : सरकार भले ही वन और वन्यजीव संरक्षण के दावे कर रही है, लेकिन उसमें रूचि रखने वाले लोगों को निराश कर रही है। खासकर युवाओं में नाराजगी है। इसकी वजह वन एवं वन्यजीव को पूरी तरह से स्कूली व कॉलेज पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किए जाना है।
दरअसल, रणथम्भौर नेशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिजर्व, झालाना लेपर्ड रिजर्व, घना पक्षी विहार, नाहरगढ़ जैविक उद्यान समेत राजस्थान के वन अभयारण्यों में सालाना कुल 40 लाख से ज्यादा लोगों की आवाजाही होती है। इनमें ज्यादातर युवा और बच्चे शामिल है। उनमें भी कई ऐसे होते हैं, जो वाइल्ड के प्रति गहरी रूचि रखते हैं। जो कुछ न कुछ सीखने के लिए यहां पर आते हैं। इनमें कई वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के लिए भी आते हैं। बातचीत में इन युवा सैलानियों ने बताया कि वाइल्ड लाइफ को लेकर यूथ में क्रेज बढ़ता जा रहा है। कई युवा, बच्चे इसे गहराई से समझना चाहते हैं और इसमें करियर भी तलाश रहे हैं।
इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाते हुए स्टडी पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। जिसके तहत डिग्री-डिप्लोमा कोर्स के जरिए वन एवं वन्यजीव संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी, रेस्क्यू मैनेजमेंट समेत कई विधाओं की जानकारी मिल सकें। इससे ना केवल युवाओं में प्रकृति के प्रति जुड़ाव उत्पन्न होगा बल्कि वन एवं वन्यजीव सरंक्षण भी होगा। साथ ही प्रकृति को भी बचाया जा सकेगा।
राज्य में वन विभाग गोडावन, खरमोर के संरक्षण, टाइगर के संरक्षण को विशेष कार्य कर रहा है। दूसरे राज्यों में हाथी, गेेंडा समेत कई अन्य वन्यजीवों के संरक्षण में विशेष कार्य हो रहे हैं। उनके बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। वर्तमान में क्लायमेंट चेंजेज बड़ी चुनौती साबित हो रही है। इससे निपटने के लिए भी जानकारी उपलब्ध करवाना जरूरी है। विगत कुछ वर्षों में पक्षियों को लेकर भी लोगों में रूचि बढ़ी है। जिससे सर्दियों में जलाशयों पर प्रवासी पक्षियों को निहारने वालों की तादाद सालाना बढ़ रही है। उसकी पहचान, उनके आवास, प्रकृति में उनका योगदान समेत कई जानकारी मिल सके।
वन एवं वन्यजीव के बारे में बच्चों को बचपन से ही पढ़ाया जाएं। इसे स्कूली सिलेबस में ही जोड़ने की जरुरत है। इससे बच्चे को बचपन से ही कीट-जानवर, पेड़-पौधों का महत्व समझ में आ सके कि वो ना केवल हमसें कुछ ले रहे हैं बल्कि हमें दे भी रहे हैं। उनके बिना मानव जीवन भी संभव नहीं है। ऐसा होने से बच्चा जीवनभर संरक्षण में उपयोगी साबित होगा।
- डी.एन पाण्डेय, पूर्व प्रधान मुख्य वनसरंक्षक(हॉफ), वन विभाग
सरकार को इस संबंध में ठोस कदम उठाते हुए एक कमेटी गठित करनी चाहिए। जिसमें भारत वन्यजीव संस्थान, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री समेत कई संगठनों के वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ शामिल हों। वो सब मिलकर पाठ्यक्रम बनाएं और उसे सरकार स्कूली शिक्षा से ही लागू करें। पाठ्यक्रम में कीट से हाथी, हवा, बांध से लेकर नदियां, जलवायु, पेड़-पौधे सब को शामिल करें।
- सतीश शर्मा, वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ, पूर्व वन अधिकारी