पूर्वी राजस्थान के भरतपुर जिले के उपखंड भुसावर के किसान कम जमीन पर और कम लागत से स्मार्ट फार्मिंग कर माला माल हो रहे हैं। यहां पूर्ण जैविक तरीके से कटहल, आम, फाल्से, जामुन, अनार, पपीता आदि की बागवानी हो रही है।
किसानों का कहना है, वह रासायनिक उर्वरकों का उपयोग ना करके ऑर्गेनिक खेती पर जोर देते हैं। नीम- तम्बाकू की पत्तियां, गोबर की खाद, मुर्गी व चमगादड़ की बीट और वर्मी कम्पोस्ट खाद में सल्फर वाले तत्व आदि डालकर खेती करते हैं। इससे ज्यादा फलोत्पादन होता है। साथ ही कृषि के अत्याधुनिक संसाधनों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
छोटे पौधों का रखें विशेष ध्यान : सिंचाई गर्मी में 15 दिन तथा सर्दी में एक माह के अंतराल में करते हैं। छोटे पौधों में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना होता है। नवंबर- दिसंबर में पेड़ों पर फल लगना प्रारंभ हो जाता है।
जीवांश युक्त मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त : कटहल के लिए अच्छे जल निकास वाली जीवांश युक्त मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है। खेत में जल का भराव नहीं होना चाहिए। इसकी बागवानी शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में की जा सकती है।
सिंगापुरी और गुलाबी किस्म के पेड़ : कटहल की उन्नत किस्मों में रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी आदि हैं। क्षेत्र में सिंगापुरी और गुलाबी कटहल के पेड़ लगाए जाते हैं, जो वजन और लंबाई, दोनों में बेहतर होते हैं। इसमें प्रत्येक डाली पर फल लगता है।
कटहल बहुत पौष्टिक होता है। इसका उपयोग अचार और सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके एक पेड़ से 200 से 250 फल प्राप्त हो जाते हैं। इन पेड़ों में आने वाले फलों का वजन एक टन से ज्यादा होता है। मंडी भाव 40 से 50 किलो होता है। एक पेड़ से ढाई से तीन लाख रुपए का मुनाफा हो जाता है।
मई जून में 10-10 मीटर की दूरी पर एक-एक मीटर गहराई के गड्डे तैयार करें। इनमें 20 से 25 किग्रा गोबर की खाद, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व पोटाश तथा एक किग्रा नीम की खली को मिट्टी में मिलाकर भर दें। वर्षा के समय इनमें पौधे लगाएं। - भुसावर एग्रीकल्चर के डीन डॉ. उदयभान सिंह
-मोहन जोशी