Live-in Relationship Legal Status: इन कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं और अभिभावकों को लिव-इन संबंधों के सामाजिक और कानूनी पहलुओं के बारे में जागरूक किया जाएगा।
Live-in Relationship की बढ़ती प्रथा के बीच, इसकी कानूनी मान्यता को समाप्त करने की मांग जोर पकड़ रही है। इसी क्रम में, एक 'सेक्टर फॉर पब्लिक अवेयरनेस एंड इंफॉर्मेशन' ने बुधवार को इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन का शुभारंभ किया। इस अभियान का उद्देश्य बेटियों की सुरक्षा, भारतीय परिवार प्रणालियों और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा को सर्वोपरि प्राथमिकता देना है।
इस अभियान के तहत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर लिव-इन रिलेशनशिप को दी गई कानूनी मान्यता समाप्त करने की गुजारिश की गई है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत से भी मिलकर इस विषय पर चर्चा करने और कानूनी मान्यता समाप्त करने का अनुरोध करने की योजना है। अनेक संस्थाओं ने भी देशभर में ज्ञापन देने सहित सद्बुद्धि यज्ञ करने और इस संबंध में एक सशक्त आंदोलन करने की घोषणा की है।
मीडिया से मुखातिब होते हुए, इस सेक्टर के डायरेक्टर और नैतिक शिक्षाविद व आध्यात्मिक चिंतक आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया ने लिव-इन रिलेशनशिप के "घातक दुष्परिणामों" पर प्रकाश डाला। जयपुर संगीत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राम शर्मा, मानव मिलन संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद जैन चौरड़िया, राजस्थान जैन महासभा के अध्यक्ष कमल बाबू जैन, समेत कई गणमान्य व्यक्ति इस मौके पर मौजूद थे।
आचार्य पाटोदिया ने स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और वैवाहिक जीवन पद्धति को तेज़ी से पतन की ओर धकेल रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि इसके दुष्परिणाम भविष्य में "घातक" होंगे। उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ रहे अनाचार, दुराचार और व्यभिचार को रोकना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
इस राष्ट्रव्यापी मुहिम के तहत, पहले चरण में स्कूल, कॉलेज और कॉलोनियों में जन जागृति कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे। इन कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं और अभिभावकों को लिव-इन संबंधों के सामाजिक और कानूनी पहलुओं के बारे में जागरूक किया जाएगा। आयोजकों का मानना है कि यह सामाजिक व्यवस्था न केवल महिलाओं को असुरक्षित बनाती है, बल्कि भारतीय परिवार व्यवस्था की नींव को भी कमजोर कर रही है, जिसे हर कीमत पर बचाना आवश्यक है।
यह अभियान देश के सामाजिक और कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बहस शुरू कर सकता है कि क्या लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति को पुनर्विचार की आवश्यकता है।