स्वर्णनगरी जैसलमेर अपनी ऐतिहासिक धरोहर, ऊंट सफारी और रेगिस्तानी पर्यटन के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन हाल के दिनों में पुलिस की बरामदगियों ने पर्यटन उद्योग की चिंता बढ़ा दी है।
स्वर्णनगरी जैसलमेर अपनी ऐतिहासिक धरोहर, ऊंट सफारी और रेगिस्तानी पर्यटन के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन हाल के दिनों में पुलिस की बरामदगियों ने पर्यटन उद्योग की चिंता बढ़ा दी है। गौरतलब है कि पुलिस की कार्रवाई में पार्टी ड्रग एमडीएमए सहित अन्य मादक पदार्थ बरामद होने से संकेत मिले हैं कि नशा माफिया अब पर्यटन उद्योग को ढाल बनाकर सक्रिय हो रहे हैं। खासकर विदेशी पर्यटकों और स्थानीय युवाओं को निशाना बनाकर यह नेटवर्क पार्टी ड्रग्स की सप्लाई कर रहा है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, रेगिस्तान में आयोजित होने वाली प्राइवेट पार्टियां और नशीले पदार्थों की तस्करी के नए तरीके सामने आ रहे हैं। जानकारों की माने तो पर्यटन की चकाचौंध के बीच नशा तस्करी का यह साया न केवल शहर की छवि धूमिल कर सकता है, बल्कि भविष्य में पर्यटन उद्योग को गहरा नुकसान भी पहुंचा सकता है। प्रशासनिक हलकों में भी चिंता है कि यदि समय रहते इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी तो जैसलमेर जैसे सुरक्षित और शांत पर्यटक स्थल की पहचान पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नशे की जड़ें फैलने से पहले ही इन्हें खत्म करना जरूरी है। हाल में पकड़ी गई एमडीएमए की खेप से साफ है कि तस्करों का नेटवर्क अंतरराज्यीय स्तर पर काम कर रहा है। इस कारण सीमावर्ती जिले जैसलमेर को लेकर सतर्कता और ज्यादा बढ़ गई है।
अधिवक्ता अरविन्द गोपा का कहना है कि नशीली दवाओं की तस्करी और बढ़ती नशाखोरी को रोकने के लिए एनडीपीएस अधिनियम 1985 सख्ती से लागू है। यह कानून नशीली दवाओं के अवैध निर्माण, कब्जे, बिक्री और आयात-निर्यात पर रोक लगाता है। अधिनियम के तहत सजा मात्रा के आधार पर तय होती है। कम मात्रा में पकड़े जाने पर 6 महीने से 1 साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है, जबकि वाणिज्यिक मात्रा पर दोषी को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और भारी जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि समाज को नशे के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए सख्त कार्रवाई के साथ-साथ जागरूकता भी जरूरी है।