संतरे की पैदावार से मोह भंग होने के कारण क्षेत्र के किसान खरीफ की एवं रबी की फसल कटने के बाद हर साल संतरे के हजारों बीघा में लगे पौधों की कटाई करवा देते है।
जिले के असनावर, अकलेरा, भवानी मंडी एवं झालरापाटन के आसपास का क्षेत्र खास तौर पर बड़ी मात्रा में संतरे का उत्पादन करता आया है लेकिन अब इस पूरे इलाके में संतरे के बगीचे सफेद हाथी साबित हो रहे हैं और मजबूरी में किसान इनको नष्ट कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यही हालात रहे तो आने वाले समय में झालावाड़ का संतरा अपनी पहचान खो देगा।
देश में नागपुर के बाद अगर संतरे की खेती में अपना वर्चस्व रखता है वो है झालावाड़ जिला। यहां के संतरें की मिठास के लोग कायल हैं। देश ही नहीं वरन विदेशों में भी झालावाड़ का संतरा पसंद किया जाता है लेकिन अब संतरे की खेती से किसानों का मोह भंग होने लगा है। जिन खेतों में पेड़ों पर संतरे लदे रहते थे वहां ठूंठ ही नजर आ रहे हैं। किसानों ने बड़ी संख्या में बगीचों पर कुल्हाड़ी चला दी है।
हालांकि पूरे जिले के हालात एक जैसे नहीं माने जा सकते लेकिन बड़े इलाके में लोग संतरे की खेती से दूरी बनाने लगे हैं। असनावर क्षेत्र के जूनाखेड़ा व अन्य गांवों में किसानों ने हजारों पेड़ों पर कुल्हाड़ी चला दी है। किसानों का कहना है कि यह खेती अब घाटे का सौदा साबित हो रही है। ऐसे में बड़े-बड़े बगीचों को कटवाना शुरू कर दिया है।
जिले के असनावर, अकलेरा, भवानी मंडी एवं झालरापाटन के आसपास का क्षेत्र खास तौर पर बड़ी मात्रा में संतरे का उत्पादन करता आया है लेकिन अब इस पूरे इलाके में संतरे के बगीचे सफेद हाथी साबित हो रहे हैं और मजबूरी में किसान इनको नष्ट कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यही हालात रहे तो आने वाले समय में झालावाड़ का संतरा अपनी पहचान खो देगा।
अपने बगीचे कटवा देने वाले किसान बताते हैं कि लगभग पिछले 10 वर्षों से संतरे का उत्पादन नहीं हो रहा है। अगर होता भी है तो इतना सा होता है कि उनके खर्च भी नहीं निकाल पाते तथा बगीचे लगे होने के कारण उनकी जमीन पड़त रह जाती है, उस पर दूसरी खेती भी नहीं कर पाते। ऐसे में अब किसान इन बगीचों को कटवा रहे हैं।
किसान बताते हैं कि संतरे के बगीचों में काली मस्सी नामक रोग जबरदस्त तरीके से फैल रहा है, इसका स्थायी निदान नहीं हो पता, वहीं कुछ किसान थर्मल पावर परियोजना से उड़ने वाली राख एवं मौसम के बदलाव को भी संतरा उत्पादन नहीं होने का कारण बताते हैं। असनावर क्षेत्र के किसान बलराम पाटीदार ने बताया कि उनका 65 बीघा जमीन पर संतरे का बगीचा था जिसको अब उन्होंने कटवा दिया है तथा मात्र 8 बीघा का बगीचा शेष रहा है।
जानकार बताते हैं कि झालावाड़ जिले में जो संतरा पैदा होता है वह कई विशेषताओं से भरपूर है। यहां के संतरे का स्वाद सबसे अच्छा होता है , वहीं छिल्का पतला होता है और आकार में बड़ा होता है। यहां के संतरे में जूस की मात्रा भी भरपूर होती है, इसी के चलते यह संतरा जूस उत्पादक कंपनियों की पहली पसंद बना हुआ है।
वर्ष क्षेत्रफल है.में उत्पादन एमटी में
2019-20 25416 328000
2020-21 23900 246480
2021-22 23900 430200
2022-23 23900 253600
2023-24 23900 310800
असनावर. किसी जमाने में उपखंड क्षेत्र के जूनाखेड़ा एवं बड़ोदिया पंचायत के अधिकांश गांवों में जनवरी, फरवरी के महीनों में खेतों में लगे हुए संतरे के बगीचों में जमकर चहल पहल रहती थी। गांवों में बड़े शहरों के कई संतरा व्यापारी गांवों में डेरा डाले रहते थे। जिससे जूनाखेड़ा, बड़ोदिया, आनंदा, धानोदा आदि गांवों के किसानों में आर्थिक समृद्धि आई थी। लेकिन अब यहां संतरे के बगीचों में फल नही आने से सन्नाटा पसरा रहता है। जूनाखेड़ा के किसान शिवप्रसाद पाटीदार, जीवन पाटीदार, देवलाल पाटीदार, पूनमचंद पाटीदार, जीतू पाटीदार आदि ने बताया कि पिछले करीब 8 से 10 सालों से क्षेत्र के कई हजारों बीघा कृषि भूमि में लगे संतरे के बगीचों में फलाव नही आ रहा है। जिससे इस क्षेत्र के किसानों का संतरे के बगीचे लगाने से मोह भंग होता जा रहा है। संतरे की पैदावार से मोह भंग होने के कारण क्षेत्र के किसान खरीफ की एवं रबी की फसल कटने के बाद हर साल संतरे के हजारों बीघा में लगे पौधों की कटाई करवा देते है। जिससे इन दिनों खेतों में संतरे के पौधे काटने के बाद फसलों के बीच दूर दूर तक ठूंठ ही ठूंठ नजर आ रहे है।
जिले में संतरा बगीचों के कटने का प्रमुख कारण काली मस्सी बीमारी व मौसम के प्रति इस फसल की अतिसंवदेनशीलता भी एक कारण है। वहीं किसानों द्वारा बगीचों का वैज्ञानिक विधि से उचित प्रबन्धन नहीं करना भी मुख्य कारण है। फिर भी अभी जहां संतरा है, वहां उच्छा उत्पादन हो रहा है। जिले का संतरा उच्च क्वालिटी का है। विदेशों में जिले के संतरे की काफी मांग है। अफल की स्थिति व किसानों द्वारा समय पर सार-संभाल नहीं करना है। इस बार 900 हैक्टेयर में नई पौध लगी है। सामूहिक रूप से काली मस्सी का उपचार करें किसान तो इससे निजात मिल सकती है।
रामप्रसाद मीणा, उप निदेशक, उद्यान, झालावाड़