झालावाड़.जिले की पहचान रहे गागरानीतोते को देश-विदेश में पहचान दिलाने के लिए एक बुनकर ने अपनी रचनात्मकता साड़ी पर दिखाई। तो ये हैंडलूम साड़ी इन दिनों खूब पसंद की जा रही है। इस साड़ी को बनाने वाले सांवलिया सेठ हथकरघा समिति को गत दिनों जिला स्तर पर प्रथम बुनकर पुरस्कार भी मिल चुका है। अब […]
सांवलिया सेठ हाथ करघा समिति के अध्यक्ष सुजानमल ने बताया कि जब हमसे बुनकर सेवा प्रशिक्षण केन्द्र के अधिकारियों द्वारा पूछा गया कि आपके यहां की प्रसिद्ध चीज क्या है, तो हमारे दिमाग में आया कि यहां झालावाड़ जिले के प्रसिद्ध दुर्ग गागरोन में गले में लाल कंठी वाला तोता बहुत ही प्रसिद्ध रहा है। अब उसकी पहचान लुप्त प्राय है। इसलिए उसकी पहचान को देश-विदेश में पहुंचाने के लिए इस पर ही साड़ी बनाने का काम किया। बंगाल से आए विशेषज्ञ डिजाइनरों ने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। तो हथकरघा की महिलाओं ने इस पर काम करना शुरू कर दिया, हालांकि इसमें समय लगा लेकिन ये काम अब आसान हो गया।
गागरोनीतोते की छवि साड़ी पर बनाने में समय बहुत लग रहा है। एक साड़ी को बनाने में 10 -12 का समय लग रहा है। एक साड़ी को बनाने में 11-12 सौ रुपए का खर्चा आ रहा है। लेकिन साड़ी बनने के बाद इसकी मांग जयपुर व चैन्नई तक की जा रही है। अभी तक महिलाओं द्वारा असनावर में ही 45 साड़ी बनाई जा चुकी है। इसकी मांग ओर भी आएगी तो और साडिय़ां बनाएंगे, ताकि जिले के प्रसिद्ध गागरोनीतोते को पहचान मिल सके। ये हमारे जिले का पेटेंट बन जाएं।
सुजानमल ने बताया कि एक साड़ी की कीमत 3 से 5 हजार रुपए तक है। जयपुर स्थित बुनकर सेवा केन्द्र में इसका पेटेंट कराया गया है,ताकि कोई भी इसकी हुबहू नकल नहीं कर सकें।ये पहल लुप्त होते इस प्रजाति के तोते के संरक्षण में कारगर होगी। साथ ही स्थानीय कला और शिल्प को भी बढ़ावा दे रही है।
गागरोनीतोते पर असनावर का हथकरधाकेन्द्र काम कर रहा है। सुजानमल को इसके लिए जिला स्तर पर मिलने वाला प्रथम पुरस्कार के तोर पर 5 हजार रूपए मिल चुका है। इससे स्थानीय कला को बढ़ावा मिलेगा साथ ही तोते का संरक्षण भी होगा।