वैज्ञानिकों का कहना है पंजाब और हरियाणा में सिंचाई युक्त कृषि अत्यधिक होने के कारण पानी जमीन से रिसता है और यह रिसाव सरस्वती नदी के चैनल्स को लगातार रिचार्ज कर रहा है।
गजेंद्र सिंह दहिया
कुछ दिन पहले जैसलमेर के मोहनगढ़ में 850 फीट ट्यूबवेल खुदाई के दौरान फूटे फव्वारे ने यहां सरस्वती नदी का चैनल होने के संकेत दिए हैं। यह वही क्षेत्र है जहां केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों को अपने रिसर्च के दौरान 1984 में हेलोक्सीलॉन सैलिकोर्निकम झाड़ी मिली थी।
इस झाड़ी को वैज्ञानिकों ने 5 मीटर तक खोदा, लेकिन इसकी जड़ और भी गहरी थी। उस समय संसाधन नहीं होने से अधिक खुदाई नहीं की जा सकी। काजरी के तत्कालीन वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार और विनोद कुमार ने इस झाड़ी की गहराई 8 से 10 मीटर बताते हुए एक रिसर्च प्रकाशित किया।
इस रिसर्च में इस क्षेत्र में सरस्वती नदी की भूमिगत धारा का प्रवाह होने की संभावना जताई थी। वैज्ञानिकों ने अनुसार यह झाड़ी वहीं पाई जाती है जहां पानी का कोई बड़ा स्रोत हो। यह झाड़ी जमीन पर आधा मीटर भी मुश्किल से निकलती, लेकिन जड़ पानी की तलाश में 10 मीटर तक जाती है।
सेवानिवृत्त प्रोफेसर और भूगोलवेत्ता प्रो नरपत सिंह राठौड़ ने मोहनगढ़ की घटना को तीन संभावनाओं में बांटा है।
वैज्ञानिकों का कहना है पंजाब और हरियाणा में सिंचाई युक्त कृषि अत्यधिक होने के कारण पानी जमीन से रिसता है और यह रिसाव सरस्वती नदी के चैनल्स को लगातार रिचार्ज कर रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले 10-20 साल में यहां चमत्कार हो सकता है।