नियमों को ताक में रखकर हो रहा जिले में रेत हुआ रेत का खनन, कहीं रोक दिया गया था बहाव तो कहीं बना लिए गए रैंप बंद खदानों से बेखौफ निकाली जा रही रेत, जलीय जीव-जंतुओं के साथ मानव जीवन के लिए भी पैदा किया गया संकट
कटनी. जिले में रेत का ठेका अक्टूबर माह से बंद हो चुका है। रायल्टी को लेकर ठेका कंपनी और सरकार के बीच तकरार का कोई हल नहीं निकला है। बंद खदानों से तीन माह से बेखौफ खनन जारी रहा है। अब जब खनन पर रोक लगी है तो जीवनदायनी कहीं जाने वाली जिले की दोनों प्रमुख नदी महानदी व उमराड़ नदी में मौत की खाइयां साफ नजर आने लगी हैं। नदियों के घाव साफ बयां कर रहे हैं कि किस तरह से 1990 से लेकर 2025 तक खनन कारोबारियों व माफियाओं ने कैसे नदियों के सीने व कोख को छलनी-छलनी किया है। कहीं पर नदी का बहाव रोककर तो कहीं पर रैंप बनाकर तो कहीं पर सडक़ डालकर नदियों से रेत निकालने का काम चल रहा है। निगरानी सिस्टम फेल होने व सांठगांठ की वजह से अबतक रेत निकालने का ठेका लेने वाली कंपनियों ने मनमाफिक रेत निकालने व बेचने का काम किया है।
जिले के बड़वारा, बरही व ढीमरखेड़ा तहसील क्षेत्र से होकर निकलने वाली महानदी व उमराड़ नदी में रेत की खदानें संचालित हो रही हैं। जिले में माइनिंग कार्पोरेशन के द्वारा 49 खदानें स्वीकृत की गई हैं, जिनसे रेत निकाली जा रही है। पूर्व में के वर्षों में इन्हीं खदानों में रेत का मनमाफिक खनन हो रहा है। 1990 से रेत निकासी का काम चल रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि आजतक मैदानी स्तर पर नियमों का पालन कराने जिम्मेदारों ने ध्यान नहीं दिया।
खनिज विभाग व जिला प्रशासन के दावों की बात की जाए तो रेत खनन का काम बंद है। धनलक्ष्मी प्रालि को 2023 में ठेका दिया गया था। कंपनी ने 65 करोड़ रुपए में 49 खदानों से रेत निकासी व विक्रय का ठेका लिया है। कंपनी ने अक्टूबर माह तक खदानें चलाईं, उसके पहले ही खदानें सरेंडर कर दीं। जिले में संचालित सभी 49 रेत खदानें सरेंडर कर दी थीं। कंपनी का तर्क था कि कॉस्टिंग के अनुसार रेत की गुणवत्ता नहीं और ना ही मात्रा मिल रही है। यह हावाला देकर टेंडर सरेंडर कर दिया गया है। बरही में दो, बड़वारा में तीन स्थान पर भंडारण की अनुमति ली गई थी, वहां से रेत बेचने का दावा किया गया है।
शेष बचे वित्तीय वर्ष में जबतक नई टेंडर प्रक्रिया नहीं हो जाती तो समीपस्थ जिले के ठेकेदार व पुराने ठेकेदार को पुराने टेंडर पर रेत रेत निकालने की अनुमति दी जानी है। धनलक्ष्मी को नवंबर माह में ऑफर लेटर भी जारी किया गया है, लेकिन अनुबंध न होने के कारण अबतक कंपनी ने खनन नहीं शुरू किया।
बड़वारा, बरही व विजयराघवगढ़ क्षेत्र में रेत निकासी में कहीं पर मानकों का पालन नहीं हुआ। कहीं पर नदी के बहाव को रोककर तो कहीं पर रैंप बनाकर बीच नदी में बड़ी-बड़ी चेन मशीनें लगाकर रेत निकाली गई। नदी के जीवों को तो खत्म किया ही गया, साथ ही मानव जीवन के लिए भी संकट पैदा करने का काम रेत कंपनियों ने किया है।
नदियों में रेत निकासी के नाम पर जमकर सीना चीरा गया है। इससे क्षेत्र में पेयजल समस्या, सिंचाई कार्य, निस्तार सबकुछ प्रभावित हुआ है। कुम्हरवारा में दर्दनाक घटना भी हो चुकी है। जेसीबी सहित बड़ी मशीनें लगाकर रेत निकाली जा रही है, जिससे नदियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है। जहां-जहां पर खदानें हैं उसके आसपास कई किलोमीटर तक लोग निस्तार नहीं कर पा रहे।
राहुल चौधरी, ग्रामीण।
विशेषज्ञ वीके द्विवेदी का कहना है कि नदी का प्राकृतिक प्रवाह रोकने से नदी की गहराई और दिशा बदल जाती है, जिससे बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ता है, रेत की परत हटने से भूजल का स्तर नीचे चला जाता है, जिससे कुएं और हैंडपंप सूखने लगते हैं, जैव विविधता को नुकसान होता है, मछलियों, कछुओं और अन्य जलीय जीवों के अंडे व आवास नष्ट हो जाते हैं, नदी किनारे की भूमि कटने लगती है, जिससे खेत, सडक़ें और घर खतरे में पड़ जाते हैं। सिंचाई की व्यवस्था प्रभावित होती है, उपजाऊ भूमि का क्षरण होता है, गांवों और कस्बों में पीने के पानी की भारी कमी हो जाती है, गहरे गड्ढे बनने से नहाते समय डूबने की घटनाएं बढ़ती हैं, धूल, शोर और प्रदूषण से लोगों में सांस व त्वचा संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं, अवैध खनन से सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान होता है। स्थानीय आजीविका पर असर पड़ता है, मछुआरे और नदी पर निर्भर समुदाय बेरोजगार हो जाते हैं।
जिले में अक्टूबर माह से रेत खदानों से खनन बंद है। अक्टूबर के बाद से अवैध खनन व परिवहन की सूचना पर 15 स्थानों पर रेत के अवैध खनन, परिवहन व ओवर लोड पर कार्रवाई विभाग ने की है। जिले में 20 साल पुरानी खदानें हैं, जहां पर रेत निकाली जा रही है। खाइयां पूर्व के वर्षों की हैं। वर्तमान में नदी की संरचना प्रभावित न हो, इसकी निगरानी कराई जा रही है।