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डोली, खाट और बाइक पर जिंदगी, आज भी बस के इंतजार में आदिवासी गांव

आजादी के सात दशक बाद भी ढीमरखेड़ा के आदिवासी अंचल के कई गांवों में नहीं बस की सुविधा

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कटनी

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Balmeek Pandey

Dec 28, 2025

Bus

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कटनी. आजादी के सात दशक बाद भी ढीमरखेड़ा के आदिवासी अंचल के कई गांव ऐसे हैं, जहां बस सुविधा आज तक नहीं पहुंच सकी। नतीजा यह कि बीमार पड़े तो कभी डोली, कभी खाट और कभी मोटरसाइकिल ही सहारा बनती है। थोड़ी सी देरी जानलेवा साबित हो जाती है। रोजमर्रा के छोटे-छोटे कामों के लिए भी ग्रामीणों को संघर्ष करना पड़ता है और छात्र-छात्राओं की पढ़ाई बस सुविधा के अभाव में प्रभावित हो रही है। हालात ऐसे हैं कि यहां तीन पीढिय़ां बुजुर्ग, युवा और बच्चे एक ही पीड़ा झेल रही हैं।

जानकारी के अनुसार ढीमरखेड़ा क्षेत्र के रामपुर के आगे तिलमन, शिवनी और सगौना जैसे गांवों में आज तक नियमित बस सेवा शुरू नहीं हो सकी। कुछ मार्ग अब भी खस्ताहाल हैं, जिससे स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों को सबसे ज्यादा दिक्कत उठानी पड़ती है। बस सेवा न होने से युवाओं का भविष्य भी अधर में है। कॉलेज, प्रतियोगी परीक्षाएं और नौकरी के अवसर दूरी और साधन के अभाव में छूट जाते हैं। रोजाना निजी साधन किराये पर लेना या लोडर वाहनों से सफर करना मजबूरी बन चुका है, जो न तो सुरक्षित है और न ही सस्ता।

सडक़ विहीन गांव, जोखिम भरा इलाज

सिलौड़ी क्षेत्र के पहाड़ पर बसे ग्राम गोरी में सडक़ निर्माण 2016-17 से अधूरा है। ग्रामीण लक्ष्मण जयसिंह ने बताया कि यहां बीमारों और बुजुर्गों को झोली-डोली से लाने की घटनाएं आम हैं। हाल की बारिश में एक गर्भवती महिला की पहाड़ पर ही डिलीवरी हुई। जच्चा-बच्चा को मोटरसाइकिल से मुख्य मार्ग तक लाया गया। टिकरी टोला, झकाझोर और सगमा में कच्ची सडक़ों के कारण एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती। इस वर्ष जंगली सूअर के हमले में घायल बुजुर्ग को खाट पर ढोना पड़ा।

खमतरा क्षेत्र में भी वही तस्वीर

रिटायर्ड कृषि विस्तार अधिकरी व भारतीय किसान संघ से जुड़े सतीश ज्योत्षी बताते है कि उमरपानी, छाहर, कोड़ों, अतरिया, हरदुआ, कोकोडबरा, भलवारा, मोहदा, मुहदी, भरतपुर, आमा, झाल सहित कई गांवों तक सडक़ है, पर बसें नहीं पहुंचतीं। कुंसरी-पड़रिया मार्ग पर भी बस संचालन नहीं है। कचनारी, मझगामा, छीतापाल, कारोपानी, मुखास, धनवाही, करौंदी, मुड़ीखेड़ा जैसे गांवों में स्थिति जस की तस बनी हुई है।

लोडर बना ‘बस’, खतरे में जान

कोरोना काल में बसें बंद होने के बाद कुछ ग्रामीणों ने दोपहिया खरीदे, लेकिन बड़ी आबादी आज भी साधनविहीन है। अब्दुल कादिर खान बताते है कि मजबूरी में लोग लोडर वाहनों से सफर करते हैं, जिससे दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। पूरे ढीमरखेड़ा तहसील में पर्याप्त संख्या में ऑटो संचालन भी नहीं है।