Thousands of people migrated to work as laborers
कटनी. सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर नहीं हो रहा है। गांव-गांव रोजगार देने के दावों की हकीकत कटनी जंक्शन पर लगी मजदूरों की भीड़ बयां कर रही है। यहां मजदूरों का कुंभ नजर आ रहा है। एक-दो नहीं बल्कि छह जिलों से हजारों मजबूर मजदूर गांव-घर छोडकऱ परिवार सहित पलायन कर पहुंचे है। श्रमिकों की संख्या इतनी अधिक है कि रोजाना चलने वाली ट्रेनों से आवागमन करना मुश्किल हो रहा है। मजबूरीवश रेलवे को मजदूर स्पेशल ट्रेन चलानी पड़ रही है, जिससे मजदूरों को भेजा जा सके।
जानकारी के अनुसार कटनी/मुड़वारा रेलवे स्टेशन में हजारों की संख्या में श्रमिक कटनी सहित सतना, मैहर, उमरिया, शहडोल व पन्ना जिला से पहुंचे है। उमरिया जिले के अमरपुर निवासी श्रमिक रामबकस आदिवासी बताते है कि गांव में इन दिनों रोजगार नहीं मिल रहा है। रोजगार मिलता है तो 150 से 200 रुपए मजदूरी मिलती है। ऐसे में परिवार का भरण-पोषण मुश्किल से हो पाता है। मजबूरीवश घरों में ताला बंद कर काम की तलाश में जा रहे है। इन मजदूरों के साथ उनका परिवार भी है, जिनमें छोटे-बड़े बच्चे और घर के बड़े-बुजुर्ग शामिल है। मजदूर फूलचंद कोल बताते है कि बड़ों को काम मिल जाता है इसलिए सभी जा रहे है। सतना के ग्राम रतवार निवासी कौशल्य कोल ने कहा कि बच्चे किसके भरोसे घर में रहेंगे, इसलिए इनको भी लेकर जाते है। कई मजदूरों के बच्चे स्कूलों में पढ़ते भी है लेकिन शिक्षा से ज्यादा रोजी-रोटी की मजबूरी पढ़ाई में आड़े आ रही है। पन्ना जिले के शाहनगर की श्रमिक आरती बाई ने कहा कि भैया भूखे पेट पढ़ाई नहीं होती। पढ़-लिखकर भी इन्हें नौकरी तो मिलनी नही है।
कटनी से फसलों की कटाई के लिए जा रहे
जानकारी के अनुसार हजारों की संख्या में ये मजदूर सागर, खुरई, बीना आदि क्षेत्र में जाकर फसलों की कटाई करने के लिए पहुंचते हैं। दो माह तक यहां पर फसलों की कटाई करके भरण पोषण के लिए राशि जुटाते हैं। 2 महीने के बाद धान की कटाई कर अपने-अपने गांव मजदूर आ जाते हैं। यह सिलसिला गेहूं की कटाई के समय भी होता है।
गांव में 150, बाहर 350 रुपए मजदूरी
मैहर जिले के झुकेही निवासी श्रमिक राजेन्द्र कोल ने बताया कि गांव में सरकारी योजना में रोजगार नहीं मिलता। बारिश में अधिकांश काम बंद पड़े है। आसपास काम पर भी जाएं तो 150 से 200 रुपए मिलता है लेकिन कटाई के काम में 350 रुपए प्रतिदिन मिल जाता है। पूरे महीने काम मिलता है, जिससे कुछ पैसा बचत में भी जमा रहता है। पत्नी और बच्चों को साथ लेकर जाते है, जिससे परिवार की चिंता नहीं रहती।
बेटियां छोड़ देती है पढ़ाई
मजदूरों के बीच बड़ी संख्या में किशोरियां भी है, जो सर पर बोझा रखकर स्टेशन में प्रवेश करते नजर आईं। पूछने पर मैहर के बदेरा की शालिनी आदिवासी बताती है कि उसने 10वीं तक पढ़ाई की है लेकिन अब स्कूल नहीं जाती। माता-पिता के साथ खेत पर तो कई बार बाहर इसी तरह मजदूरी करने जाती है। अधिकांश बलिकाएं यहां कक्षा पांच व आठ तक पढ़ी हुई है, ऐसा बताया गया।
कटनी में इसलिए लगा मजदूरों का मेला
कटनी सहित सतना, मैहर, उमरिया, शहडोल व पन्ना से हजारों की संख्या में रोजगार के लिए जा रहे इन मजदूरों का सेंटर प्वाइंट कटनी है। यहां से ही इन्हें बीना रेलखंड के लिए ट्रेन पकडऩी होती है। चारपहिया व बसों से बड़ी संख्या में सीजन में पहुंचे श्रमिकों के कारण कटनी/मुड़वारा स्टेशन का नजारा मेला की तरह बना हुआ है।
दो-तीन से डेरा, यहीं पका रहे भोजन
गंतव्य तक जाने के लिए मजदूरों को ट्रेनें भी मिला मुश्किल हो रहा है। मुड़वारा स्टेशन में दो से तीन दिनों से कई मजदूर परिवार सहित डेरा डाले हुए हैं। सर्कुलेटिंग एरिया में खाना बना-खा रहे हैं। एक-दो ट्रेन आने पर चढऩे का प्रयास करते हैं, नहीं चढ़ पाते तो फिर डेरा डाल लेते हैं।
बोझा लिए खड़े रहते हैं मजदूर
प्लेटफॅार्म पर जैसे ही ट्रेन आने का अलाउंसमेंट होता है कि सागर-बीना की ओर जाने के लिए कोई ट्रेन आ रही है तो मजदूर डेरे का बोल झेलकर 15 मिनट पहले से ही खड़े हो जाते हैं। सवार होने खूब जद्दोजहद करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही।कई ट्रेनों में यात्री ठूंस-ठूंसकर भर जाते है तब ट्रेन को रवाना किया जा रहा है।
चलने से पहले ही फुल हुई स्पेशल ट्रेन
पिछले एक सप्ताह से जंक्शन पर मजदूरों की भीड़ होने व उनके प्रतिदिन चलने वाली ट्रेनों में सफर न कर पाने की सूचना जब जबलपुर में रेलवे के अफसरों तक पहुंची तो उन्होंने मजदूर स्पेशल ट्रेन चलाने का निर्णय लिया। शनिवार सुबह कटनी स्टेशन से ट्रेन बीना के लिए निर्धारित करते हुए रवाना की गई तो ट्रेन चलने से पहले ही ओवरलोड हो गई। कटनी से दो किलोमीटर दूर जब ट्रेन मुड़वारा स्टेशन पहुंची तो यात्रियों में ट्रेन में सवार होने भगदड़ मच गई। मौके पर आरपीएफ व जीआरपी के जवानों को तैनात करना पड़ा। किसी तरह ट्रेन को रवाना किया गया। स्पेशल ट्रेन के चलने के बाद भी हजारों की संख्या में अभी भी मजदूर सफर के लिए कटनी/मुड़वारा स्टेशन पर मौजूद हैं।
मजदूरों ने बयां की पीड़ा
गांव में काम नहीं मिल रहा, मनरेगा में काम करो तो समय से मजदूर नहीं मिलती। परिवार पालने के लिए बाहर मजदूरी करने जाने की मजबूरी है। स्थानीय स्तर पर काम मिले, इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा।
रामबकस आदिवासी, अमरपुर, उमरिया
भूखे पेट पढ़ाई नहीं होती। सरकार से जितना अनाज मिल रहा है उससे गुजारा नहीं है। गांवों में काम भी नहीं मिलता। भरण-पोषण के लिए बाहर मजदूरी करने जाना पड़ रहा है। स्थानीय स्तर पर रोजगार न मिलने से बाहर जा रहे हैं।
फूलचंद कोल, उमरिया
गांव में काम तो मिलता है लेकिन दाम नहीं मिल रहा। 150 रुपए मजदूरी में परिवार चलाना मुश्किल है। सरकार की योजना का लाभ मिल रहा है लेकिन उससे परिवार नहीं चलता। इसलिए गांव-घर छोडऩा पड़ता है।
मालगुजार कोल, रतवार, सतना
खुद के पास खेती के लिए जमीन होती तो दूसरे के खेत में कटाई करने क्यों जाते। सरकार राशन देती है तो क्यों सिर्फ उससे गुजारा होगा। परिवार के खर्च भी होते है। बच्चे स्कूल जाते है लेकिन सीजन में उन्हें भी साथ लेकर मजदूरी के लिए जाना पड़ता है।
कौशल्या बाई, सतना