Mau bypoll 2025: मऊ सदर विधानसभा सीट पर होने वाले संभावित उपचुनाव को लेकर पूर्वांचल में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। हालांकि अंतिम फैसला अभी कोर्ट के निर्णय पर टिका है, लेकिन ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा को एक तरह से नज़रअंदाज़ करते हुए अपनी पार्टी की ओर से इस हॉट सीट पर दावेदारी पेश कर दी है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में मऊ सदर विधानसभा सीट सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि सत्ता, बाहुबल और जातीय समीकरणों का ऐसा अखाड़ा है, जो दशकों से राजनीतिक समीकरण तय करता रहा है। अब जब अब्बास अंसारी की विधायकी भड़काऊ भाषण मामले में रद्द हो गई है, तो यहां संभावित उपचुनाव की चर्चा तेज हो गई है। सियासी जमीन एक बार फिर से खदबदाने लगी है।
सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने मऊ विधानसभा उपचुनाव लड़ने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। सूत्रों के अनुसार ओम प्रकाश राजभर इस सीट से अपने बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते हैं, लेकिन लगता है बीजेपी इस लिए तैयार नहीं है। फिलहाल जवाब छोटे नेता दे रहे हैं और बीजेपी के शीर्ष नेता चुप्पी साधे हुए हैं।
बता दें कि यह सीट माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने से खाली हुई है। इसके बाद उपचुनाव की चर्चा तेज हो गई है। 2022 में अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर मऊ से जीत हासिल की थी। ऐसे में राजभर का दावा सही भी है, लेकिन उस समय सुभासपा का गठबंधन सपा के साथ था। बीजेपी मुख्तार अंसारी के बेटे वाली सीट ऐसे ही छोड़ दे, ऐसा फिलहाल इतना आसान नहीं है।
मऊ सदर सीट पर संभावित उपचुनाव को लेकर सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने अपने बेटे को चुनाव लड़ाने का दावा ठोका है। हाल ही में उन्होंने एक जनसभा में कहा था कि 2022 में उनकी पार्टी ने यह सीट जीती थी और इस बार भी मजबूती से चुनाव लड़ेगी, लेकिन अंसारी परिवार से किसी को टिकट नहीं मिलेगा। इस पर मऊ के बीजेपी अध्यक्ष रामाश्रय मौर्य ने पलटवार करते हुए कहा था कि बीजेपी इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। हमारी पार्टी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेगी। केवल ओम प्रकाश राजभर के कहने से उन्हें टिकट नहीं मिल जाएगा। किसी भी सीट पर , लेकिन यह कहना कि छड़ी को टिकट मिलेगा, ऐसा कुछ नहीं है।
रामाश्रय मौर्य ने संकेत दिया कि भाजपा इस सीट पर अपने पुराने उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह पर दांव लगा सकती है। अशोक कुमार सिंह ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अब्बास अंसारी को कड़ी टक्कर दी थी।
दिलचस्प बात यह है कि यह विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 35% हिस्सा हैं। यह वोट बैंक मुख्तार अंसारी परिवार के साथ लंबे समय से जुड़ा रहा है। मुख्तार ने यह सीट दो बार बीएसपी के टिकट पर (1996 और 2017), दो बार निर्दलीय (2002 और 2007) और एक बार कौमी एकता दल (QED) के टिकट पर (2012) जीती थी। 2022 में जेल में बंद होने की वजह से उन्होंने अपने बेटे अब्बास अंसारी को मैदान में उतारा और SBSP (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के टिकट से ऐतिहासिक जीत दिलाई।
अब्बास अंसारी ने भाजपा के अशोक सिंह को हराकर यह साबित कर दिया कि मऊ में अभी भी अंसारी परिवार की मजबूत पकड़ है। लेकिन 31 मई 2025 को अदालत ने अब्बास को एक भड़काऊ भाषण के मामले में दो साल की सजा सुनाई और जुर्माना लगाया। इसके बाद उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई। इसी के साथ मऊ सीट खाली हो गई।
मऊ सदर विधानसभा का पहला चुनाव 1957 में हुआ था। इस सीट से पहली बार 1957 में कांग्रेस की बेनी बाई ने चुनाव जीता था, लेकिन वह ज्यादा दिन तक विधायक नहीं रह सकीं। 1957 में ही उपचुनाव हुआ और कांग्रेस के सुदामा प्रसाद गोस्वामी विधायक बने। उसके बाद 1962 में एक बार फिर बेनी बाई ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1967 में यह सीट जनसंघ के बृज मोहन दास अग्रवाल ने कांग्रेस से छीन ली। इसके बाद 1969 में भारतीय क्रांति दल के हबीबुर्रहमान विजयी हुए। 1974 में अब्दुल बाकी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) से जीत दर्ज की। 1977 में राम जी ने जनता पार्टी के टिकट पर यह सीट अपने नाम की। 1980 में खैरुल बशर ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता।
इसके बाद से ही इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशियों का वर्चस्व कायम हो गया। 1985 में अकबाल अहमद ने CPI से जीतकर पार्टी की वापसी कराई। 1989 में मोबिन अहमद ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) को इस सीट पर पहली बार जीत दिलाई। 1991 में इम्तियाज अहमद ने फिर से CPI के लिए यह सीट जीती, लेकिन 1993 में नसीम खान ने BSP को दोबारा विजय दिलाई।1996 में पहली बार बाहुबली मुख्तार अंसारी को मऊ विधानसभा से बसपा ने प्रत्याशी बनाया और अंसारी भारी मतों से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद अंसारी ने पलटकर नहीं देखा और लगातार इस सीट पर अंसारी परिवार का दबदबा रहा।