नवम्बर के 15 दिन बीते, फिर भी एमएसपी खरीद की तारीख घोषित नहीं, सरकार के दावे थोथे साबित, नीयत पर उठे सवाल, किसानों को प्रति क्विंटल उठाना पड़ रहा दो से तीन हजार का नुकसान
नागौर. जिले में मूंग की फसल काटकर निकाले हुए डेढ़ से दो महीने हो चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार अब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की तारीख घोषित नहीं कर पाई है। नतीजतन किसानों के घरों में रखे मूंग में घुन लगने लगा है और बाजार में ऊंट के मुंह में जीरा जितना दाम मिल रहा है।
सरकार जहां खुद को किसान हितैषी बताने के दावे करती नहीं थकती, वहीं जमीनी हकीकत किसानों की उम्मीदों और भरोसे पर ताला लगा रही है। हालत यह है कि नागौर सहित पूरे क्षेत्र में मूंग 4 हजार से 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव में बिक रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने मूंग की एमएसपी 8,768 रुपए तय की है। किसानों को सीधे-सीधे प्रति क्विंटल 2 से 3 हजार रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि चुनावी मंचों पर ‘किसानों की सरकार’ का नारा देने वाली भाजपा सरकार अब किसान के दर्द को सुनने को तैयार ही नहीं है।
किसानों की पीड़ा सुनो सरकार
किसी के घर में शादी-ब्याह है तो किसी ट्रेक्टर का भाड़ा व खाद-बीज का उधार चुकाना है। एक महीने तक सरकार का इंतजार कर लिया, अब पता चल गया कि सरकार की नीयत सही नहीं है। इसलिए मजबूरी में मंडी में मूंग बेचने आया हूं। खराब मूंग होने के बावजूद व्यापारी खरीद तो रहे हैं, यह भी किसान के लिए राहत है।
- राधेश्याम, किसान, मूण्डवा
बेमौसम बारिश होने से जिले में लगभग मूंग खराब हो गया, जिसके कारण मंडी में प्रति क्विंटल चार से पांच हजार रुपए के भाव मिल रहे हैं। यदि सरकार एमएसपी पर मूंग खरीदती तो किसानों को बड़ी राहत मिल सकती थी, लेकिन सरकार का रवैया देखकर नहीं लगता कि इस बार एमएसपी पर खरीद होगी।
- दुलाराम, किसान, कालड़ी
एमएसपी खरीद के नाम पर सरकार गुमराह कर रही है। बड़ी मुश्किल से टोकन काटने शुरू किए और दो दिन में ही बंद कर दिए। अब खरीद नहीं कर रही है, मजबूरी में किसान को मंडी में तीन से चार हजार रुपए प्रति क्विंटल मूंग बेचना पड़ रहा है। यह सरकार की नीति है, बातें डबल इंजन सरकार की कर रही है और किसान की पीड़ा सुनाई नहीं दे रही है।
- प्रेमाराम, किसान, इनाणा
वोटों में नजर आता है किसान
शनिवार को नागौर मंडी में इनाणा से आए किसान हड़मानराम ने सरकारी व्यवस्था से परेशान होकर सरकार पर जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा, ‘सरकार को सिर्फ वोट के समय किसान दिखाई देता है, बाकी समय हमारी फसल, हमारा नुकसान किसी को दिखाई नहीं देता। अगर खरीद शुरू नहीं करनी थी तो पहले ही बोल देते, हम भी देख लेते बाजार में कैसे बेचें।’ गांवों में किसान अब मजबूरी में दलालों को अपनी उपज औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं। भंडारण की सुविधा सीमित है और जहां है, वहां मूंग जल्द खराब होने लगती है। घुन का असर बढ़ता देख किसान बेचने को मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि सरकार की चुप्पी से उन्हें कोई उम्मीद नहीं बची है।
अंदर की बात - सरकार के पास पैसा नहीं
किसानों का आरोप है कि सरकार जानबूझकर खरीद में देरी कर ही है, ताकि किसान थक-हारकर ज्यादातर फसल मंडी में बेच दे और सरकार को कम से कम खरीदना पड़े। व्यवस्था से जुड़े एक अधिकारी ने यहां तक कहा कि सरकार के पास मूंग खरीदने का पैसा नहीं है, ताकि सरकारी खरीद का बोझ कम पड़े। इसलिए टाइमपास कर रही है। किसान इसे खुली लापरवाही के साथ ‘नीतिगत ढिलाई नहीं बल्कि नीयत की खामी’ बता रहे हैं।
किसान शासन-प्रशासन से पूछ रहा - कब होगी खरीद
प्रदेश में सबसे अधिक मूंग उत्पादन करने वाले नागौर जिले के किसान सरकार से पूछ रहे हैं कि क्या मूंग की फसल सिर्फ भाषणों में खरीदने के लिए है? असल में खरीद कब होगी? सरकार की खामोशी से गुस्सा बढ़ता जा रहा है और किसान मांग कर रहे हैं कि तुरंत खरीद की तारीख घोषित की जाए, वरना आंदोलन की राह अपनानी पड़ेगी। कुल मिलाकर, मूंग में घुन लगने से ज्यादा नुकसान किसान के भरोसे को और किसान की उम्मीदों में लग रहा है और इसकी जिम्मेदार केवल और केवल सरकार है।