Supreme Court on SIR: सुप्रीम कोर्ट ने SIR पर बड़ी राहत देते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि 1 सितंबर की समय सीमा के बाद भी दावों और आपत्तियों को स्वीकार किया जाए।
बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची से हटाए गए लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (आज) को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि 1 सितंबर की समय सीमा के बाद भी दावों और आपत्तियों को स्वीकार किया जाए। यह फैसला बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) से पहले मतदाता सूची को और समावेशी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जॉयमाला बागची और विपुल एम. पंचोली शामिल थे, ने चुनाव आयोग की उस दलील पर ध्यान दिया कि 1 सितंबर के बाद भी दावों और आपत्तियों पर विचार किया जाएगा। आयोग ने स्पष्ट किया कि अंतिम मतदाता सूची तैयार होने तक, यानी नामांकन की अंतिम तारीख तक, वैध आवेदनों को स्वीकार किया जाएगा। कोर्ट ने इस बयान को दर्ज करते हुए कहा कि समय सीमा बढ़ाने से प्रक्रिया अनिश्चितकाल तक खिंच सकती है, जिससे चुनावी प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
चुनाव आयोग ने बिहार में 24 जून 2025 को विशेष गहन संशोधन (SIR) शुरू किया था, जिसके तहत मतदाता सूची से करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए। इस प्रक्रिया को राष्ट्रीय जनता दल (RJD), AIMIM, CPI(ML) और अन्य संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इससे गरीब, दलित, और प्रवासी मतदाताओं को नुकसान हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को आदेश दिया था कि मतदाता सूची में शामिल होने के लिए आधार कार्ड या 11 अन्य स्वीकार्य दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन दावे जमा किए जा सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस प्रक्रिया को मतदाता-अनुकूल बनाया जाए। हालांकि, RJD ने अपनी याचिका में दावा किया कि कई जगहों पर आधार कार्ड को स्वीकार नहीं किया जा रहा है, जो कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि बिहार में 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.5% ने अपनी पात्रता के दस्तावेज जमा कर दिए हैं। शेष मतदाताओं को सात दिनों के भीतर नोटिस जारी किए जा रहे हैं। आयोग ने यह भी कहा कि SIR प्रक्रिया पारदर्शी है और इसमें कोई गलत बहिष्करण नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर आश्चर्य जताया और कहा कि 1.68 लाख बूथ-स्तरीय एजेंट्स (BLAs) होने के बावजूद केवल दो आपत्तियां दर्ज की गईं। कोर्ट ने सभी 12 प्रमुख दलों को निर्देश दिया कि वे अपने कार्यकर्ताओं को मतदाताओं की मदद के लिए सक्रिय करें।
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को निर्धारित की है। तब तक राजनीतिक दलों को अपने द्वारा सहायता किए गए दावों की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है। बिहार की अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी, और संभावित तौर पर नवंबर में विधानसभा चुनाव होंगे।