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Luthra Brothers से अब गोवा में होगी पूछताछ, जानिए हडसन लेन से लूथरा भाइयों का कनेक्शन

Romeo Lane Luthra Brothers: जानिए उस जगह का इतिहास जहां से रोमियो लेन के मालिक सौरभ और गौरव लूथरा ने शुरू किया था अपना कारोबारी सफर।

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लूथरा भाइयों को करीब 10 दिन बाद भारत लाया जा सका। (AI Image)

Luthra Brothers अब गोवा पुलिस की गिरफ्त में हैं। 17 दिसम्बर को गोवा पुलिस सौरभ और गौरव लूथरा को दिल्ली से गोवा ले गई। अब उनसे वहीं पूछताछ होगी। गोवा के अरपोरा स्थित बर्च बाय रोमियो लेन में आग से 25 लोगों की मौत के करीब दस दिन बाद क्लब के मालिक सौरभ और गौरव लूथरा भारतीय पुलिस की गिरफ्त में आए। दोनों को थाइलैंड से भारत लाया गया। मंगलवार (16 दिसम्बर) दोपहर नई दिल्ली में जहाज से उतरते ही दोनों को गोवा पुलिस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। फिर कोर्ट ने दोनों भाइयों को ट्रांज़िट रिमांड में भेज दिया।

दोनों भाइयों ने इन मौतों से अब तक पल्ला झाड़ा हुआ है। इन मौतों की जिम्मेदारी इन पर आएगी या नहीं, इस बारे में अभी कुछ कहा भी नहीं जा सकता है।

लूथरा ब्रदर्स का हडसन लेन से क्या है कनेक्शन

दिल्ली का हडसन लेन ही वह जगह है, जहां से लूथरा भाइयों का कारोबारी सफर शुरू हुआ था। इस हडसन लेन का इतिहास आपको बताते हैं।

हडसन लेन का नाम एक ब्रिटिश मेजर विलियम स्टीफन रेक्स हडसन के नाम पर है। उस मेजर ने 1857 के विद्रोह को बुरी तरह कुचल दिया था। हडसन ने उस दौरान बहादुर शाह जफर के बेटों और पोते का सिर सरेआम कत्ल करवा दिया था। मिर्जा मुगल, मिर्जा खिज्र सुल्तान और मिर्जा अबू बकर (पोता) ने मेजर हडसन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

22 सितंबर, 1857 को हडसन उन्हें बैलगाड़ी में लाल किला ले जा रहा था। खूनी दरवाजा पार करते वक्त उनके काफिले को स्थानीय लोगों ने घेर लिया। लोग सर पर कफन (सफेद कपड़ा) बांध कर आए हुए थे। हडसन परेशान हो गया। उसने तीनों के सर कलम करने का हुक्म दे दिया। इसके बाद उनकी लाशें चांदनी चौंक पर खुले में रखवा दीं।

खूनी दरवाजा मध्य दिल्ली में फिरोज शाह कोटला स्टेडियम के पास है। यह दरवाजा (गेट) सड़क के बीचोंबीच है। अंग्रेजों ने यहां छह शहजादों को कत्ल कर दिया था और तीन के सिर इसी गेट से टंगवा दिए थे।

आउट्रम लाइंस की कहानी

अंग्रेजों के जमाने में 1857 के विद्रोह के वक्त हडसन लेन और आउट्रम लाइंस में बैरक बनाए गए थे। 1947 में देश के बंटवारे के बाद इस इलाके में विशाल शरणार्थी शिविर बनाए गए थे। किंग्सवे कैंप इलाके में यह शिविर बनाया गया था। आज के जीटीबी नगर (गुरु तेग बहादुर नगर) के इस इलाके में हडसन लेन, आउट्रम लाइंस, हकीकत नगर आदि आते थे। बाद में शरणार्थी यहां घर बना कर रहने लगे। आगे चल कर दिल्ली विकास प्राधिकरण ने इन इलाकों को विकसित किया और लोगों को रहने की जगह दी।

लूथरा भाइयों ने कैफे कारोबार की शुरुआत हडसन लेन से की थी तो उनका घर आउट्रम लाइंस में है। बताया जाता है कि उनके परिवार को यहां रहते 35 साल हो गए हैं। उन्होंने चार मंजिल का आलीशान घर बनाया हुआ है।

हिट हुआ रोमियो लेन

सौरभ और गौरव लूथरा ने हडसन लेन में करीब एक दशक पहले मामा'स बुओई नाम से एक छोटा-सा कैफे खोला था। इस इलाके में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों की भीड़ के चलते कैफे चल निकला। इसी के साथ लूथरा भाइयों की गाड़ी भी दौड़ पड़ी। फिर एक के बाद एक कैफे खुलते गए। दिल्ली के सिविल लाइंस में पहला रोमियो लेन खुला। देखते ही देखते रोमियो लेन की चेन बन गई। कुछ ही साल में इसके करीब ढाई दर्जन आउटलेट खुल गए। लूथरा भाइयों पर एक ही पते से 42 कंपनियां चलाने का भी आरोप है।

25 मौतों का कोई अफसोस नहीं

लूथरा भाइयों को उनके क्लब में लगी आग से हुई 25 मौतों का कोई अफसोस है, ऐसा नहीं लगता। उनके वकील ने अदालत में साफ इससे पल्ला झाड़ लिया और कहा कि क्लब के रोजमर्रा के कामकाज में भाइयों का कोई दखल नहीं है। ऐसे में मरने वालों के परिवार को इंसाफ दिलाने का दारोमदार पुलिस व जांच एजेंसियों पर आ जाता है।

अब तक क्या हुआ

घटना छह दिसम्बर की रात हुई। इसमें मरने वाले 20 तो क्लब के स्टाफ बताए जाते हैं और पांच टूरिस्ट थे। घटना के शुरुआती कारणों में बताया जाता है कि अंदर जो आतिशबाज़ी हुई, उसी से आग लगी। फर्नीचर और दूसरी ज्वलनशील चीजों की वजह से आग तेजी से फैली। आग बुझाने का उचित इंतजाम नहीं था और लोग भाग भी नहीं पाए। इस वजह से बड़ी संख्या में लोग मर गए।
आग की खबर लगते ही क्लब के मालिक सौरभ और गौरव लूथरा थाइलैंड चले गए। एक पार्टनर को दिल्ली में पकड़ा गया। लूथरा भाइयों का पता लगाने के लिए लुक-आउट सर्कुलर और इंटरपोल ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी किया गया। अंत में दोनों को थाइलैंड के फुकेट में पकड़ा गया। फिर 16 दिसम्बर को उन्हें भारत लाया गया।
इस बीच लूथरा भाइयों पर ‘बुलडोजर एक्शन’ भी हुआ। गोवा में उनका एक दूसरा क्लब था। कहा गया वह अवैध निर्माण है। उसे तोड़ दिया गया।

…पर सबक लेंगे क्या?

इस हादसे के बाद भी यह सवाल बना हुआ ही है कि क्या हम सबक लेंगे? मौज-मस्ती की जगह पर लोगों की सुरक्षा को गंभीरता से लेंगे? सवाल इसलिए, क्योंकि ऐसे हादसे अक्सर सामने आते ही रहते हैं। बीते साल ही राजकोट (गुजरात) के अम्यूजमेंट पार्क आर्केड में आग लगने से 27 लोग मर गए थे।
2019 में करोल बाग (दिल्ली) के होटल अर्पित पैलेस में आग लगने से 17 जानें गईं थीं। 2018 में कमला मिल्स (मुंबई) के रूफटॉप पब/रेस्तरां में आग से 14 लोग मर गए थे। 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में आग की वजह से 59 लोगों की मौत हुई थी।

लगभग सभी घटनाओं की जड़ में नियमों का उल्लंघन और व्यवस्था की खामी ही सामने आई। गोवा के क्लब में भी ऐसा ही दिख रहा है।

Updated on:
17 Dec 2025 10:40 am
Published on:
16 Dec 2025 03:00 pm
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