
लूथरा ब्रदर्स कभी प्राइवेट नौकरी किया करते थे। (PC: brands and branches)
रेस्ट्रो-बार, क्लब कारोबार में बादशाहत रखने वाले लूथरा ब्रदर्स सौरभ और गौरव लूथरा कई दिनों से सुर्खियों में हैं। इन्होंने अपने कारोबार में कम समय में बहुत तरक्की की है, लेकिन अभी इनके चर्चा में आने की वजह यह नहीं है। गोवा के अर्पोरा में इनके क्लब ‘बर्च बाय रोमियो लेन’ (Birch by Romeo Lane) में छह दिसम्बर को 25 लोगों के जिंदा जल जाने की घटना ने इन्हें सुर्खियों में ला दिया है। लूथरा भाइयों की दस साल की कारोबारी जिंदगी का यह सबसे बड़ा संकट है। यह बात अलग है कि इन्होंने पूरी तरह इससे पल्ला झाड़ा हुआ है।
सौरभ और गौरव ने बिजनेस में हाथ आजमाने से पहले कई साल प्राइवेट नौकरी की, लेकिन बिजनेस उनके खून में था। उनके पिता विजय लूथरा भी बिजनेस करते थे। वह स्कूलों व अन्य संस्थानों में बीकर व लैब में काम आने वाली चीजें सप्लाई करते थे। साथ ही, उनका छपाई (प्रिंटिंग प्रेस) का भी काम था।
विजय लूथरा का काम अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक सब गड़बड़ हो गया। वह एकाएक लाचार हो गए। वह ट्रेन में कहीं जा रहे थे, उसी दौरान लकवे का शिकार हो गए। चलना-फिरना मुश्किल हो गया। फिर कारोबार कैसे चलाते! तब दोनों बेटे भी कॉलेज में पढ़ ही रहे थे। कुछ बुटीक्स थे, जिससे काम चलने लायक पैसे आ रहे थे।
लूथरा परिवार मुखर्जी नगर के आउटराम लाइंस में रहता है। यहां इनका चार मंजिला आलीशान मकान है। करीब 35 साल से यह परिवार यहीं रह रहा है। इससे पहले मोरी गेट में रहा करता था।
सौरभ और गौरव लूथरा पुलिस के शिकंजे में हैं। उन्होंने गोवा के अर्पोरा में बर्च बाय रोमियो लेन नाइट क्लब में 6 दिसंबर को लगी आग में हुई 25 लोगों की मौत से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। इनके वकील ने कोर्ट में दलील दी कि उनके मुवक्किल दिल्ली से क्लब चलाते हैं और रोज मर्रा के काम में दखल नहीं देते हैं। रोज का सामान्य कामकाज क्लब के स्टाफ और मैनेजर संभालते हैं। क्लब में ऐसा कोई सामान नहीं रहता जो आग को भड़काए। क्लब में जो कलाकार आते हैं, वे अपना सामान साथ लाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें क्लब में आग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
बेटों की पढ़ाई पूरी हुई तो उन्होंने प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू की। लेकिन, उन्हें नौकरी रास नहीं आ रही थी। तब उन्होंने रास्ता बदल लिया। वह कैफे और रेस्ट्रो बार के बिजनेस में उतरे। कोई दस साल पहले इन्होंने दिल्ली के हडसन लेन में क्लब टाइप एक जगह खोली थी। नाम था मामा’ज बुओई (Mama’s Buoi)। नौजवानों को ध्यान में रख कर इसकी शुरुआत की गई थी। जल्द ही यह कॉलेज के लड़के-लड़कियों का पसंदीदा ठिकाना बन गया था।
इसके बाद लूथरा भाइयों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अलग-अलग नाम से एक के बाद एक कई कैफे-क्लब खोलते चले गए। इसी कड़ी में रोमियो लेन की शुरुआत हुई। सबसे पहले दिल्ली के सिविल लाइंस में खुला। फिर लगातार खुलता गया और आज दो दर्जन से ज्यादा शहरों में रोमियो लेन नाम से क्लब चल रहे हैं। यह देश से बाहर दुबई तक भी पहुंच गया है। उन्होंने अपना ऑफिस मॉडल टाउन में रखा है। उनकी कंपनी का नाम जीएस फूड्स स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड है। गौरव और सौरभ ने काम बांट रखा है। पैसों से जुड़ा काम गौरव देखते हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की है। रोमियो लेन ब्रांड के चेहरे सौरभ हैं।
कोरोना के बाद रोमियो लेन का अच्छा विस्तार हुआ। कोरोना थमने पर जब लोगों ने फिर से घूमना-फिरना शुरू किया तो लूथरा भाइयों ने गोवा के वागाटोर में रोमियो लेन शुरू किया। वहां भी यह चल निकला। फिर तो इंदौर हो या नागपुर, देहारादून या भोपाल, सब जगह रोमियो लेन खोलने की होड़ लग गई। लूथरा ब्रदर्स धड़ाधड़ फ्रैंचाइजी बेचने लगे। एकमुश्त मोटी फीस और हर महीने 7 फीसदी की रॉयल्टी वसूलने लगे।
यूपी में 2022 से 2024 के बीच ही छह आउटलेट खुल गए। बताते हैं एक आउटलेट खोलने का खर्च 3.5-4.5 करोड़ रुपये है। कई फ्रैंचाइजी फेल भी हो गए। जैसे लखनऊ का आउटलेट एक साल के भीतर ही बंद हो गया, लेकिन लूथरा भाइयों को नए फ्रैंचाइजी मिलते भी गए।
रोमियो लेन की दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की के बाद सौरभ और गौरव ने ‘बर्च बाय रोमियो लेन’ (Birch by Romeo Lane) शुरू किया। आज देश में इनके 25 आउटलेट हैं। एक दुबई में भी चल रहा है। रोमियो लेन की फ्रैंचाइजी दिलवाने वाली फर्म ब्रांड्स एंड ब्रांचेज की वैबसाइट के मुताबिक इसके 50 आउटलेट हैं या आने वाले हैं। ये भारत के अलावा मध्य पूर्व, यूके और कनाडा में हैं।
रेस्ट्रो-बार व क्लब का कारोबार चमकता हुआ कारोबार है। देश में 65 हजार से ज्यादा बार हैं। 2024 में इनका कारोबार करीब 17.54 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया जाता है। 2029 में इसके 26.17 अरब डॉलर पहुंच जाने का अनुमान है।
नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के मुताबिक 2024 में रेस्टोरेंट इंडस्ट्री में 85 लाख लोगों को काम मिला हुआ था। 2014 में यह संख्या 60 लाख थी और 2028 में एक करोड़ पार हो जाने की उम्मीद है।
Updated on:
12 Dec 2025 01:10 pm
Published on:
12 Dec 2025 10:57 am
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