
प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति (फोटो- @himantabiswa)
प्रणव कुमार मुखर्जी के राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को इसलिए भी याद रखा जाना चाहिए कि उन्होंने ही मुंबई हमलों के गुनहगार अजमल कसाब को फांसी के तख्ते पर चढ़वाने का रास्ता साफ किया। प्रणव दा ने मुंबई में बम धमाकों के षडयंत्र को रचने वाले याकूब मेमन और संसद में धमाकों के गुनहगार अफजल गुरु को भी नहीं माफ किया। उन्होंने दया याचिकाओं को लेकर भरपूर सख्ती अपनाई। उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों का इस लिहाज से प्रदर्शन याद करने लायक नहीं रहा। वे तो ऐसी फाइलों पर बैठे ही रहते थे। वे जानते थे कि इन तीनों की सजा को कम करने का बेहद खराब संदेश जाएगा।
हालांकि इन सबकी फांसी से पहले और बाद में मौत की सजा को खत्म करने के सवाल पर बहस हुई। इन सबकी परवाह किए बगैर उन्होंने मानवता के शत्रुओं को फांसी पर लटकाने में अपने दायित्व का निर्वाह किया।
आपको याद होगा कि मेमन को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुजरिम मान चुकी थी। राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बावजूद मेमन को बचाने की कोशिश हो रही थी। वह भी मजहब के नाम पर। यह एक बेहद खतरनाक खेल था। उनके कार्यकाल के लगभग पहले दो साल यूपीए की सरकार रही और उसके बाद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार। प्रणव कुमार मुखर्जी का दोनों सरकारों को लेकर तटस्थ भाव रहा। दोनों के प्रति उनमें सदभाव बना रहा। राष्ट्रपति भवन पहुंचते ही वे पूरी तरह से तटस्थ और निरपेक्ष हो गए। उन पर कोई ये आरोप लगाने का साहस भी नहीं कर सकता कि उन्होंने अपने सांसद पुत्र या कांग्रेस में सक्रिय पुत्री सुष्मिता मुखर्जी के करियर को गति देने में किसी तरह की मदद की।
प्रणव दा की पूर्ववर्ती प्रतिभा पाटिल फांसी की सजा पाए बलात्कारियों तथा हत्यारों को माफ करती रहीं। उन्होंने 30 फांसी की सजायाफ्ता अपराधियों को जीवनदान दिया। इसके चलते उनकी आलोचना भी हुई। कह सकते हैं कि प्रतिभा पाटिल ने खतरनाक हत्यारों, बलात्कारियों पर दया करने के मामले में रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने कुल 30 हत्यारों की फांसी माफ की। शायद ऐसा करते वक्त इन मामलों के रोंगटे खड़े कर देने वाले ब्योरों और पीड़ित परिवारों को मिले दर्द की ओर उनका ध्यान नहीं गया।
प्रणव कुमार मुखर्जी ने अपनी छवि एक इस तरह के राष्ट्रपति के रूप में भी बनाई जो समय का बहुत पाबंद रहा। वे सही वक्त पर ही किसी समारोह में पहुंचते थे। एक बार तंजानिया के राष्ट्रपति जकाया एमरिशो किकवेती के राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम में लगभग 25 मिनट देर से पहुंचने के चलते वे बहुत नाराज हो गए थे। वे नाराज इसलिए थे कि मेहमान राष्ट्रपति वक्त से क्यों नहीं पहुंचे। दरअसल राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री आवास अथवा कार्यालय में होने वाल कार्यक्रमों में एक-एक मिनट का भी बहुत मतलब होता है। इस बात को देखते हुए उनका खिन्न होना समझा जा सकता है।
तंजानिया के राष्ट्रपति का राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री मोदी, तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी इंतजार करते रहे। बाद में पता चला कि वे राजधानी में रहने वाले अपने देश के नागरिकों से मुलाकात के एक कार्यक्रम में फंस गए थे। जिसके चलते वे देऱ से राष्ट्रपति भवन पहुंचे।
डॉ.प्रणव कुमार मुखर्जी को राजधानी के मिनी बंगाल यानी चितरंजन पार्क ( सीआर पार्क) में बहुत मिस किया जाता है। चितरंजन पार्क में बहुत सारे लोग हैं जिनके डॉ. मुखर्जी के व्यक्तिगत संबंध थे। उन्होंने इधर 16 जून 2018 को स्वाधीनता सेनानी दीनबंधु चितरंजन दास की आदमकद मूर्ति का अनावरण किया था। प्रणव दा को उस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने वालों में यूएनआई न्यूज एजेंसी के एडिटर जयंतो राय चौधरी थे। उन्होंने बताया कि चितरंजन दास जी पर अपनी बात रखने के बाद प्रणव दा ने यहां के निवासियों के साथ विभिन्न मामलों पर बातचीत भी की थी। इससे पहले जब उन्हें चितरंजन दास की प्रतिमा के अनावरण के लिए आमंत्रित किया गया तो वे तुरंत तैयार हो गए थे।
प्रणव कुमार मुखर्जी 1960 के दशक में दिल्ली आते ही मंदिर मार्ग स्थित नई दिल्ली काली बाड़ी की गतिविधियों से जुड़ गए थे। इसे राजधानी के बंग समाज की धार्मिक- सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र माना जाता है। इस काली बाड़ी की प्रबंध समिति से नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी जुड़े रहे थे।
राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद डॉ. प्रणव कुमार मुखर्जी 10 राजाजी मार्ग (पहले हेस्टिंग रोड) के बंगले में रहने लगे थे। ये कोई सामान्य बंगला नहीं है। इधर रहा करते थे नई दिल्ली को राष्ट्रपति भवन, दिल्ली जिमखाना क्लब, गोल डाकखाना वगैरह का डिजाइन तैयार करने वाले आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियन। इसी बंगले में भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी भी रहे हैं। चूंकि इधर कुछ समय तक सी.राजगोपालचारी भी रहे हैं, इसलिए इसके आगे की सड़क का नाम उनके नाम पर राजाजी मार्ग रख दिया गया था। ये डबल स्टोरी बंगला है और इसमें आठ बैड रूम है।
भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा बताते हैं कि प्रणव कुमार मुखर्जी को पचास-साठ साल पुरानी घटनाएं तिथियों के साथ याद रहा करती थी। वे राजनीति की दुनिया में इतनी लंबी पारी खेलने के बाद भी बेदाग रहे। उन पर कभी किसी ने कोई हल्का आरोप लगाने की भी हिमाकत नहीं है। इन सब गुणों के कारण उन्हें सब आदर देते थे। उन्हें देश ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न भी दिया।
“मुझे याद है कि मैं 6 रायसीना रोड पर अटल जी के आवास पर 1996 में प्रणव दा से मिला था । जब मैं 2014 में सांसद बना तब एयरपोर्ट के वीआईपी लाउन्जो में आने-जाने का अवसर मिला । एक बार मैं पटना का जहाज पकड़ने पहुंचा । प्रणव दा पहले से वहां विराजमान थे शायद वे कोलकता जाने की तैयारी में थे । मैं हिचककर उनसे नजर बचाकर दूर बैठने की कोशिश कर रहा था कि उन्होंने मेरा नाम लेकर पुकार लिया,” बताते हैं ।
Published on:
12 Dec 2025 11:47 am
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