भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने डीपफेक को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर विशेष कानून की जरूरत है। जानिए, लड़कियों को प्रशिक्षित करने की बात क्यों कही।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि डिजिटल युग में लड़कियां ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर बुलिंग, डिजिटल स्टॉकिंग, निजी डेटा के दुरुपयोग और डीपफेक जैसी नई चुनौतियों का सामना कर रही हैं। उन्होंने इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए विशेष कानून बनाने और कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नीति निर्धारकों को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि डिजिटल तकनीक शोषण का नहीं, बल्कि मुक्ति का साधन बननी चाहिए। लड़कियों की सुरक्षा का अर्थ है उनके भविष्य को कक्षा, कार्यस्थल और हर स्क्रीन पर सुरक्षित करना।
जुवेनाइल जस्टिस कमेटी और यूनिसेफ इंडिया के कार्यक्रम में सीजेआइ ने कहा, संवैधानिक और कानूनी गारंटी के बावजूद देशभर में कई लड़कियों को अब भी उनके मौलिक अधिकारों और जीवन की मूल आवश्यकताओं से वंचित रखा जा रहा है। उनकी सुरक्षा केवल उसके शरीर की रक्षा नहीं, बल्कि उसकी आत्मा को मुक्त करने जैसा है। हमें ऐसा समाज बनाना होगा जहां वह सम्मानपूर्वक जी सके, शिक्षा और समानता से अपने सपनों को पंख दे सके। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कविता का जिक्र करते हुए कहा कि जब तक देश की कोई भी लड़की भय, हिंसा या भेदभाव में जी रही है, तब तक टैगोर का स्वतंत्रता का स्वर्ग अधूरा है।
डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग करके वीडियो, ऑडियो या छवियों को इस तरह बनाती है कि वे वास्तविक लगें, लेकिन वास्तव में नकली होते हैं। यह तकनीक किसी व्यक्ति के चेहरे, आवाज या व्यवहार को बदलकर भ्रामक सामग्री बनाती है। डीपफेक का उपयोग मनोरंजन से लेकर दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों, जैसे फर्जी समाचार, धोखाधड़ी या बदनामी, के लिए हो सकता है। यह निजता और विश्वास को खतरे में डालता है।