Supreme Court: सात जजों की पीठ ने वर्ष 1990 में औद्योगिक शराब के उत्पादन को रेगुलेट का फैसला सुनाया था। उन्होंने इसका अधिकार केंद्र सरकार को दिया था। जानिए कैसे पलट गया पुराना फैसला?
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसले में कहा कि औद्योगिक शराब (INDUSTRIAL PRODUCTION OF WINE) पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का ही है। इसे छीना नहीं जा सकता। नौ जजों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से सात जजों की पीठ के उस फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि औद्योगिक शराब को रेगुलेट करने का अधिकार केंद्र के पास है। सात जजों की पीठ ने 1990 के फैसले में केंद्र सरकार को औद्योगिक शराब के उत्पादन को विनियमित करने का अधिकार दिया था।
इस मामले को 2010 में नौ जजों की पीठ के पास समीक्षा के लिए भेजा गया। इस साल अप्रैल में छह दिन लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, अभय एस. ओका, बी.वी. नागरत्ना, मनोज मिश्रा, जे.बी. पारदीवाला, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। सिर्फ जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि औद्योगिक शराब मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है। 'मादक शराब' शब्द को अलग अर्थ देने के लिए कृत्रिम व्याख्या नहीं अपनाई जा सकती। यह संविधान के निर्माताओं की मंशा के विपरीत है।
सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में स्पष्ट किया था कि मादक शराब केवल उन अल्कोहल का संदर्भ देती है, जो नशे के लिए उपयोग किए जाते हैं। औद्योगिक शराब को राज्यों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल बाद यह फैसला पलट दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि जीएसटी लागू होने के बाद आय के अहम स्रोत के रूप में औद्योगिक शराब पर टैक्स लगाने का अधिकार काफी अहम हो गया है।
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