Delhi High Court on Women Reservation: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 334 ए (1) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जो महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण को लागू करने से पहले परिसीमन को अनिवार्य बनाता है।
Women Reservation: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 334 ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया है कि 2023 के महिला आरक्षण कानून के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही प्रभावी होगा। कोर्ट ने कहा कि परिसीमन, जनगणना के आंकड़ों के आधार पर देश या किसी राज्य में चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने या बदलने की प्रक्रिया है।मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला की पीठ ने केंद्र सरकार के साथ-साथ भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से इस याचिका पर जवाब मांगा कि इस प्रक्रिया के पूरा होने तक महिलाओं के आरक्षण को क्यों रोक दिया गया है।
महिला अधिकारों से संबंधित याचिकाकर्ता फोरम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि "लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में (सभी सीटों में से एक तिहाई) आरक्षण (महिलाओं के लिए) लाने के बाद भी यह अप्रभावी रहा है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि यह जनगणना और परिसीमन के बाद होगा।"
भूषण ने कहा, "जब बात एससी/एसटी की हो तो इसे समझा जा सकता है, लेकिन यहां महिलाओं के लिए, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या लगभग समान है। यह कहकर पूरे उद्देश्य को ही विफल कर दिया गया है कि यह जनगणना और परिसीमन के बाद ही किया जाएगा।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में परिसीमन अभ्यास एक पूर्व शर्त नहीं होनी चाहिए।