BJP vs RSS: 1980 जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थापना हुई उसके ठीक दो हफ्ते बाद पार्टी के पहले महासचिव लालकृष्ण अडवाणी ने गुजरात यूनिट के पहले सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा था कि बीजेपी आरएसएस (RSS) के साथ अपना संबंध कभी नहीं तोड़ेगी।
BJP vs RSS: लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट आने के बाद से इस बात की चर्चा खूब हो रही है कि क्या अब बीजेपी और आरएसएस में पहले जैसा समन्वय नहीं रहा। एक दूसरे के पूरक कहे जाने वाले बीजेपी और आरएसएस को लेकर आखिर ऐसी खबरें क्यों आ रही है? पीएम मोदी जब गुजरात के सीएम थे तब उन्होंने कहा था कि मैं मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक रहा हूं। बताया जाता है कि बिना संघ के बैकप के बीजेपी में आगे बढ़ना काफी मुश्किल है। यह बात भी साफ है कि इस लोकसभा चुनाव में संघ ने बीजेपी की वैसी मदद नहीं की, जैसे पहले से करता आया है। 1980 जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई उसके ठीक दो हफ्ते बाद पार्टी के पहले महासचिव लालकृष्ण अडवाणी ने गुजरात यूनिट के पहले सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा था कि बीजेपी आरएसएस के साथ अपना संबंध कभी नहीं तोड़ेगी। तो फिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया कि बीच चुनाव बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बयान में कहा, अब हमें आरएसएस की जरूरत ही नहीं है। हम अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं।
विपक्षी पार्टियां जब भी भारतीय जनता पार्टी पर हमला बोलती है तो उसमें संघ का नाम होता ही है। बीजेपी सरकार द्वारा लाई गयी हर नीति को विपक्ष संघ की विचारधारा से जोड़ देता है। बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव भी हमेशा बीजेपी और संघ पर एक साथ हमला करते दिखाई देते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी और आरएसएसएस दोनों की विचारधारा एक है। क्या संघ ने अपने विचार को भारत में लागू करने के लिए बीजेपी का साथ दिया? क्या संघ के स्वयंसेवक रात-दिन जमीन पर इसलिए ही बीजेपी के पक्ष में वोट मांगते हैं? तो इसका जवाब यह है कि बीजेपी और आरएसएस दो अलग संगठन हैं, संघ ने हमेशा ही बीजेपी और उसकी विचारधारा को शेप देने में अहम भूमिका निभाई है। बीजेपी-आरएसएस का जुड़ाव स्वाभाविक है, वैचारिक है।
1980 से 2020 के बीच यानी 40 साल, बीजेपी का नेतृत्व कभी भी ऐसे पार्टी अध्यक्ष ने नहीं किया, जो अपने करियर के शुरुआती दौर में संघ या उसके सहयोगियों से जुड़ा हुआ न रहा हो। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत संघ के प्रचारक के रूप में की थी, वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2007 में गुजरात के सीएम थे तब उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, "मैं मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक रहा हूं। हमें राष्ट्र के लिए सोचने के लिए ट्रेंड किया गया है। यह मेरी आरएसएस की परवरिश है जो मुझे जो भी काम सौंपा जाता है उसे अच्छे से करने में सक्षम बनाती है। मेरे पास संघ परिवार द्वारा मेरे लिए कोई समस्या पैदा करने का एक भी उदाहरण नहीं है। संघ परिवार मेरे साथ है। उन्होंने हमेशा मेरा समर्थन किया, मेरी मदद की, मेरा मार्गदर्शन किया। संघ परिवार मेरी शाश्वत शक्ति है।"
इसी तरह 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न्यूयॉर्क में विश्व हिंदू परिषद् के दर्शकों से कहा, "मैं आज प्रधानमंत्री हो सकता हूं, कल नहीं हो सकता लेकिन एक चीज़ जो मुझसे कोई नहीं छीन सकता, वह है स्वयंसेवक होना। उनके उप प्रधानमंत्री आडवाणी ने भी सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि अगर मुझमें कोई सराहनीय गुण है, तो मैं इसका श्रेय आरएसएस को देता हूं।"
आरएसएस और बीजेपी के बीच खटास की खबरें तो आती ही रहती है। लेकिन जब भी बीजेपी या आरएसएस के नेताओं से इस बारे में पूछा जाता था तो सब इसे महज अफवाह कह कर टाल देते थे। कोई किसी के बारे में खुलेआम एक शब्द भी नहीं बोलता था। कई वर्षों बाद अब ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि एक दूसरे के खिलाफ खुलेआम बयानबाजी हो रही है।
बता दें कि तीसरे चरण के मतदान के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अब हमें चुनाव जितने के लिए आरएसएस की जरूरत नहीं हैं। हमारे करोड़ों कार्यकर्त्ता पीएम मोदी के कुशल लीडरशिप में किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अगर कोई एमपी या एमएलए यह बयान देता तो बीजेपी और आरएसएस के बीच खटास को लेकर चर्चा नहीं होती या बेहद कम होती। लेकिन यह बयान बीजेपी अध्यक्ष ने दिया, जो अपनी पार्टी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी मानते हैं।
चुनाव के रिजल्ट आने के बाद कई रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जेपी नड्डा के इस बयान से स्वयंसेवक आहत हो गए और उन्होंने चुनाव प्रकार से अपना हाथ पीछे कर लिया। इस कारण ही बीजेपी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी।
मंत्रिमंडल गठन के बाद नागपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। सहचित्त संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आए इसलिए ऐसी व्यवस्था है। चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक-दूसरे को लताड़ना, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं है। सेवक को कभी अहंकारी नहीं होना चाहिए। बीजेपी के नेता सिर्फ मोदी के चेहरे की चमक पर चुनाव जीतते हैं, ऐसा बार बार नहीं होगा। उन्हें भी जमीन पर जाकर जनता की समस्याओं को ख़त्म करने का प्रयास करना चाहिए।
मणिपुर में जारी अशांति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा। पुराना गन कल्चर समाप्त हो गया ऐसा लगा और अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना यह कर्तव्य है।" मोहन भागवत के इस बयान को केंद्र की मोदी सरकार के लिए नसीहत के रूप में देखा गया।
लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न करने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने बिना नाम लिए बीजेपी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भगवान राम की भक्ति करने वाली पार्टी अहंकारी हो गई थी, इसलिए 241 पर सिमट गई। इस चुनाव में बीजेपी का अहंकार ध्वस्त हो गया है। इंद्रेश कुमार ने कहा, "इन लोगों ने भगवान राम की भक्ति तो की थी, मगर इनमें धीरे-धीरे अहंकार आ गया। आज भगवान राम ने इनके अहंकार को खत्म कर दिया है। ये लोग इस चुनाव में प्रशंसनीय परिणाम नहीं दे पाए। शायद अब इन्हें लोकतंत्र की ताकत का एहसास हो चुका होगा। हालांकि, यह राम जी की ही कृपा थी कि भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बन सकी, लेकिन इसके बावजूद भी ये लोग राम जी कृपा को नहीं समझ पाए। शायद इसलिए जो शक्ति भाजपा को इस चुनाव में मिलनी चाहिए थी, वो राम जी ने अहंकार के कारण रोक दी।"
इंद्रेश कुमार ने आगे कहा, "भगवान राम भेदभाव नहीं करते। सबको उसकी नीयत के आधार पर प्रतिफल देते हैं। राम जी सजा नहीं देते हैं और ना ही किसी को विलाप करने का मौका देते हैं। राम जी सबको न्याय देते हैं, देते थे और आगे भी देते रहेंगे। राम जी सदैव न्याय प्रिय रहे हैं। मैं आपको बता दूं कि भगवान राम ने 100 वर्षों के शासनकाल के बाद अश्वमेध यज्ञ किया। इसलिए यह यज्ञ हुआ कि कोई रोगी ना रहे, कोई अशिक्षित ना रहे, कोई बेरोजगार ना रहे। इसलिए भगवान 100 वर्षों के शासनकाल के बाद अश्वमेध यज्ञ करवाया करते थे, ताकि संपूर्ण राज्य में शांति बनी रहे। इसी यज्ञ के कारण भगवान राम 11 हजार सालों तक शासन करने में सफल रहे। दुनिया में आज तक कोई भी इतने वर्षों तक शासन नहीं कर सका।"
चुनावी नतीजे आने के बाद संघ प्रमुख और इन्द्रेश कुमार ने जिस प्रकार से बीजेपी पर खुलेआम हमला बोला है उससे लगता है कि अब आरएसएस आर या पार के मूड में है। हालांकि, जेपी नड्डा के अलावा बीजेपी के किसी और नेता ने आरएसएस को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार के बयान पर भी बीजेपी द्वारा कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
बीजेपी भी अपने प्रदर्शन का समीक्षा करेगी और अगर इसमें यह बात निकलकर सामने आती है कि संघ परिवार की नाराजगी के कारण आंकडें अनुमान से कम आए हैं तो इस समस्या का समाधान निकालेगी। फिर से दोनों एक फ्लोर पर आने पर अगर सहमत हो जाते हैं तो ठीक वरना बीजेपी को आने वाले चुनावों में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।