Lok Sabha Elections 2024 : गुजरात के अमरेली जिले में पीपावाव बंदरगाह से लगे समुद्र की लहरें जरूर उछाल मारती दिखती हैं, लेकिन यहां का चुनावी माहौल वोट पड़ने के दो दिन पहले भी शांत नजर आया। चुनावी माहौल में पसरे सन्नाटे की एक वजह भीषण गर्मी भी है जिसके चलते लोग घरों में दुबके रहना ज्यादा पसंद करते हैं। मूंगफली, गेहूं और कपास की पैदावार के कारण अपनी पहचान रखने वाले गुजरात के अमरेली लोकसभा क्षेत्र से इस बार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस ने नए चेहरों को मौका दिया है। भाजपा ने यहां से भरत भाई सुतारिया व कांग्रेस ने जेनी बेन ठुमर को उम्मीदवार बनाया है। बी.टेक व प्रबंध में डिग्री हासिल कर चुकीं जेनी बेन जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं और प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं। अमरेली को लोग इस रूप में भी जानते हैं कि यहां से चुने गए डॉ. जीवराज मेहता गुजरात के पहले सीएम रहे हैं। अमरेली में वर्ष 2004 को छोड़कर वर्ष 1991 से अब तक भाजपा का ही कब्जा रहा है। ऐसे में यह सीट भाजपा का ऐसा किला बन गई है, जिसको भेदना आसान नहीं लगता। कांग्रेस प्रत्याशी जेनी बेन भले ही खुद नई हों, लेकिन राजनीति उन्हें विरासत में मिली है।
Lok Sabha Elections 2024 : गुजरात के अमरेली जिले में पीपावाव बंदरगाह से लगे समुद्र की लहरें जरूर उछाल मारती दिखती हैं, लेकिन यहां का चुनावी माहौल वोट पड़ने के दो दिन पहले भी शांत नजर आया। चुनावी माहौल में पसरे सन्नाटे की एक वजह भीषण गर्मी भी है जिसके चलते लोग घरों में दुबके रहना ज्यादा पसंद करते हैं। मूंगफली, गेहूं और कपास की पैदावार के कारण अपनी पहचान रखने वाले गुजरात के अमरेली लोकसभा क्षेत्र से इस बार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस ने नए चेहरों को मौका दिया है। भाजपा ने यहां से भरत भाई सुतारिया व कांग्रेस ने जेनी बेन ठुमर को उम्मीदवार बनाया है। बी.टेक व प्रबंध में डिग्री हासिल कर चुकीं जेनी बेन जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं और प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं। अमरेली को लोग इस रूप में भी जानते हैं कि यहां से चुने गए डॉ. जीवराज मेहता गुजरात के पहले सीएम रहे हैं। अमरेली में वर्ष 2004 को छोड़कर वर्ष 1991 से अब तक भाजपा का ही कब्जा रहा है। ऐसे में यह सीट भाजपा का ऐसा किला बन गई है, जिसको भेदना आसान नहीं लगता। कांग्रेस प्रत्याशी जेनी बेन भले ही खुद नई हों, लेकिन राजनीति उन्हें विरासत में मिली है।
वर्ष 2004 में जेनी बेन के पिता वीरजी भाई ठुमर ने यहां से भाजपा की लगातार जीत के सिलसिले को तोड़ने का काम किया था। तब वे कांग्रेस से निर्वाचित हुए थे। अब देखना यह है कि जैनी बेन जीत पाती हैं या नहीं। अमरेली में पटेल समुदाय का दबदबा है। सर्वाधिक वोट भी इसी समुदाय के हैं। इसलिए दोनों प्रमुख दलों ने पटेल समुदाय को ही टिकट में प्राथमिकता दी है। भाजपा इस सीट को कितना सुरक्षित मानती है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने यहां से लगातार तीन बार से चुने जा रहे नारायण भाई कछाड़िया का टिकट काटकर भरत भाई सुतारिया को मौका दिया है। भरत भाई जिला पंचायत के मुखिया है। गत चुनाव में नारायण भाई ने कांग्रेस के परेश धणानी को हराया था। परेश को इस बार कांग्रेस ने राजकोट से मैदान में उतारा है। वहां भाजपा के पुरुषोत्तम रुपाला हैं। चुनाव प्रचार की बात करें तो समूचे क्षेत्र में माहौल नीरस ही नजर आया। लोगों से बात करो तब जाकर अपनी राय जताते हैं। अधिकांश लोग पीएम नरेन्द्र मोदी और गुजरात की बात करते हुए अपना वोट कमल को देने की बात करते हैं।
रतनी भाई मोवलिया का कहना था कि यहां तो कांग्रेस पर मोदी का चेहरा ही भारी है। भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ. भरत काना बार का कहना था कि भाजपा के लिए गुजरात की सभी सीटें अंगद का पैर हैं। इसे चुनौती देना कांग्रेस के बूते से बाहर है। भाजपा प्रत्याशी का खुद का नेटवर्क क्षेत्र में मजबूत हैं। शहर में चुनाव प्रचार के नाम पर भाजपा के एक दो होर्डिंग ही दिखे जिनमें मोदी की गांरटी का जिक्र किया गया था। अमरेली लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक सीट आम आदमी पार्टी के पास है। अमरेली में देश का सबसे बड़ा सीमेन्ट का कारखाना है। गिर का जंगल भी इसी इलाके में है। ऐसा नहीं है कि यहां लोग सिर्फ भाजपा का ही पक्ष लेते हों। अमरेली के बाजार में मिले भूपत मारू कहते हैं कि मोदी के राज में बेरोजगारी और मंहगाई तेजी से बढ़ी है। लोग डरते हैं क्योंकि विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया जाता है। जनता अब बदलाव चाहती है।
कांग्रेस प्रत्याशी जेनी बेन को विरासत में मिली राजनीति का भी आधार मिल रहा है। उनके पिता वीर जी भाई एक बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुके हैं। वहीं उद्यमी संजय भाई कहते हैं कि अमरेली ही नहीं समूचा गुजरात चमन हो गया है, वह भी पीएम नरेन्द्र मोदी के कारण। फिर भला कोई अपना वोट दूसरे को देकर खराब क्यों करेगा? दिनेश सांसिया की राय उलट थी। चुनावों की चर्चा छेड़ते ही उन्होंने छूटते ही कहा कि हर बार ईवीएम पर भी सवाल उठता है। लेकिन कितनी ही होशियारी हो जाए, इस बार अमरेली में कांग्रेस चमत्कार करेगी। एससी, एसटी ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक को वे जीत का आधार बताते हैं। अमरेली में नगरपालिका है। यहां पटेल समुदाय के बड़ी संख्या में लोग विदेश में भी हैं।
गुजरात की खासियत यह है कि यहां प्रवासी भारतीय भी न केवल वोट देने आते हैं बल्कि प्रचार में भी सक्रियता से हिस्सा लेते हैं। इसलिए उनके मत भी अहम होते हैं। दो मई को ही पीएम नरेन्द्र मोदी की इस इलाके के सभा हुई थी। उससे भाजपा के पक्ष में माहौल बना है। भाजपा के जिला अध्यक्ष राजेश काबरिया का दावा है कि मोदी की सभा के बाद भाजपा की जीत का अंतर और बढ़ना तय हो गया है। क्षत्रिय समाज की भाजपा से नाराजगी की बातें तो सब करते हैं लेकिन अमरेली में भी यह विरोध इतने बड़े पैमाने पर नहीं दिखा। हालांकि इस मुद्दे को अपने पक्ष में मानते हुए कांग्रेस कार्यकर्ता आशान्वित हैं। ये कहते हैं कि महंगाई और बेरोजगारी, महिलाओं की असुरक्षा के कारण भाजपा अपना पिछला रिकॉर्ड नहीं दोहरा पाएगी।