Illigal deportations: ट्रंप की नई इमिग्रेशन नीति के चलते अमेरिका से जबरन डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों की कहानी संघर्ष और दर्दभरी है। एजेंटों के धोखे से कदम कदम पर इन्होंने मुश्किलें झेलीं।
Illigal deportations: ट्रंप की नई इमिग्रेशन नीति के चलते अमेरिका से जबरन डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों की कहानी संघर्ष और दर्दभरी है। एजेंटों के धोखे से कदम कदम पर इन्होंने मुश्किलें झेलीं और आखिर वापस भारत लौटना पड़ा। डिपोर्ट किए गए भारतीयों ने आरोप लगाया कि इनके साथ कैदियों जैसा बर्ताव किया गया। हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां डाली गईं। यहां तक कि टॉयलेट जाने के लिए भी जंजीरें नहीं खोली गईं। अमृतसर पहुंचने पर जंजीरें खोलीं। विभिन्न दलों के राजनेताओं ने आक्रोश व्यक्त करते हुए इस कृत्य की निंदा की और इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया तथा मांग की कि केंद्र सरकार इस मामले को अमेरिकी अधिकारियों के समक्ष उठाए।
एजेंट के धोखे के शिकार एक अन्य व्यक्ति ने बताया, डंकी रूट पर हमने 17-18 पहाडिय़ां पार कीं। अगर कोई फिसल जाता, तो बचने की गुंजाइश नहीं थी। अगर कोई घायल हो जाता, तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता। एक अन्य ने बताया, 15 घंटे नौका से यात्रा की। एक जगह तो हमारी नाव लगभग डूबने वाली थी। हमने समुद्र में कई लोगों को डूबते देखा। पनामा के जंगल में एक आदमी को मरते देखा।
104 निर्वासित प्रवासियों में कपूरथला की 30 वर्षीय जसप्रीत (बदला हुआ नाम) भी है, जो अपने 10 वर्षीय बेटे के साथ दो जनवरी को अमेरिका के लिए रवाना हुई थी। लगभग एक महीने बाद उसकी सारी उम्मीदें चकनाचूर हो गई। जसप्रीत ने रोते हुए एक न्यूज एजेंसी को बताया कि वह इसके लिए एजेंट को एक करोड़ रुपए की भारी रकम दे चुकी थी। एजेंट ने उन्हें अमेरिका सीधे रास्ते से ले जाने का वादा किया था। लेकिन उन्हें कुछ अन्य साथियों के साथ डंकी रूट पर ले जाया गया। हमने जो सहना पड़ा, वह उम्मीद से कहीं ज्यादा था। जसप्रीता ने बताया, उन्हें कोलंबिया के मेडेलिन ले जाया गया, जहां दो सप्ताह रखा। इसके बाद विमान से अल साल्वाडोर की राजधानी सैन साल्वाडोर ले गए। यहा से तीन घंटे का पैदल सफर तय कर ग्वाटेमाला पहुंचे। फिर टैक्सियों से मैक्सिकल सीमा तक पहुंचे। दो दिन मैक्सिको रहने के बाद हम 27 जनवरी को अमेरिका पहुंचे।
सीमा पार करते ही अमरीकी अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। यहां हमें पांच दिन एक शिविर में रखा गया और दो फरवरी को हमें कमर से लेकर पैरों तक जंजीरों से बांध दिया गया और हाथों में हथकड़ी पहना दी। केवल बच्चों को छोड़ा गया। जसप्रीत ने बताया, 40 घंटे की यात्रा में किसी को नहीं बताया गया कि हम सबको कहां ले जाया जा रहा है। अमृतसर हवाई अड्डे पर हमें बताया गया कि हम भारत पहुंच गए। परिवार ने मेरे और बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए काफी कर्ज लिया, लेकिन अब सब कुछ खत्म हो गया। उम्मीद है सरकार ऐसे बेईमान एजेंटों पर कार्रवाई करेगी, ताकि फिर किसी के साथ ऐसा धोखा न हो।
डिपोर्ट हुए भारतीयों ने आरोप लगाया कि अमेरिका में उनके साथ कैदियों जैसा बर्ताव किया गया। हाथों में हथकडिय़ां और पैरों में जंजीरें डाली गईं। टॉयलेट जाने के लिए भी जंजीरें नहीं खोली गईं। जब प्लेन अमृतसर पहुंचा, तभी उनकी जंजीरें खोली गईं।
पंजाब के गुरदासपुर के हरदोरवाल गांव के जसपाल सिंह ने बताया कि वे कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ और मैक्सिको जैसे कई देशों से होते हुए अमेरिका पहुंचे थे, लेकिन वहां अधिकारियों ने पकड़ लिया। रास्ते में जंगलों से होकर 40-45 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा। एजेंट ने 30 लाख लेकर भी उसके साथ धोखा किया।