भारत ड्रोन युग की ओर बढ़ रहा है। आने वाले पांच सालों में भारतीय ड्रोन क्रांति देखने को मिलेगी। खेती से लेकर परिवहन तक इनका राज होगा। 2030 तक भारतीय ड्रोन का 1300 करोड डॉलर का बाजार होगा।
भारत में ड्रोन के लिए विकसित होते इको-सिस्टम को देखते हुए विशेषज्ञों का दावा है कि अगले पांच वर्ष में देश के आसमान में ड्रोन का राज होगा। इनका उपयोग कृषि से लेकर निगरानी तक में तेजी से बढ़ रहा है और रक्षा, नागरिक परिवहन, कार्गो पहुंचाने व बचाव कार्यों जैसे क्षेत्रों में भी उपयोग जल्द शुरू होने लगेगा। नई दिल्ली में गुरुवार से शुरू हुए 'स्टार्टअप महाकुंभ' में आए ड्रोन तकनीक पर काम कर रहे विशेषज्ञों ने इस बारे में रोचक जानकारियां दीं।
सैन्य निगरानी, भूभागों की गहन मैपिंग, दुर्गम स्थानों पर सामान पहुंचाने के साथ साथ दुश्मन पर ग्रेनेड गिराने की क्षमता रखने वाले ड्रोन मैदान में आ चुके हैं। जयपुर के ऋत्विक और गुड़गांव के पियल कुमार स्टार्टअप के बनाए ड्रोन वायु 5 से लेकर 50 किलो क्षमता के ग्रेनेड और विस्फोटक किसी निर्धारित लक्ष्य पर गिरा सकते हैं। लद्दाख में इनके ड्रॉप टेस्ट भारतीय सेना के जरिए पिछले डेढ़ वर्ष से किए जा रहे हैं। इसी तरह कई अन्य स्टार्टअप भूभाग की मैपिंग और निगरानी के लिए आधुनिक ड्रोन विकसित कर रहे हैं।
भारत में छोटे स्तर पर खेती कर रहे किसानों को ड्रोन की जरूरत है, यह दावा करते हैं बंगलुरू स्थित स्टार्टअप संस्थापक नरेश एम। उन्होंने बताया कि 2 लाख रुपए से सस्ते ड्रोन की कृषि क्षेत्र में बहुत मांग है। इनके आने से फसलों में कीटनाशक, खरपतवार और खाद के छिड़काव का काम आसान हो रहा है। इन काम में 3 से 4 घंटे प्रति एकड़ तक लगते थे, अब वही अब 3-4 मिनट में हो रहे हैं। किसान सामुदायिक स्तर पर इन्हें खरीद कर संचालित कर रहे हैं। समय पर मजदूर न मिलने और सांप काटने जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिला है।
नासिक के एक स्टार्टअप ने 'ड्रोन डॉकिंग स्टेशन' तैयार किए हैं। इसके जरिए ड्रोन को खदानों और निर्माण स्थलों की निगरानी के काम में लगाया जा रहा है। इसके संस्थापक निखिल राजपूत ने बताया कि राजस्थान और महाराष्ट्र में खदानों में प्रबंधन में इनका इस्तेमाल हो रहा है। ये कुछ मिनटों में 2 वर्ग किमी का क्षेत्र स्कैन कर सभी जरूरी सूचनाएं, तस्वीरें, वीडियो आदि पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।
बेंगलूरु स्थित भारतीय स्टार्टअप ने शहरी हवाई परिवहन के लिए अपनी फ्लाइंग टैक्सी वीटी एसआरएल प्रदर्शित की। यह ड्रोन तकनीक पर आधारित है और 1 पायलट व 6 यात्रियों के लिए बना है। यह बिजली से चार्ज होता है, रफ्तार करीब 200 किलोमीटर प्रतिघंटा है। अभी तक करीब 40 किलोमीटर दूरी की छोटी शहरी यात्राओं के लिए उपयोगी बताया गया है। कंपनी का मानना है वर्ष 2028 तक इसे बेंगलूरू में शुरू किया जा सकता है। इसके जरिए मिनटों में मंजिल तक पहुंचा जा सकेगा।
वर्ष 2024 तक देश में 200 से अधिक ड्रोन टेक स्टार्टअप्स बन चुके थे। वहीं भारत में 13,000 से करीब ड्रोन पंजीकृत हैं। 2021 में ड्रोन संचालन से जुड़े नियमों में ढील देने के बाद से इसमें तेजी आ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार 2026 तक भारत में ड्रोन सेक्टर 200 करोड़ डॉलर और 2030 तक 1,300 करोड़ डॉलर का हो सकता है। कृषि, रक्षा, लॉजिस्टिक्स आदि क्षेत्रों में ड्रोन का उपयोग सबसे ज्यादा बढ़ सकता है।