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Maharashtra Election Result: बीजेपी ने अचूक रणनीति से 6 महीने में पलट दी बाजी

Maharashtra Election Result: महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना-एनसीपी की महायुति इतनी बड़ी जीत हासिल करेगी। पढ़ें नवनीत मिश्र की स्पेशल स्टोरी...

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Nov 23, 2024

मुंबई. महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान 48 में सिर्फ 18 सीटें पाने वाली भाजपानीत महायुति गठबंधन ने छह महीने में ही बाजी पलट दी। अचूक रणनीति और सफल चुनाव प्रबंधन से ’अबकी बार 200 पार’ का नारा सफल हुआ और महायुति की महाविजय हुई। महायुति ने छह माह में बाजी पलटने पर संगठन और सरकार के स्तर पर एकसाथ और कारगर प्रयास किए जिसका नतीजा रेकॉर्डतोड़ जीत के रूप में सामने आया। लोकसभा चुनाव में जीत से उत्साहित विपक्ष का माहौल बदलने के लिए उसका नैरेटिव तोडऩा बड़ी चुनौती थी लेकिन महायुति इसमें सफल रही।

350 जातियों के नेताओं को साधा

लोकसभा चुनाव में जिस तरह से महाराष्ट्र् में विपक्ष के संविधान खतरे में नैरेटिव के कारण दलित और बौद्ध मतदाताओं का बड़ा वर्ग कांग्रेस नेतृत्व महाविकास अघाड़ी की तरफ शिफ्ट हुआ था। ऐसे में भाजपा ने नतीजों के तुरंत बाद दलित और ओबीसी वर्ग की 350 प्रमुख जातियों के नेताओं से मीङ्क्षटग शुरू की। दलित बहुल इलाकों में भाजपा ने संविधान यात्राएं निकालीं। गृहमंत्री अमित शाह के निर्देशन में चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव ने 3 महीने तक लगातार अलग-अलक जातियों के नेताओं के साथ बैठकें कर उन्हें पार्टी के साथ लाने में सफल रहे और जिसके जरिए वंचित समाज में संविधान और आरक्षण को लेकर फैले भय और भ्रम को पार्टी दूर करने में सफल रही।

पर्चियोंसे फीडबैक, तालमेल पर जोर

भाजपा नेतृत्व ने 10 हजार आम कार्यकर्ताओं से पर्चियों के जरिए 5 से 6 सुझाव मांगे थे। हर जिले के कार्यकर्ताओं से पार्टी ने फीडबैक लेकर समय रहते कमियां दूर कीं। खास बात है कि भाजपा ने हर विधानसभा में गठबंधन के तीनों दलों के नेताओं की कॉर्डिनेशन कमेटियां बनाईं। जिससे तालमेल का संकट खड़ा नहीं हुआ।

महिला, मध्यवर्ग और किसानों को साधा

महिला मतदाताओं को साधने के लिए चलाई गई लाडक़ी बहिन योजना सफल रही। चुनाव से पहले तक ढाई करोड़ महिलाओं के खाते में तीन बार 1500-1500 रुपये भेजकर महायुति सरकार ने विश्वसनीयत हासिल की।उसे इसका लाभ मिला। टोल टैक्स हटाने, वृद्धावस्था पेंशन बढाने और प्याज एक्सपोर्ट से जुडी़ं शर्तें हटाने, ऋण माफी आदि एलानों से महायुति सरकार किसानों और मध्यवर्गीय मतदाताओं को भी साधने में सफल रही। यही वजह रहा कि पश्चिम महाराष्ट्र् और मराठवाड़ा में भी महायुति ने शानदार प्रदर्शन किया।।

लोकसभा चुनाव में जीत की खुमारी, अति आत्मविश्वास, कुर्सी के सपने देखते नेताओं में तालमेल की कमी और घिसे-पिटे मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरने के कारण महाराष्ट्र में एमवीए का बेड़ा गर्क हो गया। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के रूप में चुनाव लड़ रहे इंडिया ब्लॉक ने जिस एकजुटता के साथ मुद्दों को उठाते हुए महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव लड़ा, उसका पचास फीसदी प्रयास भी विधानसभा चुनाव में नजर नहीं आया। चुनाव जीतने से पहले टिकट बंटवारे के दौरान ही मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गई, जिसका असर चुनाव अभियान पर पड़ा। आखिर में इंडिया ब्लॉक के तीनों ही दलों को बुरी हार का सामना करना पड़ा है।

सीट बंटवारे पर असमंजस, कुर्सी की खींचतान

दरअसल, लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने एकजुटता से चुनाव लड़ते हुए महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीती। इस दौरान करीब 150 से अधिक विधानसभा सीटों पर इंडिया ब्लॉक की बढ़त रही। कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में सबकुछ बदल गया और इंडिया ब्लॉक में शामिल कांग्रेस, शिवसेना उद्धव और एनसीपी शरद औंधे मुंह गिर गए। लोकसभा चुनाव के बाद तीनों दलों के नेता विधानसभा चुनाव जीता हुआ मानकर चल रहे थे। ऐसे में जमीन पर जनता के बीच जाने की बजाय मुख्यमंत्री पद को लेकर आपस में भिडऩे लगे। यही वजह रही कि नामांकन दाखिल होने की अंतिम तारीख तक सीट बंटवारे पर असमंजस बना रहा।

मुद्दों-नारों का नहीं दिया जवाब

 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा आक्रामकता से जातिगत जनगणना और संविधान पर खतरे को मुद्दा बनाने के मुद्दे से माहौल बनाया गया था। भाजपा इस नैरेटिव को तोडऩे में लगी थी लेकिन अति आत्मविश्वास में डूबे एमवीए नेता इसका जवाब नहीं तलाश पाए। उन्होंने भाजपा ’बंटेंगे तो कटेंगे’ और ’एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों का माकूल जवाब भी समय पर नहीं दिया गया। ऐसे में यह नारे लोगों को लुभा गए। कांग्रेस की गारंटियों जैसे पुराने वादे भी मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाए साथ ही तालमेल में कमी और शिवसेना (यूबीटी) से वैचारिक भिन्नता भी कहीं न कहीं नुकसानदेह साबित हुई।

सिर्फ 2 लाख वोटों की बढ़त पर मान रहे थे जीत

लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक को ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद वोटों का अंतर मात्र दो लाख का ही था।इस मामूली बढ़त पर इंडिया ब्लॉक को जीत की गलतफहमी हो गई। लोकसभा चुनाव में एनडीए के दिग्गज नेता भी सीधे मैदान में नहीं थे। इस बार सीएम एकनाथ ङ्क्षशदे, डिप्टी सीएम देवेन्द्र फणनवीस, अजित पवार समेत कई वरिष्ठ नेता चुनाव लड़े। ऐसे में इंडिया ब्लॉक को नुकसान उठाना पड़ा। तीनों ही दलों के नेताओं ने फील्ड में जाने की बजाय बैठकों में अधिक समय गुजारा। उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

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