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Major Sudhir Kumar Walia: ‘रैंबो’ के जिस्म से बहता रहा खून लेकिन नहीं छोड़ा आतंकियों के खिलाफ मोर्चा, देश के लिए सबकुछ किया कुर्बान

Major Sudhir Kumar Walia: मेजर सुधीर कुमार वालिया को देश के लिए शहादत दिए हुए कल 26 साल हो जाएंगे। भारतीय सेना में उन्हें रैंबो के नाम से भी याद किया जाता है। आइए यहां पढ़ते हैं उनकी बहादुरी के किस्से...

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Aug 28, 2025
मेजर सुधीर कुमार वालिया। (Photo: IANS)

Major Sudhir Kumar Walia: भारतीय सेना का एक जाबांज योद्धा मेजर सुधीर कुमार वालिया ने 29 अगस्त 1999 ने कुपवाड़ा में आंतकियों से लड़ते-लड़ते देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। शहीद मेजर वालिया के साथी उन्हें रैंबो (Major Sudhir Walia Rambo) बुलाते थे। उनमें देशभक्ति का जज्बा ऐसा था कि खून का एक-एक कतरा भारत माता के नाम कुर्बान करने को वह हमेशा तैयार रहते। आज मेजर शारीरिक तौर पर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी अमर गाथा कोई भूल नहीं सकता है।

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कर्नल आशुतोष ने मेजर वालिया पर लिखी 'रैंबो' किताब

मेजर सुधीर वालिया के बहादुरी के किस्से को सेना के कर्नल आशुतोष काले ने किताब की शक्ल दी और किताब का नाम 'रैंबो' रखा। 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज के मेजर सुधीर वालिया, जो अपने साथियों में रैंबो के नाम से ही मशहूर थे। जैसा उनका नाम था, वैसे ही उनके कारनामे भी थे।

कांगड़ा निवासी वालिया 1988 में हुए सेना में शामिल

Rambo Book written by Col Ashutosh Kale: सुधीर कुमार वालिया का जन्म 24 मई, 1969 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक सैन्य परिवार में हुआ था। मेजर वालिया हमेशा अपने पिता सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया को आदर्श मानते थे और उनके पदचिन्हों पर चलकर भारतीय सेना में शामिल होने के लिए दृढ़ थे। उन्हें 11 जून 1988 को तीसरी जाट रेजिमेंट में कमीशन मिला था।

विशेष अनुमति लेकर करगिल युद्ध में हुए थे शामिल

कर्नल आशुतोष काले की किताब 'रैंबो' में मेजर वालिया की कारगिल युद्ध के दौरान की कहानी का जिक्र है। मेजर वालिया के बारे में 'रैंबो' में लिखा है, "कारगिल की लड़ाई के समय सुधीर कुमार वालिया, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक के स्टाफ ऑफिसर थे लेकिन वे विशेष अनुमति लेकर करगिल की पहाड़ियों में लड़ने गए। मेजर वालिया को जो टास्क मिला, उन्होंने उसे पूरा किया था।"

करगिल के बाद आतंकियों के खात्मे के लिए मिला नया टास्क

'रैम्बो' के नाम से मशहूर इस बहादुर योद्धा ने भारतीय सेना में विशिष्ट पहचान बनाई। कारगिल विजय के लगभग महीने भर बाद ही मेजर वालिया को नया टास्क मिला, जो कुपवाड़ा में छिपे आतंकियों के खात्मे के लिए था। 29 अगस्त 1999 को, मेजर वालिया ने कुपवाड़ा जिले में एक आतंकवादी ठिकाने पर हमले का नेतृत्व किया। वे 9 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) का हिस्सा थे। 'बड़े ऑपरेशन' में भारत मां के इस लाल ने आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने का काम किया।

घायल होने के बावजूद अपने जवानों को देते रहे निर्देश

भारतीय सेना के सोशल मीडिया अकाउंट पर जिक्र मिलता है कि मेजर सुधीर कुमार वालिया गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपने जवानों को निर्देश देते रहे और आतंकवादियों का सफाया सुनिश्चित किया।

जिस्म से बहता रहा खून पर 4 आतंक​वादियों को किया ढेर

इस भीषण संघर्ष में मेजर वालिया को गोली लग चुकी थी। इसके बावजूद वह पीछे नहीं हटे। खून बहता रहा लेकिन खतरों के खिलाड़ी मेजर वालिया आतंकियों का खात्मा किए बगैर नहीं हिले। अपना सर्वोच्च बलिदान देने से पहले उन्होंने 4 आतंकवादियों को ढेर कर दिया था।

वीरता पदक, अशोक च्रक और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित

मेजर सुधीर कुमार को मरणोपरांत दुश्मन के खिलाफ उनकी अदम्य वीरता के लिए सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पदक, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 2000 को उनके पिता, पूर्व सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया ने अपने वीर पुत्र की ओर से भारत के राष्ट्रपति से पुरस्कार ग्रहण किया।

(स्रोत-आईएएनएस)

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