देश में MBBS के बावजूद जूनियर डॉक्टरों को नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। पिछले दशक में पीजी की सीटें 2.44 गुना बढ़ी हैं लेकिन एमबीबीएस की तुलना में यह 50 हजार कम हैं।
सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा लेकिन अब एमबीबीएस करने के बाद जूनियर डॉक्टरों को नौकरी के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में सम्मानजनक व लाभकारी नियुक्ति पाने के लिए कड़ी स्पर्धा हो गई है तो निजी अस्पतालों में वेतन काफी कम है। यह स्थिति सिर्फ कश्मीर के अनंतनाग और राजस्थान के अलवर या भरतपुर तक सीमित नहीं हैं। यूपी, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु सहित लगभग पूरे देश में इस तरह के ट्रेंड सामने आ रहे हैं।
पत्रिका ने इसकी पड़ताल की तो बेहद प्रतिष्ठित कहे जाने वाले मेडिकल प्रोफेशन में जो हालात सामने आए, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि कम से कम जूनियर डॉक्टरों के लिए तो यह पेशा चमक खोता जा रहा है। चिकित्सा शिक्षा के जानकारों के अनुसार, दो दशक पहले तक देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में जूनियर रेजिडेंट बनने के लिए प्रतियोगिता होती थी। अब यही प्रतियोगिता छोटे-छोटे जिलों के मेडिकल कॉलेजों में भी नजर आने लगी है।
हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की केंद्र सरकार की योजना के कारण बीते एक दशक में देश में एमबीबीएस की सीटें 2.43 गुना बढ़ी हैं लेकिन लोगों में स्वास्थ्य जागरुकता के विशेषज्ञ चिकित्सकों (पीजी डिग्री वाले) की मांग ज्यादा है। डॉक्टरों के लिए बेहतर कॅरियर विकल्प पीजी करने पर ही उपलब्ध हैं। पीजी की सीटें भी 2.44 गुना बढ़ी हैं लेकिन एमबीबीएस की तुलना में यह 50 हजार कम हैं।
नीट यूजी में प्रवेश के लिए कड़ी स्पर्धा, कोचिंग व कोर्स में बड़े खर्च के बावजूद निजी अस्पतालों में 25000 से 40000 तक मासिक वेतन नहीं है इसके चलते इस पेशे में खर्च ज्यादा हो रहा है जबकि रिटर्न कम है। साथ ही पीजी की पढ़ाई के दौरान निजी मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों में सीखने के अवसर काफी कम है। वहीं सरकारी अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में सम्मान,वेतन और सीखने के अवसर ज्यादा है लेकिन नियुक्ति में कड़ी स्पर्धा होने और भर्तियां नियमित नहीं होना एक बड़ी समस्या है। इसके अलावा वेतन 60000 से एक लाख होते हुए अन्य समान पेशों से कम होना भी एक चुनौती है।
नेशनल मेडिकल काउंसिल के अनुसार भारत में हर 811 लोगों पर एक डॉक्टर है। यह अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1000 पर एक डॉक्टर से कहीं बेहतर हो चुका है। हालांकि भारत के आंकड़ों में आयुष चिकित्सक भी शामिल हैं। केवल एलोपैथी डॉक्टरों की संख्या नवंबर 2024 तक 13.86 लाख थी। ग्रामीण के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में ज्यादा डॉक्टर हैं। आजादी के समय 6300 लोगों पर महज एक डॉक्टर था।