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जिस ईरान पर अमेरिका ने लगाया है प्रतिबंध, वहां 8 छोटे न्यूक्लियर प्लांट बनाएगा रूस, चीन भी करेगा सपोर्ट!

रूस और ईरान ने मास्को में एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत ईरान में 8 नए छोटे परमाणु संयंत्र बनाए जाएंगे। इससे ईरान को 2040 तक 20 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी। रूस की परमाणु संस्था रोसाटॉम इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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Sep 26, 2025
डोनाल्ड ट्रंप, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन। (फोटो- IANS)

मॉस्को में रूस और ईरान ने बुधवार को एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत ईरान में छोटे परमाणु संयंत्र (स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट्स) बनाए जाएंगे।

यह समझौता रूसी परमाणु संस्था रोसाटॉम के प्रमुख अलेक्सी लिखाचेव और ईरान के परमाणु प्रमुख तथा उपराष्ट्रपति मोहम्मद इस्लामी के बीच हुआ।

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रोसाटॉम ने इसे “रणनीतिक परियोजना” करार दिया। ईरानी उपराष्ट्रपति इस्लामी ने बताया कि तेहरान की योजना 2040 तक 20 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन की है, जिसके लिए 8 नए परमाणु संयंत्र बनाए जाएंगे।

इनमें से 4 संयंत्र दक्षिणी प्रांत बुशहर में होंगे। यह क्षेत्र गर्मी और ज्यादा बिजली खपत के महीनों में ऊर्जा संकट से जूझता है, ऐसे में यह कदम राहत देने वाला साबित होगा।

गौरतलब है कि इस समय ईरान में केवल एक परमाणु संयंत्र सक्रिय है, जो बुशहर शहर में स्थित है। इसे रूस ने बनाया था और इसकी क्षमता लगभग 1 गीगावाट है।

रूस और ईरान के बीच संबंध हाल के वर्षों में काफी प्रगाढ़ हुए हैं। रूस ने अमेरिका और इजराइल द्वारा ईरानी परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों की खुलकर निंदा की थी।

दूसरी ओर, इजरायल के साथ हालिया 12 दिन की जंग में बुरी तरह प्रभावित ईरान अब अपने मिसाइल ठिकानों को दोबारा खड़ा करने में जुट गया है।

सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि तेहरान ने पारचिन और शाहरोद ठिकानों पर मरम्मत का काम शुरू कर दिया है, जहां मिसाइल ईंधन बनाने के लिए ज़रूरी मिक्सिंग प्लांट तबाह कर दिए गए थे।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की प्राथमिकता अब ठोस ईंधन वाले मिसाइलों का उत्पादन फिर से शुरू करना है, क्योंकि इन्हें तेज़ी से दागा जा सकता है और इन्हें नष्ट करना मुश्किल होता है।

चीन कर सकता है सहयोग

माना जा रहा है कि ईरान अब चीन से आवश्यक उपकरण और रसायन हासिल करने की कोशिश कर सकता है। अमरीकी अधिकारियों ने पहले भी बीजिंग पर ईरान को मिसाइल तकनीक और सामग्रियां उपलब्ध कराने के आरोप लगाए हैं।

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट के विश्लेषकों का कहना है कि अगर ईरान को चीनी समर्थन मिल गया तो उसकी मिसाइल क्षमता पहले से कहीं तेज़ी से बहाल हो सकती है।

यूरेनियम भंडार पर संकट

हाल ही में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने स्वीकार किया था कि अमरीकी हमलों के चलते उसका उच्च स्तर का यूरेनियम भंडार मलबे के नीचे दब गया है।

संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था ने भी ईरान के संवर्धित यूरेनियम भंडार को गंभीर चिंता का विषय बताया है और कहा कि जून के हमलों के बाद से उसे ईरान की परमाणु गतिविधियों की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है।

ईरान परमाणु बम नहीं बनाएगा: राष्ट्रपति पेज़ेश्कियन

संयुक्त राष्ट्र महासभा में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन ने साफ कहा कि तेहरान कभी भी परमाणु बम बनाने की कोशिश नहीं करेगा।

उन्होंने यह बयान ऐसे समय दिया है जब ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने ईरान पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों को दोबारा लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसकी 30 दिन की समयसीमा 27 सितंबर को खत्म हो रही है।

इस पहल को ‘स्नैपबैक’ प्रतिबंध कहा जाता है। पेज़ेश्कियन ने जोर देकर कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है और पश्चिमी देशों को बातचीत से समाधान तलाशना चाहिए।

अमेरिका-इजराइल के हमलों से शांति पर चोट

संयुक्त राष्ट्र महासभा में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन ने जून में हुए अमेरिका और इजराइल के हमलों को “क्षेत्रीय शांति और अंतरराष्ट्रीय विश्वास पर गंभीर चोट” बताया।

यह उनका वैश्विक मंच पर पहला संबोधन था, जो गर्मियों में हुई 12 दिन की इजराइल-ईरान जंग के बाद आया है। पेज़ेश्कियन ने दोहराया कि ईरान कभी परमाणु बम नहीं बनाएगा और उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है।

उन्होंने ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस द्वारा शुरू किए गए ‘स्नैपबैक’ प्रतिबंधों की आलोचना की। इस बीच, सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने अमेरिका से सीधे परमाणु वार्ता को खारिज कर कूटनीतिक प्रयासों को कमजोर कर दिया।

भारत ने ईरान पर मतदान से किया परहेज

भारत का रुख ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर संतुलित और रणनीतिक है। भारत ने 2005 में आइएईए में ईरान के खिलाफ मतदान किया था, लेकिन 2024 में उसने ईरान के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया, यह दर्शाता है कि वह अमरीका, इजरायल और ईरान दोनों पक्षों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित करना चाहता है।

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