Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पहले राज्यों को नोटिस जारी किया था। राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों की ओर से जवाबी हलफनामे दायर किए गये थे।
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्य सरकारें किफायती चिकित्सा देखभाल और बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने में विफल रही हैं। कोर्ट ने समाज के गरीब तबके के लोगों को उचित मूल्य पर दवाएं, विशेषकर जरूरी दवाएं उपलब्ध कराने में राज्यों की विफलता की तीखी आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि इस अफलता से प्राइवेट हॉस्पिटलों को सुविधा मिली और बढ़ावा मिला।
जज सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। इसमें तर्क दिया गया कि निजी अस्पताल मरीजों और उनके परिवारों को दवाइयां, ट्रांसप्लांट और अन्य चिकित्सा देखभाल सामग्री हॉस्पिटल की अपनी फार्मेसियों (मेडिकल) से खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। यह अत्यधिक मूल्य में बेच रहे हैं। जनहित याचिका में निजी अस्पतालों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे मरीजों को केवल अस्पताल की फार्मेसियों से ही दवा खरीदने के लिए न कहें। साथ ही आरोप लगाया गया है कि केंद्र और राज्य नियामक और सुधारात्मक उपाय करने में विफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप हॉस्पिटलों में मरीजों का शोषण हो रहा है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा, "हम आपसे सहमत हैं... लेकिन इसका नियमन कैसे किया जाए?" कोर्ट ने अंततः कहा कि उचित चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करना राज्यों का कर्तव्य है। इसने यह भी टिप्पणी की कि कुछ राज्य अपेक्षित चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में सक्षम नहीं थे। इसलिए, उन्होंने निजी संस्थाओं को सुविधा प्रदान की और बढ़ावा दिया।
इन राज्य सरकारों को ऐसी संस्थाओं को विनियमित करने के लिए कहा गया। कोर्ट ने राज्यों को कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि निजी अस्पताल मरीजों और परिवारों को घरेलू फार्मेसियों से दवा खरीदने के लिए मजबूर न करें। विशेषकर तब जब वही दवा या उत्पाद सस्ते दामों पर उपलब्ध हो। इस बीच, केंद्र सरकार को नागरिकों का शोषण करने वाले निजी अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों से बचाव के लिए दिशानिर्देश तैयार करने को कहा गया।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके लिए अनिवार्य निर्देश जारी करना उचित नहीं होगा, लेकिन इस मुद्दे पर राज्य सरकारों को संवेदनशील बनाना आवश्यक है। SC ने पहले इस मुद्दे पर राज्यों को नोटिस जारी किया था। उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान सहित कई राज्यों की ओर से जवाबी हलफनामे दायर किये गये थे।
दवाओं की कीमतों के मुद्दे पर राज्यों ने कहा कि वे केंद्र की ओर से जारी मूल्य नियंत्रण आदेशों पर निर्भर हैं तथा आवश्यक दवाओं की कीमतें उचित दरों पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए तय की जाती हैं। केंद्र ने भी जवाब दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि मरीजों के लिए अस्पताल की फार्मेसियों से दवाएं खरीदना कोई बाध्यता नहीं है।