High Court: जस्टिस बराड़ ने कहा कि भरण-पोषण की राशि तय करते समय अदालताें को यह संतुलन रखना चाहिए। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि भरण-पोषण भत्ते की पर्याप्तता आश्रित पति या पत्नी के उचित आराम का जीवन जीने में सक्षम होने के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि भरण-पोषण के मामलों में पत्नी का अपनी जरूरतें बढ़ा-चढ़ा कर बताना और पति द्वारा अपनी वास्तविक आय छुपाना सामान्य प्रवृत्ति बन गया है। ऐसे में परस्पर विरोधी दावों को आंकलन मुश्किल होता है। कोर्ट ने कहा कि आश्रित पति या पत्नी की मदद के लिए भरण-पोषण उचित और यथार्थवादी होना चाहिए, जो न कम हो और न ज्यादा ताकि दोनों में से किसी को भी दरिद्रता का जीवन नहीं जीना पड़े। जस्टिस हरप्रीतसिंह बराड़ ने भरण पोषण से संबंधित एक मामले का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणियां की। जस्टिस बराड़ ने कहा कि भरण-पोषण की राशि तय करते समय अदालताें को यह संतुलन रखना चाहिए। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि भरण-पोषण भत्ते की पर्याप्तता आश्रित पति या पत्नी के उचित आराम का जीवन जीने में सक्षम होने के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विवाह की विफलता के कारण आश्रित पति या पत्नी को गरीबी या स्वच्छंदता का सामना नहीं करना पड़े। इसके लिए भरण-पोषण न्यायसंगत और सावधानीपूर्वक संतुलित होना चाहिए। यह प्रावधान पति या पत्नी को दंडित करने के हथियार के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बराड़ ने कहा अदालतों को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रावधान के पीछे के विधायी इरादे को उसकी वास्तविक भावना के अनुरूप रखते हुए भरण-पोषण की कार्यवाही संचालित करने की आवश्यकता है, जो महिलाओं, बच्चों और कमजोर माता-पिता को त्वरित सहायता और सामाजिक न्याय प्रदान करना है। यह उपाय संविधान के अनुच्छेद 39 तथा अनुच्छेद 15(3) के संवैधानिक दायरे में भी आते हैं। जीवन यापन करने के अलावा इसका एक उद्देश्य यह भी है कि वैवाहिक विवादों से उपजी मुकदमेबाजी के लिए उसके पास पर्याप्त धन हो और उसे समृद्ध विरोधी पक्ष के कारण कष्ट नहीं उठाना पड़े।