तेजस्वी यादव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार ने जातीय गणना करवाई, जिसके आधार पर आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया गया।
बिहार की राजधानी पटना में रविवार का दिन दो विपरीत दृश्यों का साक्षी बना। एक ओर गांधी मैदान में उत्साह और उम्मीद का माहौल था, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 51,389 नवचयनित शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपकर उनके सपनों को नई उड़ान दी। दूसरी ओर, शहर के एक कोने में राजद कार्यालय के बाहर गुस्से और मांगों की गूंज थी, जहाँ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठे थे, 65 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाते हुए। ये दो घटनाएँ न केवल बिहार की राजनीति के अलग-अलग चेहरों को दर्शाती हैं, बल्कि विकास और सामाजिक न्याय के बीच चल रही जद्दोजहद को भी उजागर करती हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उपमुख्यमंत्रियों सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा, शिक्षा मंत्री सुनील कुमार, और अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद रहे। नीतीश कुमार ने बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के तीसरे चरण में चयनित 51,389 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपे। ये शिक्षक पटना, नालंदा, भोजपुर, मुजफ्फरपुर, जहानाबाद, अरवल, सारण, और वैशाली जैसे जिलों से आए थे।
नीतीश कुमार ने अपने भाषण में शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सरकार के योगदान को जोर-शोर से गिनाया। उन्होंने याद दिलाया कि जब उन्हें 2005 में सत्ता संभालने का मौका मिला, तो बिहार में शिक्षा की हालत दयनीय थी। शिक्षकों की भारी कमी थी, स्कूल जर्जर थे, और बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ था। "हमने उस वक्त ठान लिया था कि शिक्षा को बेहतर करना है," उन्होंने गर्व से कहा। इसके तहत 2006-07 से पंचायतों और नगर निकायों के जरिए बड़े पैमाने पर नियोजित शिक्षकों की भर्ती शुरू की गई। फिर 2023 से बीपीएससी के माध्यम से सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति का सिलसिला तेज हुआ।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि इन नवनियुक्त शिक्षकों में 56 प्रतिशत महिलाएँ हैं, जो उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है। "लड़कियों को शिक्षित करना और शिक्षकों का विकास करना हमारा मिशन रहा है," उन्होंने कहा। विपक्ष पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, "पहले की सरकारें कुछ नहीं करती थीं, बस कुर्सी की मलाई खाती थीं। हमने मेहनत की, नतीजा आपके सामने है।" नीतीश ने शिक्षकों से अपील की कि वे अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाएँ, ताकि बिहार के बच्चों का भविष्य और उज्ज्वल हो सके।
दूसरी ओर, पटना में राजद कार्यालय के बाहर का माहौल बिल्कुल अलग था। यहाँ सड़कों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ थी, हाथों में तख्तियाँ थीं, और नारे गूँज रहे थे। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस धरने के केंद्र में थे, जो सरकारी नौकरियों में 65 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर आयोजित किया गया था। तेजस्वी के चेहरे पर गुस्सा और दृढ़ संकल्प साफ दिख रहा था। उनके साथ सैकड़ों कार्यकर्ता जमीन पर बैठे थे, जो दलित, आदिवासी, पिछड़ा, और अति पिछड़ा वर्ग के हक की बात कर रहे थे।
तेजस्वी ने अपनी बात को जोरदार तरीके से रखा। उन्होंने कहा कि महागठबंधन की सरकार ने जातीय गणना करवाई, जिसके आधार पर आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाए। "हमने इन वंचित वर्गों को उनका हक देने की कोशिश की," उन्होंने कहा। लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने से इनकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि पटना हाईकोर्ट ने बढ़े हुए आरक्षण को रद्द कर दिया, और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका हुआ है। तेजस्वी ने भाजपा को "आरक्षण चोर" करार देते हुए कहा, "ये लोग सामाजिक न्याय के दुश्मन हैं।"
उन्होंने नीतीश कुमार पर भी जमकर हमला बोला। "मुख्यमंत्री अब अचेत अवस्था में चले गए हैं," तेजस्वी ने तंज कसा। "उन्हें जनता से कोई मतलब नहीं, बस कुर्सी बचाने की जुगत में लगे रहते हैं। कब किसका पैर पकड़ लें, कोई भरोसा नहीं।" उन्होंने बेरोजगारी का मुद्दा भी उठाया और कहा कि 2020 के चुनाव में महागठबंधन ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, जिसे उनकी सरकार ने पूरा करना शुरू किया था। "हमने लाखों को रोजगार दिया, लेकिन एनडीए सरकार में अब सब ठप है," उन्होंने दावा किया।