Supreme Court: जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले जज बदलने पर नहीं बदलने चाहिए। बयान के बाद न्यायपालिका में फैसलों की स्थिरता को लेकर बहस और तेज हो गई है।
Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय विशेष बेंचों ने बदल दिए। इसपर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कड़ी आपत्ति जताते हुए चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट की जज के इस बयान ने सर्वोच्च अदालत के फैसलों को बार-बार बदलने और उनकी स्थिरता को लेकर चल रही बहस को तेज कर दिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि अदालत के फैसलों को सिर्फ इसलिए दोबारा नहीं खोलना चाहिए, क्योंकि उन्हें लिखने वाले जज बदल गए हैं या रिटायर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले समय के साथ टिकने चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि लोकतंत्र में शासन व्यवस्था, संविधान और अदालतों पर जनता के विश्वास से चलती है। जस्टिस बीवी नागरत्ना का बयान वनशक्ति, दिल्ली पटाखा बैन, टीएन गवर्नर का फैसला, भूषण स्टील इन्सॉल्वेंसी जैसे फैसलों के कुछ महीने में ही पलटने को लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट में यह फैसले हाल ही में पलटे गए हैं।
लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा “न्यायपालिका की आजादी सिर्फ फैसलों से ही नहीं, बल्कि न्यायाधीशों के व्यक्तिगत व्यवहार से भी सुरक्षित रहती है। इसके लिए जजों का राजनीतिक अलगाव जरूरी है।” उन्होंने आगे कहा “ज्यूडिशियल आजादी की एक बेहतर समझ हमारे कानूनी सिस्टम से यह भरोसा दिलाती है कि एक जज का दिया गया फैसला समय पर अपनी जगह बनाए रखेगा, क्योंकि यह स्याही से लिखा होता है, रेत पर नहीं।
कानूनी बिरादरी और गवर्नेंस फ्रेमवर्क के कई लोगों की यह ड्यूटी है कि वे फैसले का सम्मान करें, कानून में शामिल परंपराओं के अनुसार ही आपत्ति उठाएं और सिर्फ इसलिए उसे खारिज करने की कोशिश न करें, क्योंकि चेहरे बदल गए हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना हरियाणा के सोनीपत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आयोजित इंटरनेशनल सम्मेलन में बोल रहीं थीं। इस सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सूर्यकांत समेत तमाम वरिष्ठ न्यायाधीश मौजूद थे।
दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने भी न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके फैसलों को पलटने के बढ़ते ट्रेंड पर चिंता जताई थी। इसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। पिछले सप्ताह जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “हाल के दिनों में हमने इस कोर्ट में एक बढ़ता हुआ ट्रेंड देखा है। जजों के फैसलों को अगली बेंच या खास तौर पर बनाई गई बेंच किसी ऐसे पक्ष के कहने पर पलट देती हैं, जो पहले के फैसलों से नाराज था। चाहे फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश अभी भी पद पर हों या नहीं और चाहे उन्हें फैसला सुनाए हुए कितना भी समय हो गया हो।”
जस्टिस नागरत्ना ने जजों के बिहेवियर पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता तभी मीनिंगफुल है, जब जनता उसे निष्पक्ष और संदेह से परे समझे। उन्होंने कहा “जज की स्वतंत्रता सिर्फ फैसलों में नहीं, बल्कि उनके निजी व्यवहार में भी दिखनी चाहिए। राजनीतिक दूरी न्यायिक निष्पक्षता के लिए बेहद जरूरी है।” जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कानून का राज जनता में दो तरह के विश्वास पर टिका होता है। पहला संविधान में विश्वास होना, जो डेमोक्रेटिक लेजिस्लेचर को भी बांधता है। दूसरा न्यायपालिका पर विश्वास, जो ज्यूडिशियल रिव्यू के जरिए अधिकारों और आजादी के निष्पक्ष गार्डियन हैं। उन्होंने कहा कि यह दोहरा विश्वास, संवैधानिक शासन का आधार है।