ग्वालियर. हाईकोर्ट ने लगभग 2.52 करोड़ के साइबर फ्रॉड मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए आरोपी द्वारा एफआइआर और आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी.......
ग्वालियर. हाईकोर्ट ने लगभग 2.52 करोड़ के साइबर फ्रॉड मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए आरोपी द्वारा एफआइआर और आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। आरोपी पक्ष ने दावा किया था कि रामकृष्ण आश्रम के वर्तमान सचिव के साथ समझौता हो चुका है, इसलिए केस खत्म किया जाए। अदालत ने टिप्पणी की कि साइबर धोखाधड़ी व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि समाज पर व्यापक प्रभाव डालने वाला गंभीर आर्थिक अपराध है, जिसे समझौते के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता।
यह मामला 17 मार्च 2025 को उस समय सामने आया, जब आश्रम के तत्कालीन सचिव स्वामी सुप्रदिप्तानंद को एक व्हाट््सऐप कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को नासिक पुलिस का अधिकारी बताया और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आश्रम का नाम जोडऩे का झूठा दावा किया। आरोपी ने उन्हें फर्जी दस्तावेज दिखाकर भयभीत किया और 17 मार्च से 11 अप्रेल तक आश्रम के खातों से कुल 2,52 करोड़ रुपए विभिन्न बैंक खातों में ट्रांसफर करा लिए। बाद में स्पष्ट हुआ कि यह एक संगठित साइबर ठगी थी, जिसके आधार पर एफआइआर दर्ज हुई।
समझौते की जानकारी कोर्ट में प्रस्तुत की गई
जांच के दौरान वर्धन और दीपांशु नामक दो व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया। बाद में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने की जानकारी हाईकोर्ट में प्रस्तुत की गई। अदालत ने इसकी स्वतंत्र जांच भी करवाई और पाया कि समझौता स्वेच्छा से हुआ है। इसके बावजूद कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आर्थिक अपराध, संस्थागत धन की हानि और साइबर फ्रॉड जैसे मामलों में समझौते का आधार स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसा करना गलत मिसाल बनेगा और साइबर अपराधियों को प्रोत्साहन मिलेगा। इसलिए ऐसे मामलों में कानून का कठोर क्रियान्वयन आवश्यक है। अंत में अदालत ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए आदेश दिया कि ट्रायल पर इस निर्णय का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और मुकदमे की नियमित सुनवाई जारी रहेगी।