धार का मामला : 6.50 करोड़ की जमीन को लेकर सरकार की अपील सर्वोच्च न्यायालय ने की खारिज, मुकदमा लगाने में देरी को लेकर राज्य सरकार को गाइड लाइन के दिए निर्देश इंदौर. सीलिंग की अतिशेष जमीन का केस हारने के बाद उसकी अपील में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। […]
धार का मामला : 6.50 करोड़ की जमीन को लेकर सरकार की अपील सर्वोच्च न्यायालय ने की खारिज, मुकदमा लगाने में देरी को लेकर राज्य सरकार को गाइड लाइन के दिए निर्देश
इंदौर. सीलिंग की अतिशेष जमीन का केस हारने के बाद उसकी अपील में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। मप्र के मामलों में कोर्ट ने साफ कर दिया कि यदि सरकार के खिलाफ कोर्ट से फैसला होने के बाद उसकी अपील करने में देरी होती है तो उसके लिए संबंधित जिले के कलेक्टर जिम्मेदार होंगे। धार जिले के पीथमपुर में आने वाले गांव करौंदिया के सर्वे नंबर 199/1 की 3.815 हेक्टेयर जमीन के मामले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि इस जमीन की कीमत लगभग 6.50 करोड़ रुपए हैं और ये सीलिंग की अतिशेष जमीन थी। इस पर गोकुलचंद्र ने हक जताते हुए हाईकोर्ट में केस दायर किया था। फैसला उसके पक्ष में आया। राज्य सरकार के खिलाफ फैसला आने के बाद 2018 में इसकी पहली अपील दाखिल की गई, जो खारिज होने के 656 दिन बाद हाईकोर्ट में 2021 में दूसरी अपील दायर की गई। इसे दायर करने में हुई देरी और उसके लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं बताए जाने के कारण हाईकोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया था। इसके बाद सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ 2024 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। ये अपील भी 177 दिनों की देरी से की थी, इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से देरी का कारण जानने के लिए पहले प्रमुख सचिव (विधि) को तलब किया। कोर्ट को बताया गया कि मप्र में कोर्ट के फैसलों को लेकर अपील दायर करने या नहीं करने का निर्णय कलेक्टर लेते हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने धार कलेक्टर को तलब किया। धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा पेश हुए और एक हलफनामा भी कोर्ट में दाखिल किया। इसमें अपील की पूरी प्रक्रिया और संबंधित कानूनों का हवाला देते हुए बताया था कि चूंकि अतिरिक्त महाधिवक्ता कार्यालय में देरी और 2020 में कोरोना के चलते सभी अधिकारी व्यस्त हो गए थे, इसलिए हाईकोर्ट में अपील दायर करने में देरी हुई। वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी केस दायर करने के पहले प्रक्रिया के चलते देरी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी के चलते सरकार की अपील खारिज कर दी। इसके साथ ही सरकार के हाथ से करोड़ों रुपए की जमीन भी चली गई। कलेक्टर ने व्यवस्था को बताया जिम्मेदार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा सरकार दुरुस्त करे सिस्टम
धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया, उसमें कोर्ट केस में अपील दायर करने से जुड़ी दिक्कतों को भी लिखा। साथ ही व्यवस्था सुधारने के लिए सुझाव भी दिए। इन सुझावों की सराहना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे राज्य में लागू करने के लिए भी सरकार को निर्देश दिए हैं।
- सरकार के विरुद्ध न्यायालय के आदेश के मामले में, सरकारी अधिवक्ता/महाधिवक्ता कार्यालय को 3 दिन के भीतर निर्णय की प्रति भेजनी चाहिए ताकि इस बारे में कानूनी राय प्राप्त की जा सके कि आदेश को चुनौती दी जानी चाहिए या नहीं।
- संबंधित अधिवक्ता या महाधिवक्ता को राय के लिए पत्र मिलने से 10 दिन के भीतर राय देने का प्रयास करना चाहिए।
- कानूनी राय प्राप्त होने के बाद संबंधित विभाग, कानूनी राय प्राप्त होने से 2 दिन के अंदर आवश्यक दस्तावेजों के साथ संबंधित विभाग को फाइल भेज दे।
- सरकारी अधिवक्ता या महाधिवक्ता की कानूनी राय प्राप्त होने के 7 दिन के भीतर केस में प्रभारी अधिकारी (ओआइसी) की नियुक्ति की जानी चाहिए।
- आवश्यक अपील/संशोधन/एसएलपी दाखिल करने में आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के लिए 20 दिन की समय सीमा तय की जाना चाहिए। समय सीमा का पालन कराना ओआइसी की जिम्मेदारी हो।
- यदि किसी ओआइसी का तबादला हो जाता है, तो उसे मामले की समय सीमा से संबंधित अत्यावश्यकता को उजागर करते हुए 7 दिनों के भीतर अदालती मामलों का प्रभार अपने उत्तराधिकारी को सौंप देना चाहिए।
- देरी को नियंत्रित करने के लिए राज्य स्तर पर कोर्ट केस मैनेजमेंट सिस्टम (सीसीएमएस) के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाना चाहिए ताकि संदेश आगे भेजने में समय की बर्बादी न हो। इस तरह के डिजिटल प्लेटफॉर्म या पोर्टल के साथ-साथ उत्तरों की ई-फाइलिंग को चालू किया जा सकता है, जिससे देरी की समस्या को कम किया जा सकता है।
- इस ऑनलाइन सीसीएमएस पोर्टल में अलग-अलग खाते हों, जिनमें महाधिवक्ता, अतिरिक्त महाधिवक्ता, सभी सरकारी अधिवक्ता(जीए), सभी संयुक्त आयुक्त (मुकदमेबाजी), राज्य स्तर पर सभी विभाग और सभी जिला कलेक्टर और न्यायालय मामलों के सभी ओआइसी (एक बार नियुक्त होने के बाद) के खाते हों।
- सीसीएमएस में राज्य के प्रभारी अधिकारी/अधिकारियों के लिए बुनियादी कानूनी प्रशिक्षण मॉड्यूल भी होना चाहिए। अधिकारियों के लिए उनके पदानुक्रम के अनुसार विभिन्न न्यायालयों में केस दायर करने के लिए एसओपी तैयार किए जाने चाहिए।
- राज्य के सामान्य प्रशासनिक विभाग द्वारा राज्य के प्रभारी अधिकारी/अधिकारियों को बुनियादी कानूनी प्रणाली और संरचना के बारे में बुनियादी कानूनी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- प्रभारी अधिकारी को पोर्टल पर अपना अस्थायी मसौदा उत्तर और दस्तावेज अपलोड करने में सक्षम होना चाहिए, जिसे अंतत: सरकारी वकील द्वारा अंतिम उत्तर के रूप में औपचारिक रूप से तैयार किया जा सके, जिसे एएजी की ओर से मामला सौंपा गया है।
- प्रभारी अधिकारी (ओआइसी) को भी अपने कर्तव्यों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। ऐसे पोर्टल विकसित किए जाने चाहिए, जिनमें दोनों ओर से सतत निगरानी व्यवस्था हो सके।
- राज्य में अपर महाधिवक्ता कार्यालय का पूर्ण कम्प्यूटरीकरण किया जाना चाहिए। यदि न्यायालय का कोई निर्णय सरकार के विरुद्ध हो, तो एएजी द्वारा निर्धारित सरकारी अधिवक्ता की यह प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह न्यायालय के निर्णय को संबंधित दस्तावेजों सहित अपनी राय सहित संबंधित जिला कलेक्टर को भेजे, ताकि अपील दायर करने की अनुमति देने तथा प्रभारी अधिकारी नियुक्त करने की त्वरित कार्रवाई जिले से शीघ्र की जा सके।
- यदि न्यायालय का कोई निर्णय सरकार के विरुद्ध है, तो एएजी द्वारा निर्धारित सरकारी अधिवक्ता की यह प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह न्यायालय के निर्णय को संबंधित दस्तावेजों के साथ अपनी राय सहित सीसीएमएस पर अपने ऑनलाइन खाते के माध्यम से संबंधित कलेक्टर को भेजे। जीए से ऐसी सलाह मिलने पर कलेक्टर तत्काल मामले में ओआइसी की नियुक्ति करेगा और सीसीएमएस पोर्टल पर उसके लॉगिन क्रेडेंशियल बनाएगा। इससे अपील दायर करने की अनुमति देने और प्रभारी अधिकारी की नियुक्ति में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होगी। - ओआइसी को आदेश प्राप्त होने के बाद, उसका यह कर्तव्य होगा कि वह मामले से संबंधित सभी दस्तावेज देखे और पोर्टल पर ही कोई अतिरिक्त दस्तावेज अपलोड करे। ओआइसी को पोर्टल पर अपना संभावित मसौदा उत्तर भी अपलोड करने में सक्षम होना चाहिए, जिसे एजी कार्यालय द्वारा मामले के लिए नियुक्त सरकारी अधिवक्ता द्वारा अंतिम उत्तर के रूप में तैयार किया जा सके। अंतिम उत्तर को समयबद्ध तरीके से प्रभावी ढंग से तैयार करना सरकारी अधिवक्ता का कर्तव्य होगा। जीए को मामले पर चर्चा करने के लिए ओआइसी के साथ ऑनलाइन वीडियो कांफ्रेसिंग सत्र भी आयोजित करना चाहिए।
- यह सुविधा समय पर उत्तर दाखिल करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है क्योंकि ओआइसी आमतौर पर उच्च न्यायालय और एजी कार्यालय से दूर जिलों में पदस्थ अधिकारी होते हैं(जैसे इंदौर से नीमच लगभग 275 किमी, इंदौर से बुरहानपुर लगभग 200 किमी)। ओआइसी जो आमतौर पर एसडीओ या तहसीलदार होते हैं, के लिए फाइल को चिह्नित करने के लिए एएजी से मिलने के लिए बार-बार उच्च न्यायालय जाना और फिर उत्तर का मसौदा तैयार करने के लिए जीए के साथ कई बार शारीरिक बैठकें करना संभव नहीं है। एसडीओ और तहसीलदार भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट हैं जो कभी-कभी लगातार कानून और व्यवस्था संबंधी कर्तव्यों के कारण उच्च न्यायालय की यात्रा करने में सक्षम नहीं होते हैं, इसलिए पोर्टल आधारित ऑनलाइन प्रणाली से ओआइसी को एजी कार्यालय में बार-बार उपस्थित होने की आवश्यकता काफी कम हो सकती है।
- जब कभी किसी परिस्थितिवश शासकीय अधिवक्ता की राय प्राप्त करने में विलम्ब हो और समय सीमा समाप्त हो जाए तो अपील दायर करने का मामला राज्य के विधि विभाग द्वारा निर्णयित किया जाना चाहिए अथवा उसे संबोधित किया जाना चाहिए तथा उसे यह निर्णय लेना चाहिए कि उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने की अनुमति दी जाए अथवा नहीं।