शारदीय नवरात्र के आगाज के साथ ही सरहद से महज 18 किलोमीटर पहले स्थित तनोट माता मंदिर में आस्था का ज्वार उफान पर होगा।
शारदीय नवरात्र के आगाज के साथ ही सरहद से महज 18 किलोमीटर पहले स्थित तनोट माता मंदिर में आस्था का ज्वार उफान पर होगा। हर दिन यहां मंदिर प्रांगण में घंटियों की गूंज के साथ ष्जय तनोट रायष् के जयकारे सुने जाते हैं। भक्त रुमाल बांधकर अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करते हैं और पूरी होने पर लौटकर रुमाल खोलते हैं। तनोट माता को ष्रुमाल वाली देवीष् कहा जाता है। यह परंपरा केवल आम श्रद्धालुओं तक सीमित नहींए बल्कि सीमा सुरक्षा बल और भारतीय सेना के अधिकारी व जवान भी नियमित रूप से पालन करते हैं। बीएसएफ के जवान मानते हैं कि तनोट माता सरहद की रक्षा में उनकी सबसे बड़ी शक्ति हैं। नवरात्र के दिनों में मंदिर क्षेत्र आस्था और विश्वास से गूंज उठता है।
कहा जाता है कि .वर्ष 1965 में भारत.पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने तनोट क्षेत्र पर लगभग 3000 बम बरसाएए लेकिन कोई भी फटा नहीं। इनमें से 450 जिंदा बम आज भी मंदिर परिसर में माता के चमत्कार के प्रतीक के रूप में रखे गए हैं। वर्ष 1971 में भी दुश्मन की गोलाबारी सरहदी क्षेत्र के बाशिंदों पर असर नहीं डाल पाई। मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने जैसलमेर को निशाना बनाते हुए ड्रोन और मिसाइल हमले किए। उस रात स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं ने तनोट माता के दरबार में प्रार्थना की। मंदिर और आसपास के क्षेत्र में किसी भी मिसाइल से कोई नुकसान नहीं हुआ। लोगों का मानना है कि मां तनोट ने पुनः जैसलमेर की रक्षा की।
जैसलमेर निवासी जितेंद्र महाराज कहते हैं दृ तनोट मांता हमारी रक्षक हैं। चाहे 1965 का युद्ध हो या हालिया ड्रोन .मिसाइल हमलाए मां ने जैसलमेर को हर संकट से बचाया है।
वहीं मधु भाटी का कहना है दृमां की कृपा से ऑपरेशन सिंदूर के बाद हम सुरक्षित रहे। हमें विश्वास है कि तनोट माता हर खतरे में हमारी रक्षा करेंगी।
मंदिर का गौरवशाली इतिहास
.भाटी राजपूत राव तनुजी ने विक्रम संवत 787 में माघ पूर्णिमा के दिन तनोट गांव की स्थापना की थी और ताना माता का मंदिर बनवाया।
.अब यह तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
.1965 युद्ध के बाद पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान भी दर्शन के लिए आए और चांदी का छत्र चढ़ायाए जो आज भी मंदिर में सुरक्षित है।
बीएसएफ के जवान नियमित रूप से मंदिर की पूजा और आरती करते हैं। वे तनोट माता को सरहद का रक्षक मानते हैं और सुबह की आरती में विशेष रूप से भाग लेते हैं। उनका मानना है कि मां तनोट की कृपा से ही यह क्षेत्र सुरक्षित रहता है। मंदिर परिसर में रखे जिंदा बम और भूतपूर्व युद्ध स्मारक बीएसएफ जवानों का विश्वास और श्रद्धा दिखाते हैं।
तनोट मंदिर जैसलमेर शहर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से टैक्सीए जीप और बस की सुविधा उपलब्ध है। यात्रा में लोंगेवाला युद्ध स्मारक भी पड़ता हैए जहां 1971 की विजय गाथा और सैन्य वीरता देखी जा सकती है। श्रद्धालु आमतौर पर सुबह या दोपहर में मंदिर पहुंचते हैं और पूरे दिन दर्शनए पूजा और मन्नत पूरा करने में व्यस्त रहते हैं।