हम जिस नए युग की ओर बढ़ रहे हैं, उसमें कर्मचारी कल्याण को प्राथमिकता, सार्थक प्रशिक्षण में निवेश तथा सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कंपनियां आधुनिक कार्यस्थलों में अग्रणी बनेंगी और एक ऐसे भविष्य को आकार देंगी, जहां काम केवल एक साधन न होकर जीवन का एक संतोषजनक और अभिन्न हिस्सा होगा। कॉरपोरेट संस्कृति का रूपांतरण भविष्य की सफलता के लिए एक अनिवार्यता है।
रमेश अल्लूरी रेड्डी
भविष्य के लिए कॉर्पोरेट कल्चर पर केंद्रित टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी
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हम आज कार्यस्थल क्रांति के शिखर पर खड़े हैं। हाल के वर्षों में कार्यस्थलों पर जिस तरह कॉरपोरेट संस्कृति की महत्ता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, विभिन्न घटनाओं और प्रकरणों ने इस विषय को एक नई दिशा भी दी। इसने यह स्पष्ट किया कि एक सकारात्मक कार्य संस्कृति न केवल संगठनों की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, बल्कि कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और संतोष के लिए भी यह आवश्यक है। हर वर्ष लगभग 1.2 से 1.3 करोड़ नए लोग कार्यबल में शामिल होते हैं और इस बड़ी संख्या के साथ एक समृद्ध और सहयोगात्मक वातावरण का निर्माण करना आवश्यक हो गया है। कार्यस्थलों और कार्यबल की गतिशीलता में निरंतर बदलाव के मौजूदा दौर में यह जरूरी हो गया है कि पारंपरिक कॉरपोरेट संगठन काम और जिंदगी के बीच संतुलन और लचीलेपन को प्राथमिकता देने वाले मॉडलों को अपनाएं।
अपने मूल्यों और आकांक्षाओं से मेल खाती भूमिकाओं को तलाश रही जेनरेशन जेड के लिए यह बदलाव बहुत मायने रखता है। ‘ग्रेट रेजिग्नेशन’ (संतोषजनक करियर की तलाश में कर्मचारियों का सामूहिक रूप से त्यागपत्र देना) से लेकर ‘क्वाइट क्विटिंग’ (नौकरी में बने रहते हुए कामकाज के प्रति अनमना भाव) तक की प्रवृत्तियां उभरी हैं। साथ ही ‘प्रजेंटीइज्म’ (वास्तविक उत्पादकता की उपेक्षा कर कर्मचारियों की शारीरिक उपस्थिति पर जोर देना) और ‘कैरियर कुशनिंग’ (जब कर्मचारी अस्थिर जॉब मार्केट में अतिरिक्त सुरक्षा की तलाश करता है) की चुनौतियां भी हैं - दोनों ही बातें हमारे जीवन में काम की भूमिका के सामूहिक पुनर्मूल्यांकन पर जोर देती हैं। डिजिटल परिवर्तन के तेजी से बढ़ते दौर में चार दिन का कार्य सप्ताह और रिमोट वर्किंग जैसे प्रगतिशील कार्य मॉडल उभर रहे हैं, जो उत्पादकता और उपस्थिति की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दे रहे हैं। साथ ही, तेजी से बदलते जॉब मार्केट में अपस्किलिंग और रिस्किलिंग के माध्यम से निरंतर सीखने की आवश्यकता भी बहुत बढ़ गई है। लचीलेपन, डिजिटल नवाचार और जीवन भर सीखने की आदत का संयोजन न केवल इस बात को बदल रहा है कि हम कैसे काम करते हैं, बल्कि व्यवसायों के भीतर कार्य संस्कृति को भी पुन: परिभाषित कर रहा है।
वर्तमान में भारत की कुल आबादी का लगभग 66त्न हिस्सा 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों का है। लचीला कार्य समय, मानसिक तनाव रहित वातावरण और सार्थक भूमिका इस पीढ़ी की प्राथमिकताएं हैं। जेनरेशन जेड की आकांक्षाओं के साथ कौशल विकास ढांचे को विकसित करने का मतलब है उभरते क्षेत्रों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस और साइबर सुरक्षा में व्यावसायिक विकास के ठोस अवसर प्रदान करना। हालांकि तकनीकी कौशल प्रदान करना ही पर्याप्त नहीं है, संस्थानों को एक मददगार और समृद्ध कार्य वातावरण बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। परंपरागत प्रशिक्षण के साथ तनाव प्रबंधन कार्यक्रमों और समग्र स्वास्थ्य पहलों को शामिल करने से समग्र कर्मचारी कल्याण को बढ़ाया जा सकता है। इससे कर्मचारियों की जुड़ाव दर और उत्पादकता में सुधार होगा। इन कार्यक्रमों का अनुसरण करने वाली कंपनियां अधिक सुदृढ़ कार्यबल तैयार कर सकती हैं।
जैसे-जैसे व्यवसाय नियमित कार्यशालाएं, मेंटरशिप कार्यक्रम जैसी पहल के माध्यम से रणनीतिक परिवर्तनों को अपनाएंगे, वे आधुनिक कार्यबल के मूल्यों के साथ सुमेलित अधिक समावेशी व नवाचारी कॉरपोरेट संस्कृति का निर्माण कर सकेंगे। इसमें अप्रेंटिसशिप और डिग्री अप्रेंटिसशिप की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जो कि व्यावहारिक अनुभव और आवश्यक कौशल हासिल करने का बना-बनाया रास्ता है। इससे प्रतिभागी तकनीकी दक्षताओं के साथ-साथ संचार, टीमवर्क और समस्या-समाधान जैसी महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट स्किल्स को सीखते हैं। इससे कर्मचारियों पर कार्यभार भी कम होता है और कार्य-जीवन संतुलन को भी बढ़ावा मिलता है।