अगर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की तमन्नाओं से परे जाकर भी अमरीकी कंपनियां भारत पर इतना बड़ा दांव लगा रही हैं तो इसलिए कि वे भारत में छिपी संभावनाओं और यहां उभरते आइटी इकोसिस्टम को अनदेखा नहीं कर सकतीं।
- बालेन्दु शर्मा दाधीच, लेखक वरिष्ठ सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ हैं
ऐसा लगता है कि दुनिया की अग्रणी एआइ कंपनियों के बीच भारत में निवेश की होड़ है। वह भी ऐसे समय पर, जबकि डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन अपनी 'अमरीका फस्र्ट नीति' के तहत' अपने देश को ही सबसे सही जगह मानता है। माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन ने भारत में कुल मिलाकर 52.5 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। अमेजन की ओर से 35 अरब डॉलर 2030 तक लगाए जाने हैं तो माइक्रोसॉफ्ट अगले चार वर्षों में 17.5 अरब डॉलर का निवेश करेगी। आपको शायद याद हो कि तीसरे आइटी दिग्गज गूगल ने पिछले अक्टूबर में 15 अरब डॉलर से विशाखापत्तनम में अपना एआइ डेटा हब कायम करने का वादा किया था। इसी हफ्ते माइक्रोप्रोसेसर बनाने वाली कंपनी इंटेल ने टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ साझेदारी की घोषणा की है, जिसके तहत उसके उन्नत प्रोसेसरों की टेस्टिंग और पैकेजिंग भारत में होगी। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने 14 अरब डॉलर की सेमीकंडक्टर परियोजना का काम शुरू किया है। हैरत की बात यह है कि अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और इंटेल तीनों ने ये घोषणाएं एक हफ्ते के भीतर की हैं। इन्हीं के साथ गूगल और कुछ दूसरी एआइ कंपनियों को भी जोड़कर देखें तो दिमाग में कुछ चमकता है।
यही कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत में 'कुछ सचमुच खास' हो रहा है जो सेवा-प्रधान आइटी इंडस्ट्री की हमारी पारंपरिक छवि से अलग है। हम महज बाजार की भूमिका में नहीं हैं बल्कि आइटी निवेश के केंद्र और एआइ हब का रूप ले रहे हैं। याद रहे, मौजूदा निवेश एआइ, क्लाउड, सेमीकंडक्टर उद्योग और एआइ-इन्फ्रास्ट्रक्चर में हो रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन की घोषणाएं अमरीका के बाहर किसी एक देश में किए गए अब तक के सबसे बड़े निवेशों में गिनी जा रही हैं। पिछली घोषणाओं को जोड़ लें तो भारत में अमेजन का कुल निवेश लगभग 75 अरब डॉलर तक जा पहुंचेगा। इससे वह देश का सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन जाएगा। इसी तरह, माइक्रोसॉफ्ट के 17.5 अरब डॉलर न केवल एशिया में उसका सबसे बड़ा निवेश हैं बल्कि दुनिया के स्तर पर भी शीर्ष दो-तीन में गिने जाएंगे। अगर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की तमन्नाओं से परे जाकर भी अमरीकी कंपनियां भारत पर इतना बड़ा दांव लगा रही हैं तो इसलिए कि वे भारत में छिपी संभावनाओं और यहां उभरते आइटी इकोसिस्टम को अनदेखा नहीं कर सकतीं। मिसाल के तौर पर इन तीन बातों पर गौर कीजिए-
हमारी पहली विशेषता है भारत के बाजार का आकार और उपभोक्ताओं की संख्या। यह देश इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या के लिहाज से दूसरे नंबर पर है। एक अरब से अधिक लोग मोबाइल या पीसी पर एआइ-सक्षम एप्लीकेशनों का उपयोग करते हैं। यह न केवल उत्पादों के परीक्षण के लिए, बल्कि उभरती एआइ सेवाओं के लिए भी एक आकर्षक अवसर है। एअरटेल के उपभोक्ताओं को मुफ्त में एआइ मॉडल की सुविधा मुहैया कराने वाली परप्लेक्सिटी इसका लाभ उठाकर दिखा चुकी है। आज अमरीका के बाद भारत में उसके सबसे ज्यादा उपभोक्ता हो गए हैं।
दूसरा कारण यह है कि भारत अमरीका और चीन के बाद एआइ कौशल का सबसे बड़ा केंद्र है। स्टैनफोर्ड एआइ रिपोर्ट कहती है कि 2016 से अब तक भारत में एआइ से संबंधित कौशल का दायरा 263त्न बढ़ा है। बेंगलूरु और हैदराबाद जैसे शहरों ने एक टेक इकोसिस्टम विकसित किया है जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है। वहीं से माइक्रोसॉफ्ट का नया 'हाइपरस्केल क्लाउड रीजन' भी शुरू होने वाला है। एआइ कंपनी एंथ्रोपिक भी बेंगलूरु में दफ्तर खोल रही है।
भारत में निहित तीसरा आकर्षण है यहां से मिल रहे नीतिगत संकेत। सरकार 'सेमीकंडक्टर मिशन' और 'स्वदेशी (सॉवरेन) एआइ मॉडल' पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके मायने यह हैं कि भारत आयात-निर्भर तकनीकी उपभोक्ता नहीं बने रहना चाहता। वह आत्मनिर्भर एआइ अर्थव्यवस्था बनाना चाहता है। इधर डेटा सम्प्रभुता और डिजिटल इंडिया एक्ट जैसे नियामक ढांचे भी वैश्विक कंपनियों को यह भरोसा दे रहे हैं कि यहां वे लंबे समय के लिए, सुनियोजित ढंग से पैसा लगा सकती हैं। इस निवेश के वैश्विक निहितार्थ भी हैं। चीन के अनुभव से सबक ले चुके तकनीकी दिग्गज अब एआइ के प्रसार में 'भू-राजनीतिक विविधता' लाना चाहते हैं। यह केवल उद्योग की रणनीति नहीं है, बल्कि शक्ति-संतुलन के नए समीकरण की शुरुआत है। अमरीका और चीन के बाहर एक तीसरे तकनीकी ध्रुव का उदय भारत में हो सकता है। यह भी कह सकते हैं कि हो रहा है।
भारतीय आइटी उद्योग के लिए भी प्रतिद्वंद्विता से ज्यादा लाभ की स्थिति हो सकती है। जो कंपनियां अब तक वैश्विक आउटसोर्सिंग के लिए जानी जाती थीं, वे अब नवाचार और एआइ अनुसंधान में वैश्विक दिग्गजों की सहयोगी बन रही हैं। इस निवेश से उच्च कौशल वाली हजारों नौकरियों का सृजन होने के भी आसार हैं क्योंकि इन्हीं कंपनियों की बड़े पैमाने पर करोड़ों युवाओं को प्रशिक्षित करने की योजना है। विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारियों से भारतीय स्टार्टअप्स को भी पूंजी, प्रशिक्षण और वैश्विक बाजारों का सीधा अनुभव मिलेगा। लगता है, बेंगलुरु, हैदराबाद, गुरुग्राम और पुणे जैसे शहरों में सूचना प्रौद्योगिकी का जलवा जारी रहेगा। ये 'एआइ शहर' बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, यदि बाकी पक्ष भी सकारात्मक भूमिका निभाएं। ये हैं- सरकार, स्थानीय आइटी इंडस्ट्री और हमारी तकनीकी प्रतिभाएं। अगर केंद्र सरकार आइटी-एआइ उद्योग के अनुकूल नीतियां बनाए और राज्य सरकारें एक तत्पर सहयोगी की भूमिका निभाएं तो विदेशी एआइ कंपनियों के बीच भारत का आकर्षण बरकरार रह सकता है। विदेशी कंपनियां अपने दम पर धरती पर एआइ क्रांति नहीं रच सकती हैं यदि हम इस प्रक्रिया को गति नहीं देते और खुद भी उसी उत्साह के साथ भागीदारी नहीं करते।