मधुरेन्द्र सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार
एक जीवंत लोकतंत्र में तरह-तरह के सुधार उसे गतिमान बनाए रखते हैं और यह बात आर्थिक सुधारों पर भी लागू होती है। सरकार का लक्ष्य टैक्स वसूल कर अपना खजाना भरना नहीं होना चाहिए बल्कि जनता को राहत देना भी होना चाहिए। इस बजट सत्र में केन्द्र सरकार ने जहां आयकर की दरें काफी घटाकर टैक्स देने वाली जनता को राहत पहुंचाई, वहीं अब जीएसटी में कटौती की घोषणा कर उसकी क्रय शक्ति में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी का कदम उठाया है। इस टैक्स व्यवस्था से आम जनता को फायदा होगा क्योंकि अप्रत्यक्ष कर आयकर के विपरीत सभी पर लागू होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर इस कटौती के बारे में संकेत दिया था और कहा था कि देश की जनता को यह दिवाली का उपहार होगा। इसके बाद जीएसटी काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी की दरों में अच्छी खासी कटौती कर जनता को नवरात्रि पर ही उपहार दे दिया। इस कटौती से सरकारों को 47,700 करोड़ रुपए के राजस्व से हाथ धोना पड़ेगा लेकिन टैक्स की दरें कम होने से अधिक खरीदारी होगी जिससे अंततः राजस्व में बढ़ोतरी ही होगी। खरीदारी बढ़ने से अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत आधारित है न कि निर्यात आधारित। हमारे जीडीपी की दर पिछली तिमाही में 7 फीसदी से भी ज्यादा रही जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लिए एक सबक है। अब इस गति को बनाए रखने में टैक्स कटौती का यह अभूतपूर्व कदम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
रोजमर्रा के सामान, खाने-पीने की वस्तुओं, कारों, ट्रकों, सीमेंट जैसी चीजों पर टैक्स या तो खत्म कर दिया गया है या घटा दिया गया है। इससे ग्राहकों खासकर मिडिल क्लास को काफी फायदा होगा। कम टैक्स देने से वे ज्यादा खरीदारी कर सकेंगे। सीमेंट पर टैक्स घटने से रियल एस्टेट सेक्टर में तेजी आएगी। सर्विस सेक्टर, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, उसे भी सहारा मिलेगा। जीवन रक्षक दवाइयों पर टैक्स हटाकर काउंसिल ने बड़ा कदम बढ़ाया है।
इसी तरह हेल्थ इंश्योरेंस पर 18 प्रतिशत के भारी-भरकम टैक्स को शून्य पर ले जाने से जनता को तो फायदा होगा ही, बीमा क्षेत्र को भी लाभ होगा। वहां रोजगार की संभावना बढ़ेगी क्योंकि भारत में अभी भी 30 फीसदी लोगों के पास ही बीमा है। शेष जनता किसी भी तरह के सुरक्षा कवच से वंचित है। बीमा पर जीएसटी में कटौती बहुत बड़ी राहत साबित होगी। ट्रांसपोर्ट और टूरिज्म ऐसे क्षेत्र हैं जो बड़ी तादाद में रोजगार देते हैं और इन पर टैक्स घटाकर इन्हें प्रोत्साहित किया गया है। इससे टूरिज्म और बढ़ेगा तथा सरकार को मिलने वाला टैक्स भी। प्रीपेड तथा पोस्टपेड मोबाइल सेवाओं पर टैक्स की दर घटने से कम आय वाले लोगों को राहत मिलेगी। इंटरनेट और डीटीएच की दरें घटने से युवा वर्ग को राहत होगी। यानी समाज के हर वर्ग को राहत देने की कोशिश की गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से मुद्रास्फीति की दर में 1.1 फीसदी की कमी आएगी। निवेशक इस बड़े फैसले से खुश हैं। दरअसल बाजार में मांग की कमी दिख रही थी और यह देखते हुए कि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है, यह कदम उत्साहवर्धक है। इस समय अर्थव्यवस्था को एक बूस्टर की जरूरत थी जो उसे मिल गया है। इससे खरीदारी बढ़ेगी और उसका असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ेगा जो अंततः रोजगार बढ़ाएगा। इससे अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
पिछले कुछ समय से जीएसटी में सुधार की मांग जोर-शोर से की जा रही थी और पक्ष-विपक्ष के सांसद भी मुखर हो रहे थे। दरअसल कुछ वस्तुओं पर अभी टैक्स की दरों में विसंगति है तो कुछ में अधिकता है। मसलन, दो तरह के सामान जो मिलकर एक उत्पाद होते हैं, उन पर अलग-अलग टैक्स दरें हैं। यह कारोबारियों के लिए परेशानी है। जैसे स्नैक बन मस्सा को देखें तो पाएंगे कि बन पर टैक्स की दर अलग है और मक्खन पर अलग। रेस्तरां में रोटी पर कम टैक्स है तो परांठे पर ज्यादा। बिना एसी वाले रेस्तरां के लिए अलग दर है तो एसी वाले के लिए अलग। खुले सामान पर कोई टैक्स नहीं है लेकिन पैकेट में आते ही उस पर टैक्स लग जाता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो जीएसटी की विसंगतियां बताते हैं।
लेकिन अब नई घोषणा के बाद सभी तरह की विसंगतियां खत्म हो गई हैं। सरकार ने जीएसटी के जरिए कर संग्रह का जो लक्ष्य रखा था वह काफी हद तक पूरा हो गया है। पिछले पांच वर्षों में जीएसटी वसूली दोगुनी हो चुकी है। 2024-25 में कुल जीएसटी वसूली 22.08 लाख करोड़ रुपए हो गई है जो 9.4 फीसदी की दर से बढ़ी है। यह भी एक कारण है कि सरकार टैक्स में कटौती करने को तैयार हो गई है।
अब सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कंपनियां, कारोबारी, दुकानदार और रेस्तरां मालिक टैक्स में कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएं। पिछली बार यह देखा गया था कि इसका फायदा कुछ कारोबारी और कंपनियां खुद अपने सामानों या सेवाओं की कीमतें बढ़ाकर हड़प लेती हैं। अब यह नहीं होना चाहिए।