अदालत ने पाया कि कुछ शराब कंपनियां अपने उत्पाद को जूस जैसे दिखने वाले टेट्रा पैक में बेच रही हैं।
शराब सेहत के लिए कितनी खतरनाक है यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन शराब कंपनियां अपने फायदे के लिए लोगों की सेहत की परवाह किए बिना जब इसे आकर्षक पैकिंग के साथ जूस पैक जैसे दिखने वाले टेट्रा पैक में बेचने लगे तो चिंता होना स्वाभाविक है। न कोई संकेत, न चेतावनी और पैकिंग भी ऐसी साफ-सुथरी और आकर्षक कि शीतल पेय समझकर किसी मासूम के हाथों तक भी शराब की यह गुमराह करने वाली पैकिंग पहुंच जाए तो खतरा बढऩे वाला ही है।
देश की शीर्ष अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टेट्रा पैक में शराब बिक्री पर चिंता जताते हुए राज्य सरकारों को जिन शब्दों में फटकार लगाई है वह शराब को कमाई का जरिया मानने की सोच की ओर इंगित करता है। अदालत ने पाया कि कुछ शराब कंपनियां अपने उत्पाद को जूस जैसे दिखने वाले टेट्रा पैक में बेच रही हैं। इनकी पैकिंग भी ऐसी होती है कि स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों तक आसानी से पहुंच सकती है। भ्रमित करने वाली इस पैकिंग को देखकर माता-पिता भी अंदाजा नहीं लगा सकते कि इसमें शराब है। भले ही शीर्ष अदालत के पास यह मुद्दा दो शराब कंपनियों के बीच गहराए ट्रेडमार्क विवाद के चलते सामने आया लेकिन इससे सिस्टम की अनदेखी खुलकर सामने आ गई है। चिंताजनक तथ्य यह भी है कि आज बाजार में पैकिंग अब सिर्फ मार्केटिंग का माध्यम ही नहीं रही, बल्कि यह उपभोक्ता पर मनोवैज्ञानिक असर डालने वाला हथियार बन चुकी है।
शराब को जूस जैसा दिखने वाले टेट्रा पैक में बेचना इसी हथियार का नया रूप है। वजह साफ है- टेट्रा पैक का सीधा लाभ कंपनियों को मिलता है क्योंकि इसमें शराब की पहचान छिपाई जा सकती है। ऐसी भ्रामक पैकिंग से सबसे बड़ा नुकसान उन परिवारों को भुगतना पड़ सकता है, जिनके बच्चों का सामना रोजाना इसी तरह की पैकिंग से होता है- फू्रट जूस, एनर्जी ड्रिंक, मिल्क शेक आदि के रूप में। ऐसी पैकिंग यदि किसी बच्चे के स्कूल बैग में भी रखी हो तो एकबारगी शिक्षक वर्ग को भी यह जूस जैसा पैकेट ही लगेगा। यह सीधा-सीधा जनस्वास्थ्य और उपभोक्ता अधिकार दोनों पर प्रहार है। तमाम तरह के प्रतिबंधों के बावजूद भारत में शराब के विज्ञापन पहले ही छद्म तरीकों से हो रहे हैं। अब पैकिंग के स्तर पर यह छल कहीं अधिक खतरनाक रूप लेता दिख रहा है।
दुनिया के कई देशों में शराब पैकेजिंग के लुभाने वाले आकार पर कड़ी रोक है। भारत में अभी तक यह चर्चा सीमित ही रही थी, पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद ये सामाजिक बहस का विषय भी बन गया है। केंद्र और राज्य सरकारों को शराब पैकेजिंग को लेकर सख्त दिशानिर्देश जारी करने होंगे। सभी तरह की नुकसानदायक पैकिंग के 60 फीसदी हिस्से में वैधानिक चेतावनी अंकित करना जरूरी होना चाहिए। सरकार, समाज व उत्पादक तीनों को तय करना होगा कि किसी भी पैकेट में भरा भ्रम सेहत पर खतरा न बने।