भारत के लिए सबसे चिंताजनक पहलू 'भारत विरोधी नैरेटिव' है, जिसे वहां के कट्टरपंथी तत्व हवा दे रहे हैं।
बांग्लादेश में बीते कुछ दिनों से जो मंजर दिखाई दे रहा है, वह न केवल उस देश के लोकतंत्र के भविष्य के लिए भयावह है, बल्कि दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक गंभीर खतरे की घंटी है। 'जुलाई उपद्रव' में शामिल छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद ढाका सहित कई शहरों में भड़की ताजा हिंसा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार देश में कानून का शासन स्थापित करने में पूरी तरह विफल साबित हो रही है। सड़कों पर उतरती उन्मादी भीड़, प्रमुख मीडिया संस्थानों के दफ्तरों में आगजनी और पत्रकारों पर हमले दर्शाते हैं कि वहां अराजकता अब बेलगाम हो चुकी है। भारत के लिए सबसे चिंताजनक पहलू 'भारत विरोधी नैरेटिव' है, जिसे वहां के कट्टरपंथी तत्व हवा दे रहे हैं। उस्मान हादी पर हुए हमले का दोष बिना किसी पुख्ता जांच के भारत पर मढऩा और उसके बाद भारतीय मिशनों को निशाना बनाने की कोशिश करना एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है।
भारत का अपने वीजा केंद्रों को बंद कर बांग्लादेशी उच्चायुक्त को तलब करना जरूरी कूटनीतिक कदम है। अपने यहां विदेशी राजनयिकों और मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है, पर ढाका में मौजूदा सत्ता उदासीन नजर आ रही है। राजनीतिक अस्थिरता के बीच वहां अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं की स्थिति बदतर होती जा रही है। ईशनिंदा के कथित आरोपों में एक हिंदू युवक की पीट-पीटकर हत्या बताती है कि वहां कट्टरपंथियों को प्रशासन का भय नहीं रहा। न्याय भीड़ के हाथों में चला जाए और सरकार 'अल्पसंख्यक अधिकारों' पर बयानबाजी तक सीमित रहे, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी भी सवालों के घेरे में आ जाती है। अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के पुत्र व सलाहकार साजीब वाजेद जॉय ने ठीक ही कहा कि बांग्लादेश की आग से भारत अछूता नहीं रह सकता।
आगामी फरवरी में प्रस्तावित आम चुनाव को देखते हुए बांग्लादेश को पारदर्शी और शांतिपूर्ण चुनावी प्रक्रिया की ओर बढऩा चाहिए था। लेकिन वहां कट्टरपंथी ताकतें जनभावनाओं को भड़काने में जुटी हैं। भारत का रुख एक 'स्थिर, समृद्ध और लोकतांत्रिक' बांग्लादेश के पक्ष में रहा है। यदि ढाका की अंतरिम सरकार अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों और सांप्रदायिक हिंसा के लिए होने देगी, तो द्विपक्षीय संबंधों में आई दरार भरना नामुमकिन हो जाएगा। नसीहतें देने के बजाय कठोर कार्रवाई कर अंतरिम सरकार यह साबित करे कि वह किसी कट्टरपंथी विचारधारा की बंधक नहीं है। भारत को भी सीमा सुरक्षा के प्रति सतर्कता बरतते हुए वैश्विक मंचों पर बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रमों को स्पष्टता के साथ उठाना चाहिए। पड़ोस में लगी यह आग समय रहते नहीं बुझाई गई तो इसकी तपिश पूरे क्षेत्र को झुलसा सकती है।