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सिंधु जल समझौते में भारत खेल सकता है नया रणनीतिक दांव

— हृदयेश जोशी (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)

3 min read
Apr 28, 2025

भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का जो फैसला किया है, उस पर बहस लगातार गरमा रही है। कुछ जानकार तो अब यह कहने लगे हैं कि भारत को सिंधु जल समझौता पूरी तरह से रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इसमें पाकिस्तान को जितना पानी दिया गया वह अनुपातिक रूप से बहुत अधिक है और भारत के साथ अन्याय हुआ या भारत ने उस वक्त संधि में पाकिस्तान के साथ ठीक से मोल-तोल नहीं किया। 

पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता स्थगित करने का जो फैसला किया है, उसके तहत वह फौरी तौर पर न केवल पाकिस्तान के साथ सूचना और डाटा को साझा करना बंद कर सकता है, बल्कि संधि के तहत पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु पर परियाजनाएं शुरू कर सकता है, इन पर अपनी रुकी हुई परियोजनाओं को बनाना फिर शुरू कर सकता है, अनुमति से ज्यादा जल संग्रहण की क्षमता विकसित कर सकता है और इन नदियों से पानी के इस्तेमाल को लगातार बढ़ा सकता है। 

यह कदम पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को पूरी तरह भले न रोकें लेकिन पाकिस्तान के लिए इससे समस्या जरूर खड़ी होगी। यह दूसरी बात है कि पाकिस्तान को जाने वाले पानी को इस हद तक रोकने के लिए जिससे वहां बड़ा जल संकट खड़ा हो, भारत को व्यापक स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा। साथ ही भारत को यह भी ध्यान देना होगा कि सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने से भारत के हिस्से में जो कश्मीर है उसका बहुत बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, वो सबमर्जेंस एरिया कौन से होंगे, यह भारत को तय करना होगा। अगर भारत कुछ पानी को डायवर्ट कर दूसरी जगह भेजना चाहे तो उसके लिए भी व्यापक तैयारियों और आधुनिक हेडवर्क और नई नहरों का निर्माण करना होगा। जाहिर है इसमें कई साल का वक्त लगेगा। लेकिन जो नई चर्चा का विषय है वह यह कि 1960 में हुई संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु जल बेसिन के कुल पानी का 80 प्रतिशत मिला और केवल 20 प्रतिशत ही भारत के हिस्से आया। हालांकि यह सही है कि भारत अपने हिस्से की नदियों का पूरा दोहन कर सकता है और पाकिस्तान की नदियों पर भी कुछ सीमित अधिकार दिए गए हैं, लेकिन यह सवाल गरमा रहा है कि भारत को पाकिस्तान की नस दबाने के लिए संधि को नए सिरे से करना चाहिए।

भारत पिछले कुछ समय से यह मांग कर भी रहा है और उसने पाकिस्तान को 2023 और 2024 में इसका नोटिस भी दिया। असल में 1960 में जब यह संधि हुई तो जल बंटवारे के लिए सिंधु बेसिन के उस कृषि पैटर्न को आधार बनाया गया जो 1947 में वजूद में था। तब ज्यादातर कृषि उस हिस्से में होती थी जो पाकिस्तान में चला गया था। कई जानकार मानते हैं कि यह समझौता भविष्य में भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं हुआ और अपस्ट्रीन देश होने के बाद भी भारत ने पाकिस्तान को इतना पानी देकर भूल की या ठीक से मोलतोल नहीं किया। यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान को अमरीका की शह थी, वल्र्ड बैंक ने भारत को आर्थिक मदद देने के बदले संधि में 80-20 के अनुपात पर जोर दिया।

यह महत्त्वपूर्ण है कि सिंधु बेसिन के पानी का बड़ा हिस्सा मिलने के बाद भी पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला किया और कश्मीर पर कब्जे की कोशिश की। हालांकि उसके मंसूबे पूरे नहीं हुए।  वैसे कुल पानी का 80 प्रतिशत पाकिस्तान को जाने से भारत के हिस्से वाले कश्मीर को नुकसान हुआ और वहां की अवाम और राज्य सरकारों में भी इसे लेकर नाराजगी रही है। यह सच है कि भारत पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी कम कर सकता है लेकिन पूरी तरह रोकना अगर असंभव न भी हो तो उसमें बहुत समय और संसाधन लगेंगे। इसलिए भविष्य में जब हालात सामान्य हों तो भारत को संधि नए सिरे से करने पर जोर देना चाहिए।

भारत को कुल पानी का 20 प्रतिशत नहीं बल्कि इससे बहुत अधिक मिलना चाहिए। लेकिन इसके लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को अपने साथ लेना होगा। उसे पहले विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, रूस और चीन के साथ राजनीतिक वार्ता शुरू करनी होगी और अपने पक्ष में माहौल बनाना होगा और यह आंकड़े और बातें उन्हें समझानी होंगी। तभी भारत कानूनी रूप से पानी के कहीं बड़े हिस्से का हकदार होगा जो पाकिस्तान की बड़ी हार होगी।

Published on:
28 Apr 2025 01:25 pm
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